tag:blogger.com,1999:blog-6167611887407732252.post6871742833125939359..comments2024-03-14T08:13:22.119-07:00Comments on आम्रपाली: कोसी(पुल)कथा-2sushant jhahttp://www.blogger.com/profile/10780857463309576614noreply@blogger.comBlogger3125tag:blogger.com,1999:blog-6167611887407732252.post-18434008601935081602012-01-26T03:16:23.730-08:002012-01-26T03:16:23.730-08:00दूसरी खेप भी पहली के साथ ही पढ़ा, लेखन में रवानगी ...दूसरी खेप भी पहली के साथ ही पढ़ा, लेखन में रवानगी है। मजेदार। साथ ही समाजशास्त्रीय विश्लेषण में तुम महारत हासिल कर चुके हो। जारी रहे। पाठक तैयार बैठे हैं।Manjit Thakurhttps://www.blogger.com/profile/09765421125256479319noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6167611887407732252.post-39401234412530026312012-01-25T05:25:54.948-08:002012-01-25T05:25:54.948-08:00अब क्या कहूँ। सहरसा-सुपौल या यूँ कहें कि कोसिकन्हा...अब क्या कहूँ। सहरसा-सुपौल या यूँ कहें कि कोसिकन्हा वाला मैथिल हूँ। पिछले दिनों मधुबनी के एक मित्र ने किसी बनारसी मित्र को मेरा परिचय देते हुए कहा कि ये लोग नकली मैथिल हैं। सुनकर दुख हुआ और थोड़ा भड़क भी गया था। बाद में मुझे भी खेद हुआ और उन मिथिलानरेश को भी। बहरहाल, किसी भी भौतिक ढ़ाँचे वाले सेतु से बढ़कर वह सेतु है जिसे आपने इतिहास और कहानियों के जरिए मानसिक और सांस्कृतिक स्तर पर ढ़ालने की कोशिश की है। आपने हमारी भी ऐसी कई स्मृतियों को हवा दे दी है जो कई बार विस्मृति के कगार पर पहुँच जाते हैं। कोसी की धाराओं से खेलती हुई बचपन की कुछ यादें हैं जिनमें एक बार डूबते हुए बचा लिए जाने जैसा अनुभव भी है, कोसी महरानी से माँ की कुछ मनौतियाँ, नाव की डगमग, बामी और कतला माछ का स्वाद है, तो कुसहा जैसे हाल के कुछ दुखद अनुभव भी है जिसने मेरे नानी गाँव लालगंज तिलाठी के अस्तित्व को ही झकझोर कर रख दिया।<br /><br />अब कोसी को लेकर भावनात्मक होने के साथ-साथ कुछ ठोस कर पाने की छटपटाहट भी लिए घूम रहे हैं। मिथिला की सांस्कृतिक एकात्मकता भूगोल के अलावा यहाँ की समस्याओं के स्तर पर भी जाकर जुड़ती है। कोसी एक नदी के रूप में और एक क्षेत्र के रूप में हमारे लिए कुछ रचनात्मक कर पाने का एक संतोषप्रदायी अवसर भी हो सकता है। आपने लेखन के स्तर पर इसकी शुरुआत कर दी है। यह मेरे लिए प्रेरणा और दबाव दोनों का सबब बन गया है।अव्यक्त शशिhttps://www.blogger.com/profile/02973135811257922382noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6167611887407732252.post-62365162274348707612012-01-24T23:51:42.331-08:002012-01-24T23:51:42.331-08:00शुक्रिया दूसरी खैप के लिए। इंतजार था और लेखक ने वा...शुक्रिया दूसरी खैप के लिए। इंतजार था और लेखक ने वादा निभाया। इस बार आपने स्मृति को भी खंगाला, जो मेरे जैसे पाठक को भाता आया है। पूर्णिया कमश्नरी के बारे में उस पार की राय हमने भी सुनी है। जहर नै खाउ माहुर नै खाउ, मरबाक होए त पूर्णिया जाउ...हमने सुन रखा है। खैर, ऐसी लकीरें बनती-बिगड़ती रहती है लेकिन मूल में महासेतु है जो अब ऐसी बातों से दोनों इलाकों के बीच बनी दूरी को पाट देगी..शुक्रियाGirindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झाhttps://www.blogger.com/profile/12599893252831001833noreply@blogger.com