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दिल्ली में डॉ अंसारी का दरियागंज के इलाके में अपना भव्य मकान था और महात्मा गांधी अक्सर उनके मेहमान होते थे। जाहिर है उनकी हवेली उस समय राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करती थी। आजादी के बाद सरकार ने उनके सम्मान में एक सड़क का नाम अंसारी रोड रखा है। डॉ अंसारी नई पीढ़ी के प्रगतिशील मुसलमानों में से थे जो इस्लाम की एक उदार तस्वीर दुनिया के सामने रख रहे थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वे बहुत ही कम उम्र में इस दुनिया से चले गए। सन् 1936 में मसूरी से दिल्ली आते समय हार्ट एटेक की वजह से ट्रेन में ही डॉ अंसारी की मौत हो गई। कितने संयोग की बात है कि डॉ अंसारी के ही उम्र के मुंशी प्रेमचंद भी थे( मुंशी जी का जन्म भी 1880 में ही हुआ था) और उनकी भी मौत भी 1936 में ही हुई। पुनर्जागरण का एक बड़ा सितारा समय से पहले बुझ गया-जिसकी शायद उस समय सबसे ज्यादा जरुरत थी।
डॉ अंसारी से कुछ और भी बातें जुड़ी है। वर्तमान उपराष्ट्रपति डॉ हामिद अंसारी भी उसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं और बाहुवली सांसद मुख्तार अंसारी भी...जिसमें डॉ अंसारी पैदा हुए थे। दरअसल, गाजीपुर-आजमगढ़ में मुगलों के जमाने से ही(जानकारों का कहना है कि मुगलसराय का नाम मुगल सेना की छावनी बनने की वजह से ही रखा गया जो उस रास्ते अक्सर बंगाल जाया करती थी) या उससे पहले सल्तनत काल में ही मुसलमान सिपहसलारों की कुछ जागीरें थी। और उन्ही परिवारों में से कई प्रगतिशील मुस्लिम चेहरे बाद में उभरकर सामने आए..जिसमें डॉ अंसारी भी एक थे।
आज की पीढ़ी डॉ मुख्तार अंसारी को नहीं जानती। वो तो उस मुख्तार अंसारी को जानती है जो बाहुवली सांसद है और टेलिविजन पर्दे पर किसी रॉविनहुड सा चमकता है। अगर आप नामके पीछे डॉ भी लगाएंगे तो भी यह पीढ़ी नहीं समझ पाएगी क्योंकि पीएचडी करना अब बहुत 'आसान' हो गया है।