Thursday, September 18, 2008

औसत हिंदू-मुसलमान तो ठीक है...मगर..

बम धमाके हो गए। गृहमंत्री का बयान उम्मीदों के मुताबिक ही आया। विपक्ष का भी ऐसा ही था। कैबिनेट की मीटिंग हुई। कुछ संगठनों ने पोटा मांगा, कुछ ने अपने समुदाय को बेकसूर ठहराने के लिए रैली की।लेकिन सियासत अपना हित साध गई। जिसको जो फायदा हो था हो गया। आतंकियों ने समुदायों के बीच थोड़ी और दरार पैदा करने में सफलता पाई। बीजेपी के समर्थन में कुछेक और वोट जुड़ गए। मोदी की दिल्ली रैली में कुछेक हजार लोग और आ जाएंगे। कांग्रेस फिर से अमरनाथ टाईप गलतियां करेगी। जैसे वहां आखिरकार जमीन दे दिया...वैसा ही कुछ कठोर कानून की बात करती नजर आएगी, और पोटा का नाम बदल कर उसे लागू कर देगी। लेकिन घाटा किसका होगा? घाटा अंतत:मुसलमानों का ही होगा।बम धमाके हुए तो भी और न हुए तो भी।

हाल ही में मेरे एक दोस्त ने बड़ी दर्दनाक कहानी सुनाई। उसका एक दोस्त कश्मीरी है। एक हार्डवेयर कंपनी में साढ़े चार लाख के पैकेज पर काम कर रहा है । दिल्ली में 8 महीने से रहता है लेकिन कोई घर किराये पर देने पर तैयार नहीं है। वो दस दिन किसी के घर दस दिन किसी के घर रहकर अपना दिन काट रहा है। एक दूसरा लड़का कोसिकंधा का है। बाढ़ आने से बहुत पहले दिल्ली आया था, लेकिन जहां भी जाता नौकरी से मना कर दिया जाता। बड़ी डिग्री नहीं थी पास में, छोटी-2 नौकरी के लिए ही इंटरव्यू देने जाता। कई जगह ये कहा गया कि भई तुम तो काम के वक्त नमाज पर बैठ जाओगे-तुम्हे काम देकर क्या फायदा।

तीसरी कहानी मेरे एक परिचित के हैं। द्वारका में फ्लैट लेने गए लेकिन प्रॉपर्टी डीलर ने उनसे कहा कि भाईसाब..ओखला की तरफ क्यों नहीं ट्राई करते। डीलर पक्का कांग्रेसी है, लेकिन उसे डर है कि मुसलमान को फ्लैट दिलाने के चक्कर में उस अपार्टमेंट का भाव गिर जाएगा। आखिर कहां रह रहे हैं हम...और इन घटनाओं में कितनी सच्चाई है..? अगर है भी तो क्या ये शर्मनाक बात नहीं है...और क्या ये सारे समाज की सही तस्वीर देती है ?


मेरे एक मुसलमान दोस्त का कहना है कि मुसलमान अगर सांम्प्रदायिक होते तो 1947 में ही पाकिस्तान चले जाते। दूसरे हिंदूवादी दोस्त का जवाब है कि भाग ही नहीं पाए, अलवत्ता मन तो पूरा था जाने का। मुसलमान कहता है कि आबादी 15 फीसदी के बराबर है लेकिन मात्र 4 फीसदी ग्रेजुएट हैं। इसका हिंदूवादी जवाब है कि रोका किसने है पढ़ने के लिए। देश की सेकुलर व्यवस्था ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी उपर उठाने में..फिर भी गलती किसकी है। मुझे लगता है कि इस तरह के सवाल-जवाब हमें किसी नतीजे पर नहीं ले जाएंगे। तो इसका समाधान क्या है? दोनों धर्मों के लोगों को अपनी गलती तहे दिल से स्वीकारनी होगी। दोनों धर्मों के लोग एक असुरक्षा और हीन भावना में जीते हैं। हिंदू को लगता है कि इतनी आबादी के बावजूद मुसलमानों ने एक हजार साल हुकूमत किया और बहुत मंदिर तोड़े। दूसरी तरफ मुसलमानों को लगता है कि हमारे पुरखों ने हिंदूस्तान पर सदियों राज किया है...और अब इसका भड़ास हिंदू निकाल रहे हैं। दोनों ही गलत हैं।

न तो मुसलमानों ने मुसलमानों ने हजार साल राज किया, न ही हिंदू भड़ास निकालेंगे। भैया मुसलमानी राज तो मोहम्मद गोरी के हमले के बाद 1192 से शुरु ही हुआ और कुलजमा ठीक-ठाक तरीके से औरंगजेब के बेटे बहादुर शाह प्रथम यानी 1707 तक ही चला। बाद के तो तमाम मुगल बादशाह निकम्मे थे जिनका राज आलम से पालम तक ही था। दूसरी बात की मुसलमानी राज कभी मुकम्मल तौर पर पूरे देश में नहीं रहा।...दिल्ली के ठीक नाक के नीचे राजस्थान ही कभी काबू नहीं हो पाया और एक दफा औरंगजेब के वक्त जाटों ने अकबर का मकबरा ही लूट लिया। काहे का राज और कैसा अत्याचार।

हां, धन लूटने के लिए जरुर धर्म को हथियार बनाया जाता रहा और सियासत में ऐसा होना ताज्जुब की बात नहीं-लालू-मुलायम और आडवाणी भी कर रहे हैं। दूसरी बात ये इस्लाम फैलाने का जोश उतना ज्यादा नहीं था जितना उन बेवकूफ और अदूरदर्शी सुल्तानों का धन लूटना था। लेकिन काम उन्होनें ऐसा किया कि आज तक मुसलमान इसको लेकर डिफेंसिव हैं-कुछ कुछ इस पीढ़ी क ब्राह्मणों की तरह- जिनके पुरखों के कामों जवाब अक्सर उनसे मांगा जाता है।


हां अंग्रेजी राज मे जरुरु हमने अपने नफरत को ढ़ंग से फलने फूलने दिया। मुझे लगता है कि आज का हिंदू अतीत तोड़े गए मंदिर से कम,भारत के विभाजन को लेकर मुसलमानों से ज्यादा नाराज है। उसे आज तक पाकिस्तान बनने का तर्क समझ नहीं आता। जरुरत इन सब बातों पर खुल कर विचार करने की है। साथ ही हिंदूओं की इतनी गलती जरुर है कि उन्होने मुस्लिम समुदाय के घटिया किस्म के नेताओं को आम मुसलमानो का नुमाइंदा मान लिया। प्रगतिशील किस्म के नेताओं को आगे लाने में कोताही की गई और उसी का परिणाम है कि मुसलमानों का औसत नेतृत्व सिमी की वकालत करता नजर आता है। मजे की बात ये है कि ऐसे नेताओं ने लालू-मुलायम को भी भरोसा दिला दिया है कि भैया सिमी का गुण गाने से वोट मिल जाएंगे। लेकिन फायदा किसको हो रहा है? ये बताने की जरुरत नहीं है कि इसका फायदा बीजेपी को हो रहा है।