दरभंगा से हवाई सेवा को लेकर सोशल मीडिया और अखबारों में भी काफी चर्चा हो रही है जिसे हाल ही में "उड़ान"
योजना के अंतर्गत शामिल किया गया है, हालांकि अभी सिर्फ सहमति पत्र पर
दस्तखत हुए हैं और मीलों लंबा सफर तय करना है. भारत सरकार की उड़ान योजना
क्षेत्रीय कनेक्टीविटी के लिए है.
बहुत सारे अन्य एयरपोर्ट की तरह ही
दरभंगा एयरपोर्ट भी रक्षा मंत्रालय के अतर्गत आता है जिसके मंत्री अभी
अरुण जेटली हैं. जेटली का नीतीश कुमार से मधुर संबंध है और दरभंगा के सांसद
कीर्ति आजाद से कटु. लेकिन दरभंगा से सन् 2014 में JD-U के लोकसभा
प्रत्याशी और वर्तमान में JD-महासचिव संजय झा,
अरुण जेटली के नजदीकी माने जाते हैं. बिहार सरकार के सूत्र बताते हैं कि
ये भी एक वजह थी कि दरभंगा एयरपोर्ट पर रक्षा मंत्रालय ने तत्काल NOC दे
दिया.
(यों दो साल पहले जब सोशल मीडिया पर दरभंगा एयरपोर्ट के लिए
अभियान चल रहा था तो उस समय कीर्ति आजाद कुछ सांसदों संग PM से मिलने भी गए
थे लेकिन बाद में वे BJP में खुद ही अलग-थलग पड़ते गए).
फिलहाल जिस सहमति पत्र पर दस्तखत हुए हैं उसमें दरभंगा से पटना, गया और रायपुर पर सहमति बनी है. चूंकि इस बार नॉन-मेट्रो सिटी से ही कनेक्टिविटी की योजना थी, तो उसमें पटना, गया, रायपुर, बनारस और रांची आ सकते थे. अभी शुरू के तीन पर सहमति बनी है. रायपुर का नाम जुड़वाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की व्यक्तिगत रुचि थी, उन्होंने बैठक में कहा कि 'रायपुर और छत्तीसगढ़ में मिथिला समाज के लाखों लोग रहते हैं, कनेक्टिविटी से उनका भला होगा'. रही बात रांची और बनारस की तो अभी मंत्रालय की योजना में वो नहीं था, आगे उस पर विचार किया जा सकता है.
जब दो साल पहले हमारे ढेर सारे मित्र सोशल मीडिया और अखबारों के माध्यम से दरभंगा से हवाई सेवा शुरू करवाने के लिए अभियान-रत थे तो उस समय मैंने JD-U नेता संजय झा से इस मामले में पैरवी करने के लिए आग्रह किया था. वे सहमत तो थे लेकिन व्यवहारिकता और नौकरशाही की अड़चन को लेकर सशंकित थे. उन्होंने कहा था कि बेहतर हो कि राजधानी जैसी कुछ सुपरफास्ट ट्रेन या ऐसी ही कनेक्टिविटी का कुछ इंतजाम किया जाए.
लेकिन भारत सरकार जब "उड़ान" योजना लेकर सामने आई तो दरभंगा के लिए संभावना अचानक प्रकट हो गई.
सोशल मीडिया में हमारे अभियान से उस समय सरकार के कान पर तो जूं नहीं रेंगी लेकिन समाज में कुछ हलचल जरूर मची. लोग तो पहले सोचते तक नहीं थे, उन्हें लगता था कि यह अभिजात्य माध्यम है, जिसका विकास से कोई लेनादेना नहीं. हाल यह था कि उस इलाके में एक जमाने में विकास-पुरुष के तौर पर सम्मानित एक प्रख्यात कांग्रेसी नेता के सुपुत्र विधायकजी ने तो यहां तक कहा कि दरभंगा वाले बस में ही बैठने की सलाहियत सीख लें,यही बहुत है!
दरभंगा एयरपोर्ट का रनवे बिहार में सबसे बड़ा है, पटना से भी बड़ा. महाराज दरभंगा का बनवाया हुआ है. छोटा-मंझोला विमान अभी भी उतर सकता है, अगर 2000 फीट रनवे और लंबा हो जाए तो भविष्य के लिए भी, बड़े विमानों के लिए भी पक्की व्यवस्था हो जाएगी.
दरअसल, किसी शहर से विमानन सुविधा वन-टाइम डील होता है. हुआ तो हुआ, नहीं तो बीस-तीस साल नहीं होता. मनीष तिवारी जब केंद्र में मंत्री बने तो दिल्ली-लुधियाना शुरू हुआ, सुना कि उनके हटने के बाद बंद हो गया. इलाहाबाद में एक जमाने में था, फिर बंद हुआ और फिर जाकर मुरलीमनोहर जोशी के समय शुरू हुआ. यानी जिसकी लाठी, उसकी भैंस. वो तो भला हो उड़ान का जो दरभंगा जैसे शहर इसमें शामिल हुए.
दरभंगा एयरपोर्ट मौजूदा हाल में भी उड़ान योजना के लिए फिट था लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दरभंगा एयरपोर्ट के रनवे विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहण हेतु सहमत हो गए हैं, ताकि भविष्य में बड़े विमान भी उतर सकें. उसके लिए पचास एकड़ जमीन चाहिए और उन्होंने कैबिनेट सचिवालय के प्रमुख सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा को इस बाबत निर्देश दे दए है.
लेकिन इस हवाईअड्डे में कई पेंच हैं और इसमें इतनी दौड़-धूप या कहें कि ब्यूरोक्रेटिक लाइजनिंग की जरूरत है जिसके लिए ऊर्जावान नेतृत्व चाहिए. ये बात जगजाहिर है कि दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद की हवाईअड्डे में कितनी दिलचस्पी है और अगर होगी भी तो अरुण जेटली उनकी कितनी सुनेंगे! दरभंगा डिवीजन के अन्य दो सांसद हुकुमदेव नारायण यादव और बीरेंद्र चौधरी या तो हवाईसेवा के प्रति उदासीन हैं या इसका महत्व नहीं समझते. हां, एक बार बीरेंद्र चौधरी ने संसद में इसे उठाया था. लेकिन उस समय 'उड़ान' जैसी कोई योजना नहीं थी. इस बार योजना तो अनुकूल है लेकिन पेंच नौकरशाही का है और वो पहाड़ जैसा है. देखिए जिस सहमति पत्र पर दस्तखत हुए हैं, उसमें किन-किन चीजों की आवश्यकता बताई गई है:
1. एयर हेड-क्वार्टर से एनओसी लेना(यानी फिर से डिफेंस मिनिस्ट्री के बाबू और वायुसेना अधिकारियों की तेल-मालिश करना)
2. AAI को एयर हेडक्वार्टर से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा(बाबुओं को इसके लिए फिर से मनाना)
3. सिविल इन्क्लेव के लिए AAI ने जमीन अधिग्रहण करने का आग्रह किया है
(झंझट का काम है. हालांकि जमीन पचास एकड़ ही चाहिए लेकिन ये "आजकल" मजाक नहीं है. बिहार सरकार के सबसे बड़े बाबू से लेकर जिलाअधिकारी, पुलिस कप्तान, मुआवजा, वित्त विभाग इत्यादि शामिल हैं)
4 रनवे एज लाइटिंग
5 एप्रन और टैक्सी वे का निर्माम
7 NA AIDS(ILS, VOR) का इंस्टालेशन- यानी रेडियो नेविगेशन सिस्टम, इस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम इत्यादि.
और ये जितने काम हैं, उसमें करीब 2000 करोड़ रुपये का खर्च है, क्योंकि 'उड़ान' स्कीम के तहत* बिहार सरकार को इसके सकल खर्च या छूट का 80 फीसदी वहन करना है! अब असली पेंच समझिए कि एक गरीब राज्य का खजाना जिसका बजट सन् 2016-17 के लिए महज 1.44 लाख करोड़ था वह सिर्फ दरभंगा हवाईअड्डे के लिए उसमें से दो हजार करोड़ निकाल दे तो पटना के बाबू लोग कितना नखरा करेंगे!
(* उड़ान योजना में VGF यानी वायवेलिटी गैप फंड के तहत घाटे की भरपाई और सुविधाओं के निर्माण में केंद्र और राज्य का हिस्सा 20 औ 80 फीसदी का है.)
विद्वानों को मालूम है कि महज सहमति पत्र से कुछ नहीं होता, सहमति पत्र तो ऐसे-ऐसे हैं जो तीस-तीस साल से धूल फांक रहे हैं-उन पर काम आगे हुआ ही नहीं-फाइल आगे बढ़ी ही नहीं. असली बात है कि क्रियान्वयन होना और एक पिछड़े इलाके में इतने बड़े प्रोजेक्ट को जमीन पर उतार देना.
यह पोस्ट सिर्फ दरभंगा एयरपोर्ट पर केंद्रित है, पूर्णिया, सहरसा, रक्सौल और किशनगंज का अलग संदर्भ है. लंबा हो जाएगा. आज के समय में एयरपोर्ट का क्या महत्व है, इस पर पोस्ट लिखना जरूरी नहीं. आप ये समझिए कि किसी पूंजीपति या सरकारी बाबू को अगर 20-25 करोड़ का भी प्रोजेक्ट लेकर उत्तर बिहार जाना हो तो वो ट्रेन से नहीं जाएगा. मैं खुद ही साधारण सी नौकरी में हूं, ट्रेन में 25-30 घंटे की सफर से बचता हूं.
मैंने ब्लॉग के जमाने में लिखा था कि ईस्ट-वेस्ट NH कॉरीडोर को मधुबनी-दरभंगा से होकर बनवाने में झंझारपुर और सहरसा के सांसद देवेंद्र प्र. यादव और दिनेश यादव का बड़ा रोल था, उन्होंने उसके लिए जमकर वाजपेयी सरकार में लॉबी की थी. नतीजतन वो मिथिला की लाइफलाइन साबित हुई.
ऐसे में दरभंगा से अगर वाकई 'उड़ान' होता है, तो बधाई के पात्र नीतीश कुमार होंगे, मोदी सरकार होगी और संजय झा होंगे जो इसमें व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं. दरभंगा और उत्तर बिहार के उस इलाके के लोगों को चाहिए कि वो दबाव और समर्थन बनाए रखे. वहां के मौजूदा सांसद-गण भी कुछ जोर लगाएं तो यह जल्दी फलीभूत हो जाएगा. सिर्फ हवाईअड्डा ही क्यों, रेलवे और अन्य योजनाएं भी फलीभूत हो जाएंगी. जय भोलेनाथ!
JD-U नेता संजय झा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार |
फिलहाल जिस सहमति पत्र पर दस्तखत हुए हैं उसमें दरभंगा से पटना, गया और रायपुर पर सहमति बनी है. चूंकि इस बार नॉन-मेट्रो सिटी से ही कनेक्टिविटी की योजना थी, तो उसमें पटना, गया, रायपुर, बनारस और रांची आ सकते थे. अभी शुरू के तीन पर सहमति बनी है. रायपुर का नाम जुड़वाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की व्यक्तिगत रुचि थी, उन्होंने बैठक में कहा कि 'रायपुर और छत्तीसगढ़ में मिथिला समाज के लाखों लोग रहते हैं, कनेक्टिविटी से उनका भला होगा'. रही बात रांची और बनारस की तो अभी मंत्रालय की योजना में वो नहीं था, आगे उस पर विचार किया जा सकता है.
जब दो साल पहले हमारे ढेर सारे मित्र सोशल मीडिया और अखबारों के माध्यम से दरभंगा से हवाई सेवा शुरू करवाने के लिए अभियान-रत थे तो उस समय मैंने JD-U नेता संजय झा से इस मामले में पैरवी करने के लिए आग्रह किया था. वे सहमत तो थे लेकिन व्यवहारिकता और नौकरशाही की अड़चन को लेकर सशंकित थे. उन्होंने कहा था कि बेहतर हो कि राजधानी जैसी कुछ सुपरफास्ट ट्रेन या ऐसी ही कनेक्टिविटी का कुछ इंतजाम किया जाए.
लेकिन भारत सरकार जब "उड़ान" योजना लेकर सामने आई तो दरभंगा के लिए संभावना अचानक प्रकट हो गई.
सोशल मीडिया में हमारे अभियान से उस समय सरकार के कान पर तो जूं नहीं रेंगी लेकिन समाज में कुछ हलचल जरूर मची. लोग तो पहले सोचते तक नहीं थे, उन्हें लगता था कि यह अभिजात्य माध्यम है, जिसका विकास से कोई लेनादेना नहीं. हाल यह था कि उस इलाके में एक जमाने में विकास-पुरुष के तौर पर सम्मानित एक प्रख्यात कांग्रेसी नेता के सुपुत्र विधायकजी ने तो यहां तक कहा कि दरभंगा वाले बस में ही बैठने की सलाहियत सीख लें,यही बहुत है!
दरभंगा एयरपोर्ट का रनवे बिहार में सबसे बड़ा है, पटना से भी बड़ा. महाराज दरभंगा का बनवाया हुआ है. छोटा-मंझोला विमान अभी भी उतर सकता है, अगर 2000 फीट रनवे और लंबा हो जाए तो भविष्य के लिए भी, बड़े विमानों के लिए भी पक्की व्यवस्था हो जाएगी.
दरअसल, किसी शहर से विमानन सुविधा वन-टाइम डील होता है. हुआ तो हुआ, नहीं तो बीस-तीस साल नहीं होता. मनीष तिवारी जब केंद्र में मंत्री बने तो दिल्ली-लुधियाना शुरू हुआ, सुना कि उनके हटने के बाद बंद हो गया. इलाहाबाद में एक जमाने में था, फिर बंद हुआ और फिर जाकर मुरलीमनोहर जोशी के समय शुरू हुआ. यानी जिसकी लाठी, उसकी भैंस. वो तो भला हो उड़ान का जो दरभंगा जैसे शहर इसमें शामिल हुए.
दरभंगा एयरपोर्ट मौजूदा हाल में भी उड़ान योजना के लिए फिट था लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दरभंगा एयरपोर्ट के रनवे विस्तार के लिए जमीन अधिग्रहण हेतु सहमत हो गए हैं, ताकि भविष्य में बड़े विमान भी उतर सकें. उसके लिए पचास एकड़ जमीन चाहिए और उन्होंने कैबिनेट सचिवालय के प्रमुख सचिव ब्रजेश मेहरोत्रा को इस बाबत निर्देश दे दए है.
लेकिन इस हवाईअड्डे में कई पेंच हैं और इसमें इतनी दौड़-धूप या कहें कि ब्यूरोक्रेटिक लाइजनिंग की जरूरत है जिसके लिए ऊर्जावान नेतृत्व चाहिए. ये बात जगजाहिर है कि दरभंगा के सांसद कीर्ति आजाद की हवाईअड्डे में कितनी दिलचस्पी है और अगर होगी भी तो अरुण जेटली उनकी कितनी सुनेंगे! दरभंगा डिवीजन के अन्य दो सांसद हुकुमदेव नारायण यादव और बीरेंद्र चौधरी या तो हवाईसेवा के प्रति उदासीन हैं या इसका महत्व नहीं समझते. हां, एक बार बीरेंद्र चौधरी ने संसद में इसे उठाया था. लेकिन उस समय 'उड़ान' जैसी कोई योजना नहीं थी. इस बार योजना तो अनुकूल है लेकिन पेंच नौकरशाही का है और वो पहाड़ जैसा है. देखिए जिस सहमति पत्र पर दस्तखत हुए हैं, उसमें किन-किन चीजों की आवश्यकता बताई गई है:
1. एयर हेड-क्वार्टर से एनओसी लेना(यानी फिर से डिफेंस मिनिस्ट्री के बाबू और वायुसेना अधिकारियों की तेल-मालिश करना)
2. AAI को एयर हेडक्वार्टर से एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करना होगा(बाबुओं को इसके लिए फिर से मनाना)
3. सिविल इन्क्लेव के लिए AAI ने जमीन अधिग्रहण करने का आग्रह किया है
(झंझट का काम है. हालांकि जमीन पचास एकड़ ही चाहिए लेकिन ये "आजकल" मजाक नहीं है. बिहार सरकार के सबसे बड़े बाबू से लेकर जिलाअधिकारी, पुलिस कप्तान, मुआवजा, वित्त विभाग इत्यादि शामिल हैं)
4 रनवे एज लाइटिंग
5 एप्रन और टैक्सी वे का निर्माम
7 NA AIDS(ILS, VOR) का इंस्टालेशन- यानी रेडियो नेविगेशन सिस्टम, इस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम इत्यादि.
और ये जितने काम हैं, उसमें करीब 2000 करोड़ रुपये का खर्च है, क्योंकि 'उड़ान' स्कीम के तहत* बिहार सरकार को इसके सकल खर्च या छूट का 80 फीसदी वहन करना है! अब असली पेंच समझिए कि एक गरीब राज्य का खजाना जिसका बजट सन् 2016-17 के लिए महज 1.44 लाख करोड़ था वह सिर्फ दरभंगा हवाईअड्डे के लिए उसमें से दो हजार करोड़ निकाल दे तो पटना के बाबू लोग कितना नखरा करेंगे!
(* उड़ान योजना में VGF यानी वायवेलिटी गैप फंड के तहत घाटे की भरपाई और सुविधाओं के निर्माण में केंद्र और राज्य का हिस्सा 20 औ 80 फीसदी का है.)
विद्वानों को मालूम है कि महज सहमति पत्र से कुछ नहीं होता, सहमति पत्र तो ऐसे-ऐसे हैं जो तीस-तीस साल से धूल फांक रहे हैं-उन पर काम आगे हुआ ही नहीं-फाइल आगे बढ़ी ही नहीं. असली बात है कि क्रियान्वयन होना और एक पिछड़े इलाके में इतने बड़े प्रोजेक्ट को जमीन पर उतार देना.
यह पोस्ट सिर्फ दरभंगा एयरपोर्ट पर केंद्रित है, पूर्णिया, सहरसा, रक्सौल और किशनगंज का अलग संदर्भ है. लंबा हो जाएगा. आज के समय में एयरपोर्ट का क्या महत्व है, इस पर पोस्ट लिखना जरूरी नहीं. आप ये समझिए कि किसी पूंजीपति या सरकारी बाबू को अगर 20-25 करोड़ का भी प्रोजेक्ट लेकर उत्तर बिहार जाना हो तो वो ट्रेन से नहीं जाएगा. मैं खुद ही साधारण सी नौकरी में हूं, ट्रेन में 25-30 घंटे की सफर से बचता हूं.
मैंने ब्लॉग के जमाने में लिखा था कि ईस्ट-वेस्ट NH कॉरीडोर को मधुबनी-दरभंगा से होकर बनवाने में झंझारपुर और सहरसा के सांसद देवेंद्र प्र. यादव और दिनेश यादव का बड़ा रोल था, उन्होंने उसके लिए जमकर वाजपेयी सरकार में लॉबी की थी. नतीजतन वो मिथिला की लाइफलाइन साबित हुई.
ऐसे में दरभंगा से अगर वाकई 'उड़ान' होता है, तो बधाई के पात्र नीतीश कुमार होंगे, मोदी सरकार होगी और संजय झा होंगे जो इसमें व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं. दरभंगा और उत्तर बिहार के उस इलाके के लोगों को चाहिए कि वो दबाव और समर्थन बनाए रखे. वहां के मौजूदा सांसद-गण भी कुछ जोर लगाएं तो यह जल्दी फलीभूत हो जाएगा. सिर्फ हवाईअड्डा ही क्यों, रेलवे और अन्य योजनाएं भी फलीभूत हो जाएंगी. जय भोलेनाथ!