सुमन कहती है कि फरक्का में वो सब कुछ है जो एक छोटे शहर में होना चाहिए, मसलन अच्छी सड़के, अच्छे स्कूल-डीपीएस भी है-और अच्छे अस्पताल। लेकिन नहीं है तो सिर्फ कोई भी कालेज। मैं भौचक्का हूं। मैं उससे कुछ और जानना चाहता हूं। वो आगे बताती है कि फरक्का में वाटर आथरिटी है, एनटीपीसी है, एनएचपीसी है, भेल है सब है। उसकी टाउनशिप है, गतिशील बाजार है और शान्ति है। लेकिन ऊपर बताया गया सारा कुछ केंद्रीय सरकार का है। मै पूछता हूं कि तो फिर बंगाली भद्रमानूष राईटर्स बिल्डिंग में क्या करते है। सुमन के पास इसका कोई जवाब नहीं है, वो बताती है कि किसी को कालेज की पढ़ाई करनी है तो या तो मालदा जाना होगा या फिर जंगीपुर(प्रणव बाबू का क्षेत्र-हलांकि वहां भी कोई बढ़िया इंतजाम नहीं है) जो 2 घंटे का रास्ता है। सारे संस्थान कलकत्ता में ही सिमट गए। यानी अच्छे नामों और अच्छे शक्ल-सूरतों वाली वामपंथी सरकार ने फरक्का नामके जगह के लिए पिछले 30 सालों में एक कालेज खोलने की कोई जरुरत नहीं समझी।
ये जरुरत बिहार में नीतीश कुमार और उनसे पहले के किसी सरकार ने भी नहीं समझी। शिक्षा पर भले ही लंबी चौड़ी तकरीरें हों और तमाम योजनाओं का पिटारा खोला-दिखाया जाए लेकिन हकीकत यहीं है कि बिहार जैसे प्रान्त में हाईस्कूल कम से कम 5 किलोमीटर के दायरे में है। अगर कालेज की बात की जाए तो नजदीकी कालेज कम से 10 किलोमीटर में एक है जिसमें परंपरागत विषय ही उपलब्ध है। पता नहीं, बिहार सरकार, ईसा के किस सन में इस वैचारिक लकबे से ग्रस्त हुई। वो कौन से महानुभाव थे-उन्हे खोजकर बिहार रत्न की उपाधि देनी चाहिए-जिन्होने 5 किलोमीटर के दायरे में हाईस्कूल खोलने पर पाबंदी लगवा दी। आज हकीकत ये है कि बिहार में लड़कियां-खासकर के ग्रामीण इलाकों की लड़किया किसी तरह घिसट-2 कर हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करती है। जहां तक कालेज जाने का प्रश्न है तो ज्यादातर ल़डकियों के सपने कालेज की दूरी देखकर ही दम तोड़ जाते हैं। कालेज का एजुकेशन सिर्फ शादी के लिए किया जाता है, ताकि अच्छा दूल्हा मिल सके। इसकी खानापूर्ति प्राईवेट से इक्जाम देकर किया जाता है। पता नहीं, नीतीश कुमार को ये बात मालूम है कि नहीं-कपिल सिब्बल की चिंताओं में तो इतनी दूर की बात आ भी नहीं पाएगी।
मुझे नहीं मालूम देश के दूसरे हिस्सों की हालत क्या है। जहां तक यूपी की बात है तो लगता है कि वहां बिहार से ज्यादा शिक्षण संस्थान उपलब्ध हैं-चाहे विश्वविद्यालय हों या फिर हाईस्कूल। जहां तक मैने अनुभव किया है देश के दक्षिणी राज्य बीमारू सूबों से इतर कई दूसरे राज्य भी अपने बच्चों को बेहतर पढ़ा-लिखा रहे हैं।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत भारत सरकार बड़े पैमाने पर शिक्षा के लिए धन दे रही है। खासकर प्राईमरी शिक्षा के लिए सरकार ने लाखों पंचायत शिक्षकों को बहाल कराया है। लेकिन हमारे यहां उच्च माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। बिहार जैसे सूबों की बात करे तो एक औसत परिवार का बच्चा दसवीं के बाद क्या करेगा-इसका कोई मुकम्मल इंतजाम न तो नीतीश कुमार के पास है न ही कपिल सिब्बल के पास। सरकार एक औसत बच्चे को उसके घर के पास-कम से कम-10 किलोमीटर के दायरे में कालेज देने में नाकाम रही है।
दूसरा तरीका ये है कि वो बच्चा 10+2 करने के बाद बंगलोर या पूना चला जाए जहां उसे लगभग 8 लाख रुपये खर्च करने के बाद इंजिनीयरिंग या दूसरी कोई पेशेवर डीग्री मिल जाएगी। ऐसे कितने परिवार है, जो इतना खर्च कर सकते हैं।
तो हम कर क्या रहे हैं। हम लाखों बच्चों को स्कूल से निकाल कर दिल्ली-मुम्बई की सड़कों पर फैक्ट्री, दूकानों और घरों में नौकर बनने के लिए भेज रहे हैं-जहां कोई न कोई राज ठाकरे उसे गाली देने के लिए तैयार बैठा है।
ये जरुरत बिहार में नीतीश कुमार और उनसे पहले के किसी सरकार ने भी नहीं समझी। शिक्षा पर भले ही लंबी चौड़ी तकरीरें हों और तमाम योजनाओं का पिटारा खोला-दिखाया जाए लेकिन हकीकत यहीं है कि बिहार जैसे प्रान्त में हाईस्कूल कम से कम 5 किलोमीटर के दायरे में है। अगर कालेज की बात की जाए तो नजदीकी कालेज कम से 10 किलोमीटर में एक है जिसमें परंपरागत विषय ही उपलब्ध है। पता नहीं, बिहार सरकार, ईसा के किस सन में इस वैचारिक लकबे से ग्रस्त हुई। वो कौन से महानुभाव थे-उन्हे खोजकर बिहार रत्न की उपाधि देनी चाहिए-जिन्होने 5 किलोमीटर के दायरे में हाईस्कूल खोलने पर पाबंदी लगवा दी। आज हकीकत ये है कि बिहार में लड़कियां-खासकर के ग्रामीण इलाकों की लड़किया किसी तरह घिसट-2 कर हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करती है। जहां तक कालेज जाने का प्रश्न है तो ज्यादातर ल़डकियों के सपने कालेज की दूरी देखकर ही दम तोड़ जाते हैं। कालेज का एजुकेशन सिर्फ शादी के लिए किया जाता है, ताकि अच्छा दूल्हा मिल सके। इसकी खानापूर्ति प्राईवेट से इक्जाम देकर किया जाता है। पता नहीं, नीतीश कुमार को ये बात मालूम है कि नहीं-कपिल सिब्बल की चिंताओं में तो इतनी दूर की बात आ भी नहीं पाएगी।
मुझे नहीं मालूम देश के दूसरे हिस्सों की हालत क्या है। जहां तक यूपी की बात है तो लगता है कि वहां बिहार से ज्यादा शिक्षण संस्थान उपलब्ध हैं-चाहे विश्वविद्यालय हों या फिर हाईस्कूल। जहां तक मैने अनुभव किया है देश के दक्षिणी राज्य बीमारू सूबों से इतर कई दूसरे राज्य भी अपने बच्चों को बेहतर पढ़ा-लिखा रहे हैं।
सर्व शिक्षा अभियान के तहत भारत सरकार बड़े पैमाने पर शिक्षा के लिए धन दे रही है। खासकर प्राईमरी शिक्षा के लिए सरकार ने लाखों पंचायत शिक्षकों को बहाल कराया है। लेकिन हमारे यहां उच्च माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा को भगवान के भरोसे छोड़ दिया गया है। बिहार जैसे सूबों की बात करे तो एक औसत परिवार का बच्चा दसवीं के बाद क्या करेगा-इसका कोई मुकम्मल इंतजाम न तो नीतीश कुमार के पास है न ही कपिल सिब्बल के पास। सरकार एक औसत बच्चे को उसके घर के पास-कम से कम-10 किलोमीटर के दायरे में कालेज देने में नाकाम रही है।
दूसरा तरीका ये है कि वो बच्चा 10+2 करने के बाद बंगलोर या पूना चला जाए जहां उसे लगभग 8 लाख रुपये खर्च करने के बाद इंजिनीयरिंग या दूसरी कोई पेशेवर डीग्री मिल जाएगी। ऐसे कितने परिवार है, जो इतना खर्च कर सकते हैं।
तो हम कर क्या रहे हैं। हम लाखों बच्चों को स्कूल से निकाल कर दिल्ली-मुम्बई की सड़कों पर फैक्ट्री, दूकानों और घरों में नौकर बनने के लिए भेज रहे हैं-जहां कोई न कोई राज ठाकरे उसे गाली देने के लिए तैयार बैठा है।
3 comments:
अपकी पोस्ट की अंतिम पंक्तियों से बात शुरू करना चाहूंगा। आपने पूछा कि क्या हम लाखों बच्चों को स्कूल से निकाल कर दिल्ली-मुम्बई की सड़कों पर फैक्ट्री,....गाली देने के लिए तैयार बैठा है। तो मेरा जवाब है नहीं। यदि सरकार कुछ नहीं कर रही है तो वहां हमें कुछ करना होगा। हमें से मतलब कुछ संगठनों से है। जो काम कर भी रहे हैं।
मैं आपको अपने जिले पूर्णिया का उदाहरण दूंगा। मैं अपने गांव में छुट्टियों में बच्चों को पढ़ाता हूं और जब मैं नहीं रहता तो मेर जैसे लोग पढ़ाते हैं क्यों कि पहले मेरे यहां स्कूल नहीं थे। सवाल यह नही है कि सरकार क्या नहीं कर रही है.दरअसल वो तो इसके लिए बदनाम है ही.तो ऐसी स्थिती में हमें ही आगे बढ़ना होगा।
गिरीन्द्रजी, आपकी बात ठीक है। हमारे यहां गैरसरकारी प्रयासों की कमी है। ये सिर्फ मेरी या आपकी बात नहीं-बल्कि मैं पूरे राज्य की बात कर रहा हूं। हमें इस पर चिंतन करनी चाहिए।
बहुत सी ज़रूरतें हैं ..जो पूरी होनी चाहियें..और इसमे लोगोंका, जनताका सहभाग बेहद ज़रूरी है..
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