हजारों की भीड़, लोगों का रेलमपेल, डॉक्टरों और नर्सों के चेहरे पर तनाव और उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन, सफदरजंग की मानो खासियत बन गई है। देश के सुदूरवर्ती इलाकों से आए लोग, बुंदेलखंडी से लेकर मैथिली तक बोलते हुए आपको सफदरजंग के कैम्पस में मिल जाएंगे। वे अपने मरीज के साथ एक बड़ी उम्मीद में यहां आते हैं और अस्पताल के कैंम्पस में दरी या चादर बिछाकर सो जाते हैं और अचानक कभी बारिश आती है और सब उठकर अस्पताल के अहाते में जाकर खड़े हो जाते हैं।
सफदरजंग सरकारी अस्पताल है, बिल्कुल वैसा ही जैसा कोई सरकार अस्पताल होता है। लेकिन राजधानी में होने की वजह से और सरकार का एक प्रतिष्ठित अस्पताल होने की वजह से इसका काम काफी चाक चौबंद है। मरीजों को मुफ्त का इलाज और दवाईयां तो मिलती ही है-खाना भी ठीक ठाक मिलता है। मैं जिस मरीज के साथ आया था उसे अगर किसी निजी अस्पताल में इलाज करवाने ले जाता तो खर्च कम से काम लाख टके से ऊपर का आता, लेकिन सफदरजंग में एक अठन्नी तक खर्च नहीं हुआ। ये देखकर मैं शायद पहली बार अपनी सरकार से नाराज नहीं हुआ। मुझे लगा कि मेरे मुल्क में एक सरकार भी है जो कभी-2 कुछ काम भी कर लेती है।
सफदर जंग में एक शानदार मेडिकल कॉलेज भी बनकर तैयार है और (कुछ लोगों के मुताबिक) हिंदुस्तान का सबसे बड़ा बर्न युनिट भी यहीं है। बगल में जयप्रकाश नारायण ट्रोमा सेंटर है और अस्पताल के पूरब में गर्व
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सरकार के इस अस्पताल में लोगों की रेलमपेल के बावजूद मुफ्त का इलाज देखकर मुझे कुछ पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र याद आ गए जिसमें जनता को मुफ्त की स्वास्थ्य और शिक्षा सेवा मुहैया करवाने की बात अक्सर की जाती है। वैसे तो क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी सभी पार्टियों ने स्वास्थ्य के बारे में काफी जबानी जमा-खर्च की है लेकिन मुझे लगता है कि वाम पार्टियां इस बारे में ज्यादा गंभीर है। मेरे दोस्त राजीव का छोटा भाई सुमित हाल ही में कलकत्ता से इंजिनियरिंग करके लौटा है उसका भी यहीं कहना है कि बंगाल के गांवों में सरकारी अस्पतालों की हालत काफी अच्छी है। बिहार-यूपी में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इधर सुना नीतीश बाबू भी कुछ सक्रिय हुए हैं। केरल में भी सुना कि सरकारी अस्पताल टनाटन है।
मेरा ध्यान अचानक सफदरजंग की दीवार पर लगे एक पोस्टर पर जाता है जिसमें कर्मचारी यूनियन के एक धरने का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि सफदरजंग को दिल्ली से झझ्झर(हरियाणा) न ले जाया जाए और इसकी जमीन को निजी हाथों में बेचने का षडयंत्र न किया जाए। मैं अचानक चौंक उठता हूं। सफदरजंग अस्पताल जिस जमीन पर बना है कायदे से दिल्ली के हिसाब से उस जमीन की कीमत करीब 20,000 करोड़ से कम नहीं होनी चाहिए। तो क्या सरकार इसे किसी अंबानी या टाटा को सौंपने वाली है ? मेरा मन बैचेन हो उठता है। दूसरी बात ये कि इसे हरियाणा शिफ्ट करने का मतलब होगा कि यूपी, बिहार और एमपी से आए उन हजारों लोगों की परेशानियों में एक और इजाफा जो दिल्ली में अपने कई रिश्तेदारों के होने की वजह से सफदरजंग में इलाज करवाने आ जाते हैं और अपने रहने का इंतजाम भी कर लेते हैं। झझ्झर में उन्हें कौन अपने घर में रहने देगा?
अचानक लखीमपुर खीरी से मेरे मित्र के के मिश्रा का फोन आता है, मैं उन से बात करता हूं। वे कहते हैं कि सुशांत, खीरी में भले ही मैं कार मेनटेन कर लूं लेकिन मेरे जैसे लाखों हिंदुस्तानियों की औकात नहीं है कि वे निजी अस्पताल में लाखों की रकम चुका कर इलाज करवाएं।
तभी अचानक किसी अखबार में मणिशंकर अय्यर के बयान पर नजर जाता है वे कॉमनवेल्थ गेम्स को कोस रहे हैं। मैं उनकी राय से इत्तेफाक रखने लगता हूं। आखिर इस गेम के नाम पर 50,000 करोड़ रुपैया किसकी जेब से खर्च हो रहे हैं ? और क्यों ? इतने रुपये में तो सफदरजंग जैसा करीब 50 सफदरजंग मुल्क के 50 जिलों में जरुर बन सकता था। हमारी सरकार ठेकेदारों और दलालों के चंगुल में फंस गई है जो भव्य खेलों का आयोजन करवाकर मेरा खून पी रही है।
मैं सोच रहा हूं कि अगर वाकई सफदरजंग को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया और इसकी जमीन कॉरपोरेट घरानों को दे दी गई तो अगली बार मेरा कोई रिश्तेदार या खुद मैं ही-कर्ज लेकर कहीं इलाज करवा रहा होउंगा।
बगल की दीबार पर सफदरजंग के एक स्टॉफ का बेशर्म इश्तेहार पोस्टर में खिलखिला रहा है-कृपया दो बीएचके का स्टॉफ क्वाटर किराए के लिए उपलब्ध है, संपर्क करें। आमीन!