Thursday, July 29, 2010

सफदरजंग के बहाने...

हाल ही में सफदरजंग अस्पताल के चक्कर काटने को मजबूर होना पड़ा। इससे पहले मैंने किसी बड़े अस्पताल का चक्कर नहीं काटा था। जब तक दिल्ली नहीं आया था तब तक बिहार में अपने घर के आसपास क्लिनिक या नर्सिंग होम से ही काम चल जाता था, लेकिन दिल्ली की बात और थी। यहां अस्पताल का मतलब कुछ और ही है, प्राईवेट में इलाज करवाना तो ज्यादातर लोगों के बूते की बात ही नहीं। यूं, दिल्ली के बारे में माना जाता है कि यहां देश के कुछ बेहतरीन अस्पताल हैं, जो काफी हद तक सही बात भी है। लेकिन वे अस्पताल काम के बेतहाशा बोझ के तले चरमरा रहे हैं। एम्स या सफदरजंग जब बना होगा तो उस समय की आबादी को ध्यान में रखकर इसे खासा बड़ा अस्पताल कहना चाहिए। लेकिन आज का हिंदुस्तान जब अपनी आबादी को करीब 120 करोड़ तक आंकने को बैचेन है-सफदरजंग मानो कराह रहा है।

हजारों की भीड़, लोगों का रेलमपेल, डॉक्टरों और नर्सों के चेहरे पर तनाव और उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन, सफदरजंग की मानो खासियत बन गई है। देश के सुदूरवर्ती इलाकों से आए लोग, बुंदेलखंडी से लेकर मैथिली तक बोलते हुए आपको सफदरजंग के कैम्पस में मिल जाएंगे। वे अपने मरीज के साथ एक बड़ी उम्मीद में यहां आते हैं और अस्पताल के कैंम्पस में दरी या चादर बिछाकर सो जाते हैं और अचानक कभी बारिश आती है और सब उठकर अस्पताल के अहाते में जाकर खड़े हो जाते हैं।

सफदरजंग सरकारी अस्पताल है, बिल्कुल वैसा ही जैसा कोई सरकार अस्पताल होता है। लेकिन राजधानी में होने की वजह से और सरकार का एक प्रतिष्ठित अस्पताल होने की वजह से इसका काम काफी चाक चौबंद है। मरीजों को मुफ्त का इलाज और दवाईयां तो मिलती ही है-खाना भी ठीक ठाक मिलता है। मैं जिस मरीज के साथ आया था उसे अगर किसी निजी अस्पताल में इलाज करवाने ले जाता तो खर्च कम से काम लाख टके से ऊपर का आता, लेकिन सफदरजंग में एक अठन्नी तक खर्च नहीं हुआ। ये देखकर मैं शायद पहली बार अपनी सरकार से नाराज नहीं हुआ। मुझे लगा कि मेरे मुल्क में एक सरकार भी है जो कभी-2 कुछ काम भी कर लेती है।

सफदर जंग में एक शानदार मेडिकल कॉलेज भी बनकर तैयार है और (कुछ लोगों के मुताबिक) हिंदुस्तान का सबसे बड़ा बर्न युनिट भी यहीं है। बगल में जयप्रकाश नारायण ट्रोमा सेंटर है और अस्पताल के पूरब में गर्व से इठलाता हुआ एम्स।

सरकार के इस अस्पताल में लोगों की रेलमपेल के बावजूद मुफ्त का इलाज देखकर मुझे कुछ पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र याद आ गए जिसमें जनता को मुफ्त की स्वास्थ्य और शिक्षा सेवा मुहैया करवाने की बात अक्सर की जाती है। वैसे तो क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी सभी पार्टियों ने स्वास्थ्य के बारे में काफी जबानी जमा-खर्च की है लेकिन मुझे लगता है कि वाम पार्टियां इस बारे में ज्यादा गंभीर है। मेरे दोस्त राजीव का छोटा भाई सुमित हाल ही में कलकत्ता से इंजिनियरिंग करके लौटा है उसका भी यहीं कहना है कि बंगाल के गांवों में सरकारी अस्पतालों की हालत काफी अच्छी है। बिहार-यूपी में इसकी कल्पना नहीं की जा सकती। इधर सुना नीतीश बाबू भी कुछ सक्रिय हुए हैं। केरल में भी सुना कि सरकारी अस्पताल टनाटन है।

मेरा ध्यान अचानक सफदरजंग की दीवार पर लगे एक पोस्टर पर जाता है जिसमें कर्मचारी यूनियन के एक धरने का जिक्र है। इसमें कहा गया है कि सफदरजंग को दिल्ली से झझ्झर(हरियाणा) न ले जाया जाए और इसकी जमीन को निजी हाथों में बेचने का षडयंत्र न किया जाए। मैं अचानक चौंक उठता हूं। सफदरजंग अस्पताल जिस जमीन पर बना है कायदे से दिल्ली के हिसाब से उस जमीन की कीमत करीब 20,000 करोड़ से कम नहीं होनी चाहिए। तो क्या सरकार इसे किसी अंबानी या टाटा को सौंपने वाली है ? मेरा मन बैचेन हो उठता है। दूसरी बात ये कि इसे हरियाणा शिफ्ट करने का मतलब होगा कि यूपी, बिहार और एमपी से आए उन हजारों लोगों की परेशानियों में एक और इजाफा जो दिल्ली में अपने कई रिश्तेदारों के होने की वजह से सफदरजंग में इलाज करवाने आ जाते हैं और अपने रहने का इंतजाम भी कर लेते हैं। झझ्झर में उन्हें कौन अपने घर में रहने देगा?

अचानक लखीमपुर खीरी से मेरे मित्र के के मिश्रा का फोन आता है, मैं उन से बात करता हूं। वे कहते हैं कि सुशांत, खीरी में भले ही मैं कार मेनटेन कर लूं लेकिन मेरे जैसे लाखों हिंदुस्तानियों की औकात नहीं है कि वे निजी अस्पताल में लाखों की रकम चुका कर इलाज करवाएं।

तभी अचानक किसी अखबार में मणिशंकर अय्यर के बयान पर नजर जाता है वे कॉमनवेल्थ गेम्स को कोस रहे हैं। मैं उनकी राय से इत्तेफाक रखने लगता हूं। आखिर इस गेम के नाम पर 50,000 करोड़ रुपैया किसकी जेब से खर्च हो रहे हैं ? और क्यों ? इतने रुपये में तो सफदरजंग जैसा करीब 50 सफदरजंग मुल्क के 50 जिलों में जरुर बन सकता था। हमारी सरकार ठेकेदारों और दलालों के चंगुल में फंस गई है जो भव्य खेलों का आयोजन करवाकर मेरा खून पी रही है।

मैं सोच रहा हूं कि अगर वाकई सफदरजंग को कहीं और शिफ्ट कर दिया गया और इसकी जमीन कॉरपोरेट घरानों को दे दी गई तो अगली बार मेरा कोई रिश्तेदार या खुद मैं ही-कर्ज लेकर कहीं इलाज करवा रहा होउंगा।

बगल की दीबार पर सफदरजंग के एक स्टॉफ का बेशर्म इश्तेहार पोस्टर में खिलखिला रहा है-कृपया दो बीएचके का स्टॉफ क्वाटर किराए के लिए उपलब्ध है, संपर्क करें। आमीन!

Sunday, July 4, 2010

बी हैप्पी...बी पोजिटिव...

क्या आपने कभी महसूस किया है कि अचानक कोई आता है और आपका चेहरा खिल उठता है, जबकि कुछ लोगों के आते ही आप नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं ! कई बार तो ऐसा होता है कि कई लोगों के जिक्र भर करने से, आप अपने आप को खिला हुआ महसूस करते हैं भले ही आप उससे न मिले हों! अध्यात्म और मनोविज्ञान की भाषा में कहें तो कुछ लोग पोजिटिव इनर्जी लेकर आते हैं और आपको एक पोजिटिव फीलींग से भर देते हैं जबिकि दूसरी तरफ कुछ लोग हमेशा निगेटिव इनर्जी ही छोड़ते रहते है। वे हमेशा दुख ही बांटते रहते हैं और सामने वाले को भी दुखी कर जाते हैं। दरअसल, निगेटिव इनर्जी बांटने वाले को लोग पसंद नहीं करते और उनसे बचना भी चाहिए। वे दुनिया की ऐसी भयावह तस्वीर आपके सामने खींचते हैं कि आपका आत्मविश्वास तो कमजोर होता ही है साथ ही आप भी निगेटिविटी से भर जाते हैं। ऐसे लोगों को लोग पसंद नहीं करते हैं और उनसे कन्नी काटने की कोशिश करते हैं।

अपने आसपास रहने वाले ऐसे लोगों को आप आसानी से पहचान सकते हैं। आप उनके कुछ बयानों पर महज गौर करते रहिए। मेरा टाईम ही खराब है... मैं ये नहीं कर सकता...ये कैसे हो सकता है...पूरी दुनिया स्वार्थी हो गई है...ये कुछ ऐसे बयान है जो बताते हैं कि सामने वाले की सोच कैसी है। ऐसे लोग अक्सर निंदा पुराण में भी खासी दिलचस्पी रखते हैं। इसको जानने का दूसरा तरीका ये भी है आप ये गौर करिये कि सामने वाला बंदा जिन-जिन लोगों का जिक्र कर रहा है वो उसके कैरेक्टर के किन पहलूओं को उजागर कर रहा है। अक्सर ऐसा होता है कि कुछ लोगों को दुनिया के किसी भी इंसान में कोई अच्छाई नहीं दिखाई देती। ऐसे लोगों से भी बचने की जरुरत है।
दरअसल, ये दुनिया अच्छाई और बुराई का मिला-जुला रुप है। पोजिटिव सोच वाले लोग अक्सर लोगों की अच्छाईयों की बात करते हैं, वे उनमें कुछ सीखने लायक चीज खोजते हैं। जबकि निगेटिव सोच वाले लोग अपने दिमाग का पोजिटिव रिशेप्टर ही बंद करके रखते हैं।

दरअसल, पोजिटिव इनर्जी वाला इंसान ही लीडरशिप एबलिटी पाल सकता है। वो उम्मीदें जगाता है, सपने दिखाता है और उसे पूरा करने का रोडमैप तैयार करता है। ऐसा ही इंसान टैलेंट को पहचान सकता है और उसे बढ़ावा भी दे सकता है। लेकिन यहां एक सवाल ये भी है कि मान लीजिए कोई निगेटिव इनर्जी से भर ही गया है तो क्या किया जाए ?

निगेटिविटी के कई कारण हो सकते हैं। व्यक्ति विशेष का पारिवारिक-सामाजिक माहौल, उसकी अपब्रिंगिग और उसको मिलने वाला गाईडेंस का इसमें रोल तो होता ही है, लेकिन उससे भी बड़ा रोल होता है उसे अपने जिंदगी में मिलने वाली नाकामयाबियों का।

अक्सर नाकामयाबी को लोग एक चुनौती की तरह नहीं लेते-वे उसे जिंदगी का अंत मान लेते हैं। दरअसल, ये दुनिया हमारी बदौलत नहीं चलती, हां हम उसे थोड़ा बेहतर बनाने में अपना योगदान जरुर दे सकते हैं। निगेटिविटी से भरे लोगों को चाहिए की वे हमेशा इनगेज रहें। खालीपान, निगेटिव उर्जा को और भी ज्यादा बढ़ाता है। निगेटिविटी से भरे लोग समाज से कटने लगते हैं, उन्हे लगता है कि उनके पास बांटने को कुछ भी नहीं है। जबकि ऐसे वक्त लोगों को नए-नए लोगों से मेलजोल की सबसे ज्यादा जरुरत होती है।
ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलने और बात करने पर कई तरह के अनुभव, विचार और मौके सामने आते हैं। सच्चाई तो ये है कि कोई काम तभी हो पाता है जब दो आदमी मिलते हैं। ऑनलाईन या टेलीफोनिक मीटींग्स से ज्यादा जरुरी वन-टू वन मीटिंग होता है क्योंकि तभी लोग आपकी पूरी परसनाईल्टी से वाकिफ हो पाते हैं।
इसके अलावा, दुनिया के कामयाब लोगों की बायोग्राफीज भी निगेटिव उर्जा से मुक्त होने में मददगार साबित होती है जिन्होंने खाक से उठकर आसमान को छुआ है। परिवार के लोगों और दोस्तों का प्रोत्साहन ऐसी दशा में बहुत मददगार साबित होता है।

तो चलिए, हम आज ही तय करें कि अपने को पोजिटिव इनर्जी से भरपूर बना लें। अगर हमें सुबह-सुबह चिड़ियों की चहचहाहट, खेतों में काम करते किसानों की मुस्कुराहट और मेहनतकश लोगों के चेहरों में कोई उम्मीद नजर आती है तो यकीन मानिए कि हम पोजिटिव इनर्जी से लवरेज हैं। बस हमें करना ये है कि इस पोजिटिव इनर्जी को बांटने में कोई कंजूसी नहीं करनी है। फिर देखिए जिंदगी किस तरह आगे बढ़कर आपका हाथ थाम लेती है!

(यह लेख आई नेक्स्ट में छप चुका है)