वैशाली
जाने की योजना अनायास ही बन गई। हम एक शादी में पटना गए थे और हमारे एजेंडे में
नालंदा और बोधगया था। लेकिन जिस शाम शादी होनी थी, वो दिन पूरा हमारे पास था और
पटना से वैशाली की दूरी कुछ खास भी नहीं। हमने सोचा था कि नालंदा-बोधगया जाने के
लिए हम टैक्सी कर लेंगे, लेकिन पटना जाकर हमने बाईक से जाने का फैसला किया ताकि
इलाके में हुए बदलाव को भी सूंघा जा सके।
पटना
के महेंद्रू इलाके में हम(मैं और मेरा दोस्त राजीव) रुके थे, वहां से हमने अशोक
राजपथ लिया और गांधी सेतु पहुंच गए। पटना में भीड़भाड़ बहुत बढ़ गयी है और अशोक राजपथ
का इलाका तो वैसे भी संकरा है। पटना बिल्कुल बनारस जैसा दिखता है जहां सड़कों पर
रिक्शा और ऑटो के बीच लंबी कारें अपना रास्ता बनाने की घनघोर कोशिश करती हैं।
गांधी सेतु की मरम्मत हो रही थी और कई सालों से हो रही थी। उत्तर बिहार को पटना से
जोड़नेवाला यह महत्वपूर्ण पुल राजनीतिक वजहों से अपने उद्धार की राह देख रहा है।
हाजीपुर
पहुंचकर हमने वैशाली की दूरी पूछी। पता चला कि वहां से लालगंज 18 किलोमीटर है और
फिर लालगंज से वैशाली 15 किलोमीटर। यानी हाजीपुर से वैशाली कुल जमा 33 किलोमीटर है
और पटना के केंद्र से करीब 50 किलोमीटर।
सड़क
ठीकठाक थी। यों पर्यटकों की बहुत आवाजाही नहीं दिख रही थी। बिहार सरकार थोड़ी
सक्रिय तो हुई थी कि उसने सड़कों के किनारे पर्यटन सूचना संबंधी बोर्ड लगवा दिया
था जो आज से दशक भर पहले नहीं दिखते थे।
रास्ते
में जो खास बात दिखी वो थी झुंड़ की झुंड लड़किया साईकिल पर सवार होकर स्कूल जा
रही थी। साथ ही निजी स्कूलों की बसें भी खूब देखने को मिली। यानी सरकार और निजी
स्कूल बच्चों और अभिभावकों को अपनी तरफ आकर्षित करने की होड़ में लगे थे। ये बिहार
का वो इलाका है जहां गंगा के उत्तरी तट पर केले की अच्छी खेती होती है। यहां का
चिनिया केला बहुत ही मशहूर है।
हमने
लालगंज में चाय पी और उसके बाद सीधे वैशाली रुके। रास्ते में जमीन ऊंची थी यानी
सड़क के बराबर। ये इलाका सब्जियों और व्यवसायिक फसलों के लिए अच्छा माना जाता है।
किसानों के पास थोड़ा बहुत पैसा आ जाता है। कच्चे मकान न के बराबर दिखे। यानी
बिहार के सुदूर उत्तरी या उत्तर-पूर्वी इलाकों से तुलना की जाए तो लोगों की स्थिति
ठीकठाक है।
वैशाली
के बारे में बचपन से किताबों में पढ़ता आया था लेकिन जो बात मालूम नहीं थी वो ये
कि वैशाली में सिर्फ अशोक स्तंभ या भगवान महावीर का जन्मस्थल ही नहीं है। वहां
ढ़ेर सारी ऐसी जगहें हैं जो अपने में इतिहास का खजाना छुपाए हुए हैं। वैशाली की
नगरबधू उपन्यास में आचार्य चतुरसेन ने अभिषेक पुष्करिणी का जिक्र किया है वो अभी
भी वहां है। अभिषेक पुष्करिणी वो तालाब था जिसमें स्नान करवाकर आम्रपाली को उस समय
की प्रथा के अनुसार जबरन नगरबधु घोषित कर दिया गया था जिसके खिलाफ आम्रपाली ने
विद्रोह किया था। वैशाली के गणपति की नियुक्त भी उसी तालाब जल से अभिषेक कर होता
था। बहरहाल वो कहानी आगे।
1 comment:
यात्रा विवरण लिखने में उस्ताद हो गए हो। आसपास की गतिविधियों को रेफरेंस के साथ ज़िक्र करना कोई तुमसे सीखे। तुम्हारे लेख, तुम्हारी यात्राओं के विवरण नहीं, दस्तावेज़ हैं।
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