Monday, February 25, 2013

वैशाली यात्रा-3


विशालगढ़ अवशेष के सुरक्षा प्रहरी ने हमें बताया था कि यहां जो जगहें देखने लायक हैं उसमें बाईं तरफ चमगादड़ पेड़, माया मीर साहब की दरगाह और बौना पोखर का जैन मंदिर है और दाईं तरफ मोनेस्टरीज, अभिषेक पुष्करिणी, संग्रहालय, बुद्ध के अस्थि कलश, शांति स्तूप, अशोक स्तंभ और आगे की तरफ भगवान महावीर का जन्मस्थल वासोकुंड है। हमने पहले वहां से सटे जगहों को देखने का फैसला किया।
 विशालगढ अवशेष के पास चमगादड़ पीपल का पेड़

विशालगढ़ अवशेष से करीब एक किलोमीटर दक्षिण जाने पर एक पीपल का पुराना पेड़ था जिस पर सैकड़ों की संख्या में विशालकाय चमगादड़ लटके हुए थे। लोगों का कहना था कि वह पेड़ सैकड़ों सालों से चमगादड़ों का डेरा है। पेड़ को देखकर ऐसा तो नहीं लगा कि वह हजारों साल पुराना होगा, लेकिन कुछेक सौ साल पुराना होने में कोई संदेह नहीं। हां, आसपास दूसरे पेड़ भी थे लेकिन उन पर चमगादड़ नहीं थे! इसका क्या रहस्य था, पता नहीं चल पाया। लेकिन जो लोग वैशाली घूमने जाते हैं, उन्हें उस पेड़ के बारे में जरूर बताया जाता है। हमने चमगादड़ों के साथ तस्वीरें खिंचवाई और साईकिल पर सवार लोगों ने हमें मुस्कुराकर देखा।

बगल में ही एक गांव था जिससे होकर हमें काजी मीरन सुतारी की दरगाह तक जाना था। उस गांव का नाम बसाढ़ है जिसका जिक्र आचार्य चतुरसेन ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास वैशाली की नगरबधू में किया है। छोटा सा गांव था जिसे देखकर लग रहा था कि खातेपीते लोगों का गांव है जिसमें अधिकांश घरों पर ताला लटका था और लोग अप्रवासी हो गए थे।
काजी मीरन सुतारी की दरगाह, वैशाली


गांव से बाहर दाईं तरफ एक ऊंचे से चबूतरे पर काजी साहब की मजार थी। नीचे कुछ झोपड़िया थीं, जहां कुछ कुपोषित बच्चे खेल रहे थे। मजार पर सन्नाटा छाया हुआ था और वहां कोई नहीं था। वहां का इतिहास बतानेवाला कोई जानकार नहीं मिला। ऊपर से देखने पर वैशाली का विहंगम दृश्य दिख रहा था। खेतों में सरसों के फूल चमक रहे थे और खेतों के पार विशालगढ़ के अवशेष और मोनेस्टरीज।

जब हम वहां से बौना पोखर में जैनमंदिर देखने गए तो वहां के पुजारी ने हमें बताया कि काजी साहब की मजार करीब 600 साल पुरानी है और वह एक विवादित स्थल है। विवादित स्थल ? लेकिन हमें तो विशालगढ़ के कर्मचारी ने बताया था कि वो भी कोई ऐतिहासिक जगह है जिसे देखना चाहिए। बहरहाल जो भी हो, दिल्ली आकर गूगल के सहारे जो जानकारी मिली उसका लव्वोलुआब ये था कि काजी साहब एक प्रसिद्ध संत थे जिनकी वो मजार थी। लेकिन बिहार सरकार या भारतीय पुरातत्व विभाग ने वहां कोई पट्टिका क्यों नहीं लगवाई थी? अपने ऐतिहासिक धरोहरों की ये अवहेलना हमें वैशाली में कई जगह महसूस हुई।

2 comments:

Manjit Thakur said...

ऐसा है संत और सूफी शब्द के इस्तेमाल में सावधानी बरतनी चाहिए। काजी साहब जरूर सूफी होंगे...काल का फर्क है। देख लेना। बच्चे खेल रहे थे, कि जगह कुपोषित बच्चे खेल रहे थे के इस्तेमाल ने पूरे वाक्य की व्यंजना बदल दी। गजब।

AVINASH KUMAR said...

सुंदर !