मेरे गांव खोजपुर से 1 किलोमीटर दिक्षिण बलिराजपुर नामका गांव है। इसकी दूरी मधुबनी जिला मुख्यालय से करीब 34 किलोमीटर है। यहां एक प्राचीन किला है जो तकरीबन 365 बीघे में फैला हुआ है। यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन है । किले के बाहर लगी साइनबोर्ड के मुताबिक यह किला मौर्य कालीन है और यहां उस समय के मिट्टी के बर्तन और सोने के सिक्के मिले हैं। आसपास के गांवो में यह किंवदन्ती फैली हुई है कि ये किला राक्षस राज बलि की राजधानी थी और आज भी कभी-कभी वो किले में देखे जाते है। लोगबाग शाम के बाद किले की तरफ जाने से डरते हैं। शायद ये अफवाहें सरकारी कर्मचारियों की फैलाई हुई है ताकि लोग किले का अतिक्रमण न करे और उन्हे ढ़ंग से ड्यूटी न करनी पड़े।
किला वाकई अद्भुत है। किले की दीवार अपने भग्नावस्था में भी अपने यौवन की याद दिलाती है।किले की दीवार इतनी चौड़ी है कि इसपर आसानी से एक रथ तो गुजर ही जाता होगा। दीवार की ईंटे दो फीट लंबी, और तकरीबन एक फीट चौड़ी है। किले की के बीच में एक तालाब है..कहा जाता है कि इसके बीच में एक कूंआ है जिसमें एक सुरंग है। और इस सुरंग का रास्ता कहीं और निकलता है। पुराने जमाने में राज परिवार के लोगों के लिए आपातकाल के लिए इस तरह का सुरंग बनाया जाता था।
इस किले के अगल-बगल के गांवो का नाम भी काफी रोचक है और थोड़ा-थोड़ा एतिहासिक भी..। किले के पूरब में है -फुलबरिया गांव और उससे सटा हुआ है गढ़ी जो अब अपभ्रंश होकर गरही बन गया है। किले के पश्चिम में है रमणीपट्टी और उससे सटा हुआ है भूप्पटी। किले के दक्षिण के गांव है बिक्रमशेर जहां प्राचीन सूर्य मंदिर के अवशेष मिले हैं। गौरतलब है कि सूर्य का मंदिर पूरे देश में बहुत कम जगह है।
बलिराज गढ़ की खुदाई पहली बार 1976 के आसपास हुई थी जब केंद्र में कर्ण सिंह इस बिभाग के मंत्री थे। इसके उद्धार के लिए मधुबनी के सांसद भोगेन्द्र झा और कुदाल सेना के सीताराम झा ने काफी काम किया है। ।
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि बलिराज गढ़ बंगाल के पाल राजाओं का किला हो सकता है । जबकि कुछ का कहना है कि यह मौर्यों का उत्तरी सुरक्षा किला भी हो सकता है। हालांकि कुछ इतिहासकार इसे मिथिला की प्राचीन राजधानी मानने से भी इंकार नहीं करते। इसकी वजह वो ये बताते हैं कि आज का जनकपुर(जो
नेपाल में स्थित है) काफी नयी जगह है और वहां के मंदिर बहुत हाल में, तकरीबन 18वीं सदीं में इंदौर की रानी दुर्गावती के समय बनाए गए थे और उसकी एतिहासिकता भी संदिग्ध है। बहरहाल, मुझे दस साल पहले की कहानी याद है जब वैशाली के एक सज्जन ने इस बावत मुझ से कहा था कि वाकई बलिराजगढ़, मिथिला की प्राचीन राजधानी है।
उन्होने ह्वेनसांग के पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा जिसके मुताबिक पाटलिपुत्र से एक खास दूरी पर वैशाली है..और उससे एक खास दूरी पर काठमांडू है उसके बिल्कुल दक्षिण-पूर्वी दिशा में मिथिला की प्राचीन राजधानी है। आज का जनकपुर उस खास दूरी व दिशा में सही नहीं बैठता। पता नही ये बात कितनी सच है। इसके आलावा, रामायण में भी मिथिला की प्राचीन राजधानी के संदर्भ कुछ संकेत हैं। और वो भी इसी जगह को संकेत कर मिथिला की राजधानी बताते हैं।
सांसद भोगेन्द्र झा के मुताबिक, राजा बलि की राजधानी महाबलीपुरम हो सकती है जो दक्षिण भारत में स्थित है। सबसे बड़ी बात है कि पूरे मिथिलांचल में इतना पुराना कोई किला नहीं है जो यहां कि प्राचीन राजधानी होने का दावेदार हो सके। किले के भीतर उबड़-खाबड़ जमीन है जो प्राचीन राजमहलों के जमीन के अंदर धंस जाने का प्रमाण है। यहां एक-आध जगह ही खुदाई की गई है और यहां कीमती धातु और सोनेचांदी की वस्तुएं मिली हैं।अगर कुछ और खुदाई की जाए तो कई रहस्यों से आवरण उठ जाएगा। सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रयास ऐसा नहीं हो पाया है कि बलिराज गढ़ की प्राचीनता को दुनिया के सामने रखने की कोशिश की जाए।
एक सामान्य सी सड़क से इसे नजदीक के गांव खोजपुर से जोड़ दिया गया है और इतिश्री कर दी गई है। अगर, बलिराज गढ़ की खुदाई कायदे से की जाए और एक संग्रहालय बना दिया जाए तो काफी कुछ हो सकता है। मिथिलांचल के हृदय मे स्थित होने की वजह से यहां मिथिला पेंटिंग का भी कोई संस्थान और आर्ट गैलरी वगैरह बनाया जा सकता है। एक अच्छी सड़क के साथ आधुनिक विज्ञापन, बलिराज गढ़ को पर्यटकों की निगाह में ला सकता है और इस इलाके के पिछड़ेपन को दूर कर सकता है।
किला वाकई अद्भुत है। किले की दीवार अपने भग्नावस्था में भी अपने यौवन की याद दिलाती है।किले की दीवार इतनी चौड़ी है कि इसपर आसानी से एक रथ तो गुजर ही जाता होगा। दीवार की ईंटे दो फीट लंबी, और तकरीबन एक फीट चौड़ी है। किले की के बीच में एक तालाब है..कहा जाता है कि इसके बीच में एक कूंआ है जिसमें एक सुरंग है। और इस सुरंग का रास्ता कहीं और निकलता है। पुराने जमाने में राज परिवार के लोगों के लिए आपातकाल के लिए इस तरह का सुरंग बनाया जाता था।
इस किले के अगल-बगल के गांवो का नाम भी काफी रोचक है और थोड़ा-थोड़ा एतिहासिक भी..। किले के पूरब में है -फुलबरिया गांव और उससे सटा हुआ है गढ़ी जो अब अपभ्रंश होकर गरही बन गया है। किले के पश्चिम में है रमणीपट्टी और उससे सटा हुआ है भूप्पटी। किले के दक्षिण के गांव है बिक्रमशेर जहां प्राचीन सूर्य मंदिर के अवशेष मिले हैं। गौरतलब है कि सूर्य का मंदिर पूरे देश में बहुत कम जगह है।
बलिराज गढ़ की खुदाई पहली बार 1976 के आसपास हुई थी जब केंद्र में कर्ण सिंह इस बिभाग के मंत्री थे। इसके उद्धार के लिए मधुबनी के सांसद भोगेन्द्र झा और कुदाल सेना के सीताराम झा ने काफी काम किया है। ।
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि बलिराज गढ़ बंगाल के पाल राजाओं का किला हो सकता है । जबकि कुछ का कहना है कि यह मौर्यों का उत्तरी सुरक्षा किला भी हो सकता है। हालांकि कुछ इतिहासकार इसे मिथिला की प्राचीन राजधानी मानने से भी इंकार नहीं करते। इसकी वजह वो ये बताते हैं कि आज का जनकपुर(जो
नेपाल में स्थित है) काफी नयी जगह है और वहां के मंदिर बहुत हाल में, तकरीबन 18वीं सदीं में इंदौर की रानी दुर्गावती के समय बनाए गए थे और उसकी एतिहासिकता भी संदिग्ध है। बहरहाल, मुझे दस साल पहले की कहानी याद है जब वैशाली के एक सज्जन ने इस बावत मुझ से कहा था कि वाकई बलिराजगढ़, मिथिला की प्राचीन राजधानी है।
उन्होने ह्वेनसांग के पुस्तक का जिक्र करते हुए कहा जिसके मुताबिक पाटलिपुत्र से एक खास दूरी पर वैशाली है..और उससे एक खास दूरी पर काठमांडू है उसके बिल्कुल दक्षिण-पूर्वी दिशा में मिथिला की प्राचीन राजधानी है। आज का जनकपुर उस खास दूरी व दिशा में सही नहीं बैठता। पता नही ये बात कितनी सच है। इसके आलावा, रामायण में भी मिथिला की प्राचीन राजधानी के संदर्भ कुछ संकेत हैं। और वो भी इसी जगह को संकेत कर मिथिला की राजधानी बताते हैं।
सांसद भोगेन्द्र झा के मुताबिक, राजा बलि की राजधानी महाबलीपुरम हो सकती है जो दक्षिण भारत में स्थित है। सबसे बड़ी बात है कि पूरे मिथिलांचल में इतना पुराना कोई किला नहीं है जो यहां कि प्राचीन राजधानी होने का दावेदार हो सके। किले के भीतर उबड़-खाबड़ जमीन है जो प्राचीन राजमहलों के जमीन के अंदर धंस जाने का प्रमाण है। यहां एक-आध जगह ही खुदाई की गई है और यहां कीमती धातु और सोनेचांदी की वस्तुएं मिली हैं।अगर कुछ और खुदाई की जाए तो कई रहस्यों से आवरण उठ जाएगा। सरकार की तरफ से कोई ठोस प्रयास ऐसा नहीं हो पाया है कि बलिराज गढ़ की प्राचीनता को दुनिया के सामने रखने की कोशिश की जाए।
एक सामान्य सी सड़क से इसे नजदीक के गांव खोजपुर से जोड़ दिया गया है और इतिश्री कर दी गई है। अगर, बलिराज गढ़ की खुदाई कायदे से की जाए और एक संग्रहालय बना दिया जाए तो काफी कुछ हो सकता है। मिथिलांचल के हृदय मे स्थित होने की वजह से यहां मिथिला पेंटिंग का भी कोई संस्थान और आर्ट गैलरी वगैरह बनाया जा सकता है। एक अच्छी सड़क के साथ आधुनिक विज्ञापन, बलिराज गढ़ को पर्यटकों की निगाह में ला सकता है और इस इलाके के पिछड़ेपन को दूर कर सकता है।
8 comments:
आवाज ऊठाये रहिये, जरुर पहुँचेगी जरुरी कानों तक.
मेरी शुभकामनाऐं.
आज का पटना, प्राचिन गौरवशाली पाटलीपुत्र है । मै जब पहली बार पटना गया तो मन मे उत्कट अभिलाशा थी की प्राचीण भग्नावशेषो को देखने का मौका मिलेगा। लेकिन आजादी के बाद भी सरकारो ने इस क्षेत्र मे कोई काम नही किया है। हम वह इतिहास पढ रहे है जो अंग्रेज हमे गुलाम बनाए रखने के लिए गढ गए है। हमारे शाषक आज भी उनके गुलाम ही है। उनसे अपेक्षा रखना कितना सार्थक है ???
सुशांत जी बधाई, मिथिला के रहस्य पर से परदा उठाने के लिए.. देखते हैं एएसआई के कान पर कब जूं रेंगती है..
सुशांत जी बधाई,
आवाज ऊठाये रहिये मेरी शुभकामनाऐं आप ki sath hi
सुशांत जी बधाई,
आवाज ऊठाये रहिये मेरी शुभकामनाऐं आप ki sath hi
प्राचीन मिथिला की जय हो !
प्राचीन मिथिला की जय हो !
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