शिखर हमारे साथ काम करती है...और एक बेहतरीन कवियत्री भी है..उसने एक कविता भेजी है...
आज मै चुपचाप बैठी सोच रही थी
अपने ही भावो मे कितनी उलझ रही थी
कि जिन्दगी और मौत कितनी करीब है
एक संसार मे लाती है तो दुसरी ले जाती है
लेकिन शमशान घाट पर ही
जाकर वैराग्य क्यो जागते .है
और मृत्यु पर ही सारे सगे सम्बन्धी ,
बिलख बिलख कर रोते क्यो है
शायद यहाँ हम एक पूरी जिन्दगी
का अन्त पाते है.
मरने वाले तो मर जाते है
पर कुछ लोग उनकी मृत्यु मे
अपना सारा जीवन तलाशते है(मेरी माँ)
5 comments:
बहुत भावुक अभिव्यक्ति है-दो शब्दों में सार आ गया-मेरी माँ. बहुत खूब. हमारी बधाई प्रेषित करें कवियत्री जी को.
सुशांत जी सचमुच निर्मल हृदय से लिखी गई कविता है। "शिखर" जी सचमुच बधाई की हकदार हैं। और आप भी...ऐसे छुपे हुए टेलेंट को बाहर लाने के लिए।
bhawuk kawaita.............
अजी, िशखर कैसा नाम हुआ....किसी लड़की का नाम तो नहीं लगता....कविता देखकर जो पहला सवाल कौंधा वो यही था। शुरुआती कौतूहल अंत में जाकर भावनाओं के सागर में समा गया। खैर, भावनाएं अच््छी हैं...बाकी....िशखर जी लिखती रहें, भावनाएं धीरे धीरे वो आकार लेने लगेंगी जिसकी बारिश में हमेशा भीगने को मन करेगा..
यह कविता मुझे बहुत आच्छी लगती है....जिसने भी लिखी है...खूब लिखी है.....
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