हाल ही में काबुल में भारतीय दूतावास पर हमले के बाद बुश साहब ने कहा कि अगर आगे से आईएसआई की हरकत को काबू में नहीं किया गया तो पाकिस्तान को इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़ेगें। उधर पाक की नई सरकार अपना जड़ जमाने की भरपूर कोशिश कर ही रही थी, उसने इसे एक मौके के रुप में लपका और आनन फानन में आईएसआई को रक्षा मंत्रालय से हटाकर गृहमंत्रालय में लाने की घोषणा कर दी। लेकिन आईएसआई की ताकत को भांफने में गिलानी साहब से थोड़ी चूक हो गई। वो उधर अमेरिका उड़े-खबर आई कि 'गड़बड़' हो गई हैं। तुरंत फैसले को रोलबैक कर दिया।
उधर, जान बचाने का मौका खोज रहे मुशर्रफ साहब ने मानो इसे आईएसआई की निगाहों में आने का एक और मौका समझा। तुरंत गोला दागा- आईएसआई तो पाकिस्तान की फर्स्ट लाईन ऑफ डिफेन्स है और इसे कमजोर करने की साजिश दुश्मनों ने रची है।लेकिन सेना है कि मुशर्रफ के पक्ष में खुल कर कुछ बोल नहीं रही है। वैसे भी सेना के मुखिया जनरल कयानी एक जमाने में भुट्टो परिवार के नजदीकी रहे हैं। ये बनजीर ही थी जिसने कयानी को अपना सैन्य सलाहकार बनाया था। उससे पहले कयानी साहब ने कॉलिन पावेल के साथ अमरीका में ट्रेनिंग भी ली थी । जाहिर है उनके तार अमरीका में भी गहरे जुडे़ हैं। ऐसे में अगर पीपीपी और पीएमएल उनके खिलाफ महाभियोग ला रही है तो सेना उनका कितना साथ देगी, कहना मुश्किल है।
इधर, अपने यहां नए सीबीआई डाईरेक्टर ने पद संभालते ही घोषणा कर दी कि दाऊद को दबोचना उनका मुख्य एजेंडा है। ये वहीं अश्वनी कुमार हैं जो अबू सलेम को पकड़ कर लाए थे। तो क्या कुमार को इस बात का पहले से एहसास था कि पाकिस्तान में कुछ खिचड़ी पकने वाली है। लोग कहते हैं कि अगर मुशर्रफ की बिदाई हुई तो फिर पहला काम आईएसआई का पर कतरना होगा-और ऐसी हालत में पाकिस्तान की सरकार अमरीकी दबाव में दाऊद को पकड़ कर भारत को सौंप देगी। वैसे भी ये गुडविल गेस्चर के लिए जरुरी है क्योंकि पाकिस्तान का ये भस्मासुर संस्थान काबुल और हिंदुस्तान में बम धमाके करवा कर काफी किरकिरी कर चुका है।
तो क्या ये माना जाए कि इन्ही बातों से ध्यान हटाने के लिए आईएसआई और सेना के कुछ कट्टरपंथियों ने हाल में पहले सीमा पर गड़बड़ी और बाद में घाटी में अमरनाथ मुद्दे को गरमाया है। जानकारों का कहना है कि आनेवाले दिनों में कुछ भी हो सकता है। सत्ता के सौदागर अपनी गद्दी बचाने के लिए दोनों देशों बीच जंग भी छेड़ सकते हैं।
3 comments:
ये मुद्दा बिल्कुल अलग है लेकिन मैं सोचता हूं कि दोनों देशों की इतनी औकात नहीं हुई है कि शायद इतनी दूर तक जा सकें। लेकिन ये राजनीति है कुछ भी यहां संभव है जम्मू की आग की तरह।
सियासी चालों का क्या ठिकाना-किसको निशाना बना लें.
भारत के सभी बम धमाकों में इस्तेमाल बमों पर आईएसआई मुहर लगी है..
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