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पाठक इन शब्दों को पढ़कर परेशान या गुमराह न हों, न ही इन पंक्तियों के लेखक का कांग्रेसीकरण हो गया है। ये शब्द हैं इनफोसिस के अध्यक्ष नारायण मूर्ति के। अपने पाठकों की याददाश्त के लिए बताते चलें कि ये वहीं नारायण मूर्ति हैं जिनका नाम एक दौर में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए लंबे समय तक हवा में रहा था। माफ कीजिएगा, जरा हिंदी कठिन लिखी हुई है, क्योंकि ये पीटीआई की खबर का शब्दश: अनुवाद है जो नारायणमूर्ति की पांडित्यपूर्ण अंग्रेजी में दिया गया था। मौका था 15 सितंबर 2009 को मैसूर में इनफोसिस के दूसरे ग्लोबल एजुकेशन सेंटर के उद्धाटन का जो सोनिया गांधी के हाथों संपन्न हुआ था। लेकिन खबर ये नहीं है।
ठीक उसी दिन मैसूर से तकरीबन 2500 किलोमीटर उत्तर में पंजाब के शहर लुधियाना में सोनिया गांधी के बेटे और कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी यूथ कांग्रेस के एक ट्रेंनिंग कैम्प का उद्धाटन करते हैं। इस कैम्प में य़ुवा कांग्रेसियों को चार दिन का ट्रेनिंग दिया जाना है कि तृणमूल जनता(ग्रासरुट मासेज) तक कैसे पहुंचा जाए और कांग्रेस को कैसे सत्ता की स्वभाविक पार्टी बनाए रखा जाए। इस कैम्प को साफ्ट स्किल का ट्रेंनिंग देने के लिए बंगलूरु से एक कंसलटेंसी को बुलाया जाता है जिसका नाम है- इस्टिट्यूट आफ लीडरशिप एंड इस्टिट्यूशनल डेवलपमेंट। इस फर्म के साईट पर जाएं तो पता चलता है कि इसके डाईरेक्टर का नाम है- डा जी के जयराम। डा जयराम इंफोसिस लीडरशिप इस्टिट्ट्यूट के प्रमुख रहे हैं। इस फर्म को एक ट्रस्ट चलाती है जिसकी एक ट्रस्टी है रोहिणी निलकेणी। रोहिणी निलकेणी, नंदन निलकेणी की पत्नी है। अब ये बताना कोई जरुरी नहीं है कि ये वहीं नंदन निलकेणी हैं जिन्हे सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली यूपीए सरकार ने अपने सबसे बड़ी महात्वाकांक्षी परियोजना यूनिक आईडेंटीफिकेशन कार्ड का अध्यक्ष बनाया हुआ है।
अब यहां दो अनुमान तो लगाए ही जा सकते हैं। अगर बीजेपी के धुरंधर, डा कलाम जैसे वैज्ञानिक को राष्ट्रपति बनाकर ‘सेक्युलर’ होने का भी तमगा हासिल कर सकते हैं तो भला कांग्रेस क्यों नहीं डा नारायण मूर्ति को राष्ट्रपति बनाकर अपना आधुनिकतावादी चेहरा दिखा सकती ? बिल्कुल दिखा सकती है, माना कि पिछले बार वाम एक महिला के नाम पर अड़ गया था-अब क्या परेशानी है ? नारायणमूर्ति ने अपने आपको निष्ठावान तो कमसे कम साबित कर ही दिया है !
इस खबर का मकसद न तो नारायण मूर्ति की पहुंच का मर्सिया पढ़ना है न ही उनकी गरिमा और अहमियत को ठेस पहुंचाना। इस खबर का मकसद सनसनीखेज पत्रकारिता करनेवाले भाई बंधुओं को आईना दिखाना है कि असल सनसनी तो यहां थी जिसमें वे चूक गए। खैर, हमारे देश में लकीर पीटने का भी रिवाज रहा है, सो वो अभी भी इस पर अमल कर सकते हैं।
4 comments:
इस सनसनी के लिए आपको बहुत बहुत बधाई और आभार ।
abe sale tu itna sochta kaise hai.
भैया बहुत बढ़ियां लिखे है!
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