येकहानियाँ हमें क्या बताती हैं ? ये ऐसे लोग हैं जो कल के लीडर हैं और इन्होंने अपने अंदर के लीडरशिप की उर्जा को बखूबी पहचाना है और उसे साकार रुप देने की कोशिश की है। ये ऐसे लोग हैं जिन्होंने अपने व्यक्तिगत काम के अलावा भी कुछ करने का जज्वा जिंदा रखा है अपनी अलग राह बनाई है। ये कहांनिया हमें बताती हैं कि लीडर के पास हमेंशा एक एडवांस एजेंडा होता है और वे कभी खाली नहीं होता। वे हमेशा इनिशिएट करते हैं। गांधीजी की जब हत्या हुई तो उससे पहले वो बांग्ला सीख रहे थे और सीखने के काफी करीब पहुंच गए थे। गीता में कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि, ' हे अर्जुन कर्म किए जा, फल की चिंता मत कर, क्योंकि फल तो तुम्हारे हाथ में ही नहीं है। इसी तरह लीडर जो होते हैं वे तो बस कर्म किए जाते हैं भले ही लोग उस पर कुछ भी प्रतिक्रिया क्यों दें। वे जो चीज एक बार ठान लेते हैं फिर वे उससे पीछे नहीं हटते। वे क्विक डिसीजन लेते हैं और एक बार जब ले लेते हैं तो उस पर चट्टान की तरह खड़े रहते हैं। कार्ल मार्क्स ने कहीं लिखा है कि मध्यम और निम्नवर्ग के लोग कई बार इसलिए माता खा जाते हैं कि वे तेजी से फैसला नहीं ले पाते, जबकि इसके उलट उच्चवर्ग के लोगों में ये गुण तकरीबन अनुवांशिक रुप ले चुका होता है और वो कम काबिलियत के बावजूद कई बार कामयाब होते हैं। कहने का मतलब ये है कि एक लीडर को हमेशा क्विक डिसीजन लेना चाहिए और उसे किसी डाइलेमा का शिकार नहीं होना चाहिए। ऐसा देखा गया है कि लीडर अतीतजीवी नहीं होते। वे अतीत से सिर्फ सीखते भर हैं, उसकी ओर कभी लौटते नहीं। वे बड़ी बेदर्दी से अतीत को अपनी जिंदगी से काट फेंक देते हैं। महाभारत में अगर कृष्ण के जीवन को गौर से देखें तो कृष्ण का चरित्र पूरी तरह से एक लीडर का चरित्र है। कृष्ण, गोकुल से जब मथुरा आए तो फिर वे कभी लौटकर गोकुल नहीं गए। वे उस यशोदा को भी बड़ी बेदर्दी से भूल गए जिन्होंने उन्हें पाला था। मथुरा को एक बार छोड़ा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। हस्तिनापुर की राजनीति में जब वे सक्रिय हुए तो बहुत दिनों तक द्वारका को भूल गए। कुल मिलाकर उनका तयशुदा काम ही उनकी पूजा थी। वे उसे डूबकर करते थे। एक लीडर के लिए कमिटमेंट और फोकस बड़ी चीज है। कहते हैं कि चर्चिल जब रिटायर हो गए तो वे गुलाब की बागवानी में डूब गए। एक पत्रकार ने जब उनसे राजनीति पर बात करनी चाही तो उन्होंने कहा कि बेहतर है कि गुलाब पर बात की जाए। कहने का मतलब ये कि लीडर अपने काम में फोकस्ड होता है।
दूसरी अहम बात ये कि लीडर जो भी करता है वे उसका अपना नहीं होता, वो एक बड़े काउज के लिए करता है। अक्सर इसिलिए एक लीडर की जाती जिंदगी बहुत अच्छी नहीं होती। ये बात गांधी से लेकर लेनिन तक पर लागू होती है। अहम बात ये भी है कि एक लीडर प्रतिभाओं को बखूबी पहचानता है। वो हर घड़ी सही टैलंट को ग्रूम करने की कोशिश करता है और सेंकेंड जेनेरेशन लीडरशिप तैयार करता है।
कहते हैं कि लीडर हमेशा जन्मजात होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। लीडरशिप की क्वालिटी कमोवेश हरेक इंसान में होती है, बस उसे ग्रूम करने की जरुरत होती है। कुछ परिवेश का असर तो कुछ शैक्षणिक माहौल भी इसमें अहम रोल निभाते हैं लेकिन अगर सही गाईडेंस मिल जाए तो सोने में सुहागा हो जाता है। तो चलिए, हम आज ही अपने अंदर के लीडर को पहचानते हैं और बन जाते हैं कल के हिंदुस्तान की आवाज। आखिर कहाबत है न...कि गरते हैं शहसबार ही मैदाने जंग में।
कहते हैं कि लीडर हमेशा जन्मजात होता है। लेकिन ऐसा नहीं है। लीडरशिप की क्वालिटी कमोवेश हरेक इंसान में होती है, बस उसे ग्रूम करने की जरुरत होती है। कुछ परिवेश का असर तो कुछ शैक्षणिक माहौल भी इसमें अहम रोल निभाते हैं लेकिन अगर सही गाईडेंस मिल जाए तो सोने में सुहागा हो जाता है। तो चलिए, हम आज ही अपने अंदर के लीडर को पहचानते हैं और बन जाते हैं कल के हिंदुस्तान की आवाज। आखिर कहाबत है न...कि गरते हैं शहसबार ही मैदाने जंग में।
1 comment:
एक चरवाहे से दुनिया के महान युद्ध के महानायक तक का सफ़र वह भी बिना खून-खराबा, भावनाओं पर अदभुत नियन्त्रण.....आनन्दित करता है, कृष्ण का चरित्र और इसी राह पर चलने वाले कुछ नाम और याद है मुझे जीसस क्राइस्ट, मोहम्मद, और महात्मा गांधी, इन्होंने भी बिना हथियार के दुनिया में क्रान्तियों का प्रतिपादनकि या और उसके स्वरूप को भी बदल दिया!
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