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वैसे किसी भी संगठन को किसी भी तरह के सर्वे करने का हक है और किसी भी धर्म के लोगों को संविधान के मुताबिक अपने धर्म के प्रचार-प्रसार और आयोजन करने का हक है। लेकिन इन तीनों घटनाओं का संदर्भ, इससे जुड़ी हुई हाल की घटनाएं और इसके समय का चयन कुछ दूसरी तरफ इशारा कर रहा है।
सबसे पहले बात सिमरिया कुंभ की। हाल ही में दिल्ली में बिड़ला मंदिर में सिमरिया में कुंभ के आयोजन को लेकर 20 फरवरी को एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन में करपात्री अग्निहोत्री जी महाराज, गोविन्दाचार्य, हिंदू महासभा के अध्यक्ष चंद्रप्रकाश कौशिक समेत कई दूसरे क्षेत्र के लोग भी मौजूद थे। हमारे देश में परंपरा से चार धार्मिक स्थलों पर कुंभ मनाया जाता है और इसके अलावा कई दूसरे जगहों पर भी समय-समय पर लोग इस तरह की गतिविधियों में जुटते रहे हैं, यूं उसे कुंभ का नाम नहीं दिया जाता। हाल के सालों में उन सब जगहों पर बकायदा 'कुंभ' के नाम से आयोजन करने की मांग करवायी जाती रही है और धार्मिक ग्रंथों से इसके बावत सबूत और उल्लेख जुटाने की कोशिश की जाती रही है। सिमरिया कुंभ के सिलसिले में भी कुछ इसी तरह की कोशिश की जा रही है। गुजरात में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद वहां डांग जिले में भी एक इसी तरह के कुंभ का आयोजन शुरु किया गया है और ये कहने की जरुरत नहीं है कि उसके क्या निहितार्थ है।
सिमरिया, उत्तर बिहार के लोगों के लिए वैसा ही है, जैसा दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब वालों के लिए हरिद्वार। सदियों से यहां लोग गंगा स्नान करने, अस्थियों को प्रवाहित करने और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए आते रहे हैं। राष्टीय स्तर पर यह जगह रामधारी सिंह दिनकर की जन्मस्थली होने की वजह से भी जाना जाता है। लेकिन सही मायनों में कहें तो सिमरिया वर्तमान बिहार का भौगोलिक केंद्रविन्दु है। यह जगह भौगोलिक रुप से पटना से भी ज्यादा केंद्रीय है और परिवहन साधनों से बेहतरीन ढ़ंग से जुड़ा हुआ है। उत्तर और दक्षिण बिहार को जोड़नेवाला गंगा पर सबसे पहला पुल यहीं बना था, उत्तर-पूर्व की ओर जानेवाली रेलगाड़ियां इसी इलाके से होकर गुजरती है। इसके उत्तर-पूर्वी दिशा में वो इलाका शुरु होता है जो कोसी और आगे सीमांचल के नाम से जाना जाता है। बिहार के इस इलाके में मुसलमानों की सबसे ज्यादा आबादी है और नब्बे के दशक में यह इलाका बीजेपी का एक 'किला' बनके उभरा है। किसी भी आयोजन और महोत्सव के क्या 'कारण' होते हैं, इससे जागरुक लोग पहले से वाकिफ हैं। इस संगोष्ठी के प्रेरणा पुरुष करपात्री अग्निहोत्री चिदात्मान जी महाराजजी बताए जाते हैं। उनके बारे में तो बहुत नहीं मालूम लेकिन जिन्हें इतिहास पढ़ने में रुचि हो उन्हें शायद मालूम होगा कि सन् पचास- साठ के दशक में एक भी करपात्री जी महाराज थे जिन्होंने हिंदू कोड बिल को लेकर नेहरु-इंदिरा की नाक में दम कर रखा था और इंदिरा गांधी के काल में देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए एक लाख साधुओं की भीड़ को लेकर संसद भवन पर हमला कर दिया था और जब पुलिस ने कार्रवाई की तो भीड़ ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष के कामराज का सरकारी आवास जला दिया था। बहरहाल विषय पर लौटते हैं।
दूसरी घटना 'सरकारी' है। पिछले दिनों बिहार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने पटना में गंगा 'आरती' का शुभारंभ किया। यह गंगाआरती हरिद्वार और बनारस की तर्ज पर मनाने की बात की गई। इसे बिहार के पर्यटन मंत्रालय के तत्वावधान में करवाया जा रहा है जिसके मंत्री हैं सुनील कुमार पिंटू। पिंटू बीजेपी के विधायक हैं। हरिद्वार और बनारस में बहुत पहले से ही गंगाआरती का आयोजन किया जा रहा है और शायद यह वहां की सरकार द्वारा प्रायोजित नहीं है। लेकिन पटना में शुरु हई गंगा आरती शायद पहली आरती है जिसे नीतीश कुमार की अगुआई में सेक्यूलर सरकार के एक मंत्रालय ने शुरु किया है। इसके पीछे मासूम तर्क दिए गए हैं। गंगा आरती बिहार में पर्यटन को बढ़ावा देगा वगैरह-वगैरह। लेकिन जिनलोगों को बिहार की दंतकथाओं और मान्यताओं की जानकारी है वे जानते हैं मगध और खासकर पटना की गंगा कभी भी व्यापक जनसमूह में धार्मिक रुप से बड़े आकर्षण का केंद्र नहीं रही। बिहार में सिमरिया, सोनपुर, सुल्तानगंज में गंगा तट पर विशेष आयोजन होता है। यूं, छठपूजा और दैनिक आयोजन हर जगह होता है। ऐसे में पटना में गंगाआरती किस तरह के पर्यटन को बढ़ावा देगा सोचनेवाली बात है। शायद बिहार सरकार को गया, नालंदा, राजगीर, वैशाली, लौरिया और अन्य जगहों से ज्यादा फिक्र गंगा आरती की ही है।
तीसरी खबर आरएसएस के एक सर्वे से है। पिछले महीने आरएसएस ने बिहार में एक सर्वे करवाया जिसमें धार्मिक आधार पर आरक्षण, मुसलमानों की वोटिंग पैटर्न, मुसलमानों को लेकर नीतीश सरकार की योजनाओं के बावत इकतरफा सवालों के जवाब पूछे गए। संघ से जुड़े हुए लेखक-प्रोफेसर और हेडगेवार के जीवनीकार राकेश सिन्हाइसे अकादमिक सर्वे मानते हैं। लेकिन कई लोग इसका राजनीतिक अर्थ ढ़ूढ़ रहे हैं।
हाल तक बिहार में संघ की मशीनरी का बहुत काम नहीं रहा है। संयुक्त बिहार में इसकी ऊर्जा, झारखंड के इलाकों में ही उलझी रही थी और बिहार प्रगतिशील शक्तियों और समाजिक न्याय का गढ़ बन गया था। लेकिन संघ मशीनरी ने बिहार को अब अपने मुख्य एजेंडे पर स्थान दे दिया है और प्रतीकों के माध्यम से वह यहां अपना प्रसार करना चाहती है। नीतीश सरकार की पहली पारी में बीजेपी के जिस संयमित रुप को लोगों ने देखा है वह आनेवाले दिनों में बदल सकता है। ज्यादा सीटें जीतकर आने के बाद वैसे भी पार्टी जोश से लवरेज है और उसके लक्षण सामने आ रहे हैं।
नोट-इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एक खबर भोपाल से आ रही है कि मध्यप्रदेश की सरकार भोपाल का नाम बदल कर 'भोजपाल' करनेवाली है।
1 comment:
अन्तरार्ष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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