मेरे एक परिचित मजाक में कहते हैं कि कोसी पुल बन जाने से दरभंगा-मधुबनी के दूल्हों का भाव गिर जाएगा! इस इलाके में दहेज का जो दानव पिछले दशकों में मजबूत हुआ है उतना दहेज कोसी के पूरब नहीं है। क्या वाकई ऐसा है..? हो सकता है ऐसा हो। सुना है पहले के जमाने में भी लोग इस इलाके में शादी ब्याह करने को प्राथमिकता देते थे। कहते हैं कि मेरी मौसी जब आज से पचास साल पहले पूर्णिया ब्याही गई थी तो उनके ससुर का सीना गज भर चौड़ा हो गया था! आखिर उनके बेटे की शादी मधुबनी में पंचकोसी के ब्राह्मणों के घर जो हुई थी!(पंचकोसी-सौराठ के इर्दगिर्द के तथाकथित कुलीन ब्राह्मणों का इलाका!) हलांकि कुलीनता की ये परिभाषा अब फिजुल लगती है और धूमिल पड़ चुकी है। शायद इसकी एक वजह बीती सदियों में कोसी की विभिषिका झेल रहे उन इलाकों की तत्कालीन स्थिति हो!
दरभंगा में किसी ने कहा कि अब पूर्णिया महज ढ़ाई-तीन घंटा का मामला है। मिथिला का सबसे नजदीकी हिल स्टेशन दार्जिलिंग हो जाएगा। यानी दरभंगा में अगर चले तो महज 6 घंटे में दार्जिलिंग ! यानी अब हनीमून मनाना आसान हो जाएगा ! तो क्या दार्जिलिंग जैसी जगहों का सितारा फिर से चमकेगा ?
दरभंगा और सुपौल जबसे 1 घंटा की दूरी पर आ गया है लगता है दरभंगा के डॉक्टरों की आमदनी अभी और बढ़ेगी। कोसी के उस पार अच्छे मेडिकल कॉलेज नहीं हैं। अब बिहार सरकार ने मधेपुरा में एक मेडिकल कॉलेज बनाने का फैसला किया है, लेकिन उसे जमने में अभी कुछ वक्त लगेगा। इधर दरभंगा में एक प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेज है और इस इलाके में वो स्वास्थ्य का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा है।
मेरे मित्र आशीष झा कहते हैं कि कोसी पुल ने मिथिला को सिर्फ भौगोलिक स्तर पर ही नहीं जोड़ा है। इसने मिथिला के सांस्कृतिक और मानसिक एकीकरण को भी मजबूत किया है। दोनो भाग अलग-अलग होने से लोग दरभंगा-मधुबनी-समस्तीपुर को तो मिथिला कहने लगे थे लेकिन सहरसा-सुपौल-मधेपुरा को ‘कोसी’ कहने लगे थे। अब ये धारणा धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी। मिथिलांचल फिर से मिथिलांचल हो जाएगा। कोसी महासेतु से करीब 30 किलोमीटर दक्षिण भी कोसी पर बलुआ घाट के नजदीक एक पुल बन रहा है और उससे भी आगे एक और पुल। यानी कोसी पर कई पुल बन रहे हैं। कहते हैं कि बलुआ घाट पुल बन जाने से सहरसा और कुशेश्वरस्थान आस-पास हो जाएंगे। तो क्या इस तरह के पुल अपने भीतर एक बड़े राजनीतिक आन्दोलन की संभावना को हवा नहीं देंगे?
एक अलग मिथिला राज्य का ढ़ीला-ढ़ाला आन्दोलन बरसों से चल रहा है लेकिन उसमें फिलहाल उतनी धार नहीं है। आम जनता उसे अक्सर ‘ब्राह्मणों’ का आन्दोलन मानती है, लेकिन धीरे-धीरे इसमें समाज के दूसरे वर्ग भी शामिल होते जा रहे हैं। जब से छोटे राज्यों के समर्थन में ज्यादा चर्चा होने लगी है, उसका अप्रत्यक्ष असर मिथिलांचल के लोगों पर भी पड़ता ही है। पता नहीं आगे यह आन्दोलन कितना मजबूत होगा। लेकिन इतना कहा जा सकता है कि कोसी पुल उस आन्दोलन को जरूर मजबूती प्रदान करेगा। गौर करनेवाली बात ये भी है कि ये कोसी पुल का ही उद्घाटन था जब प्रधानमंत्री वाजपेयी ने मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसुची में शामिल करने का वादा किया था। उस हिसाब से इस पुल ने अपने उद्घाटन के साथ ही इस इलाके की भाषा को संवैधानिक दर्जा दिला दिया था!
वैसे भी किसी नए राज्य के बनने में दशकों लग जाते हैं। इतना तय है कि आनेवाले दशकों में अगर बिहार के इस हिस्से का उचित विकास नहीं हुआ या बिहार में क्षेत्रीय विषमता पैदा हुई तो एक नए सूबे की मांग को रोकना असंभव हो जाएगा।(जारी)
5 comments:
बहुत कुछ समेट लिया है आपने इस पोस्ट में ....! कोसी के बहाने ...!
मिथिलांचल का आंदोलन तेज़ होना चाहिए, अलग राज्य मिले न मिले अलग बात है। लेकिन आंदोलन से नीतिश कुमार के कानों में कम से कम यह बात तो जाएगी कि बिहार सिर्फ बाढ़ बिहार शरीफ नालंदा नहीं है।
पोस्ट के संग सहमति के स्वर
कोशी के प्राकृतिक, सांस्कृतिक व् राजनितिक तथ्यों का अद्भुत संकलन है यह लेख। कृपया जारी रखें .....
धन्यवाद नवनीतजी।
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