हम मजार से नीचे उतरे और बौना पोखर की तरफ चले। खेतों
के बीच कच्ची-पक्की सड़कों से
होकर करीब एक किलोमीटर जाने के बाद एक तालाब मिला जिसके बगल में एक जैन मंदिर था।
बगल में आठ-दस घरों की बस्ती थी। मंदिर के बगल में एक जैन कमेटी का कार्यालय था
जिसका दरवाजा अधखुला सा था।
दिन के एक बजनेवाले थे। हमने दरवाजा खटखटाया तो मंदिर के
पुजारी मुनिलाल जैन बाहर निकले। घनी सफेद मूंछें रखनेवाले मुनिलालजी करीब 60 साल
के प्रौढ़ थे और
उनके चेहरे पर शाश्वत मुस्कान थी। बड़े प्यार से उन्होंने मंदिर के कपाट खोले और
हमें मंदिर में महावीर स्वामी का दर्शन करवाया। उन्होंने बड़े विस्तार से मंदिर और
तालाब का इतिहास बतलाया।
मुनिलाल जैन के मुताबिक उस मंदिर में स्थापित महावीर स्वामी
की मूर्ति भगवान महावीर की ऐसी कोई पहली मूर्ति थी जो किसी खुदाई से मिली थी। वह
मूर्ति बगल के ही तालाब से मिली थी जिसे बौना पोखर कहते हैं। वह तीन फुट ऊंची काले
पत्थरों से बनी मूर्ति थी और कम से कम 2000 साल पुरानी थी। मैंने उनसे पूछा कि
मंदिर के संचालन की जिम्मेवारी किस पर है? उनका
कहना था, ‘एक
जैन कमेटी है जो इसकी देखभाल करती है और वे बतौर पुजारी यहां 16 साल से रहते हैं।
जैन कमेटी के अध्यक्ष जयपुर के कोई बड़े कारोबारी हैं और उस कमेटी में देश के
अलग-अलग हिस्सों के लोग शामिल हैं। हालांकि उनलोगों को भी मंदिर की चिंता कम ही
रहती है और किसी ने इसके विकास के लिए कुछ नहीं किया है।’
मुनिलाल जैन आजन्म ब्रह्मचारी हैं और इससे पहले देश के
अलग-अलग हिस्सों में रह चुके हैं। वे मूलत: उत्तरप्रदेश
के फिरोजाबाद के रहनेवाले थे और धुली हुई हिंदी बोल रहे थे।
इतनी पुरानी मूर्ति और साधारण से मंदिर में बिना किसी
सुरक्षा कैसे स्थापित थी? क्या
बिहार या भारत सरकार को उसके सुरक्षा की चिंता नहीं थी? इस पर मुनिलालजी का कहना था कि यहां कोई सुरक्षा नहीं
है, भगवान महावीर ही इसके रक्षक हैं। नीतीश कुमार द्वारा बार-बार ऐतिहासिक धरोहरो
की बात करने के बावजूद फिलहाल इस तरह की सुरक्षा बिहार सरकार के एजेंडे से बाहर
थी।। बाहुबली विधायकों से अंटे पड़े इस क्षेत्र में अगर किसी की नीयत डोल गई तो
वाकई इस ऐतिहासिक धरोहर का कोई नामलेवा नहीं बचेगा।
उस मंदिर से सटे एक छोटे से मंदिर में महावीर स्वामी की
चरणपादुका रखी हुई थी। कहते हैं पहले यह पादुका जमीन से ऊपर थी, लेकिन बाद में
उसके ऊपर मंदिर का निर्माण कर उसे जमीन के अंदर कर दिया गया।
मंदिर के बगल में ही बौना पोखर था, जहां से वह मूर्ति
मिली थी। करीब दो-तीन एकड़ का तालाब लेकिन बदहाली का जीता-जागता नमूना। वह तालाब
जलकुंभी से अंटा पड़ा था और सड़क की तरफ से घाट बना हुआ था जहां गांव की कुछ
महिलाएं कपड़े धो रही थी। पास ही कुछ नंग-धड़ंग बच्चे खेल रहे थे। वह तालाब करीब
दो हजार साल पुराना था लेकिन उसके सौंदर्यीकरण की चिंता किसी को नहीं थी।
1 comment:
पता नहीं नीयत अभी तक क्यों नहीं डोली, किसी बाहुबली ने तुम्हारी पोस्ट पढ़ ली तो अब तो नीयत डोलनी तय है। खैर, हम भारत के लोग अपनी विरासत को ढेर कर देने में उस्ताद हैं...बिहार तो उसका अगुआ है। तुम्हारी लेखनी में--जिसको कहते हैं ना मॉड्यूलेशन गजब का आ रहा है। पढ़ने में मजा आ जाता है।
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