Friday, March 1, 2013

वैशाली यात्रा-5


हम वैशाली के ऐतिहासिक स्थलों की यात्रा उसके महत्व के हिसाब से सिलसिलेवार नहीं कर रहे थे, बल्कि अपनी सहूलियतों के हिसाब से कर रहे थे। जो जगह नजदीक मालूम पड़ती थी और हमारे रास्ते में पड़ती थी उसे हम फटाफट देख  ले रहे थे। हमारे पास समय कम था, हालांकि ऐतिहासिक स्थलों को देखने के लिए पर्याप्त वक्त देना होता है।

बौनापोखर में जैन मंदिर देखने के बाद अब हमारी मंजिल थी अभेषेक पुष्करिणी और बौद्ध स्तूप। बौना पोखर से वह जगह करीब तीनेक किलोमीटर उत्तर थी और रास्ते में रंग-बिरंगे बौद्ध मठ थे जो थाईलैंड, जापान और अन्य देशों के बौद्ध श्रद्धालुओं और संगठनों द्वारा बनवाए गए थे। सड़क ठीक थी और यातायात का बहुत दवाब नहीं था। हालांकि ये बात हमें अखर रही थी कि वैशाली पुरातात्विक रूप से इतना समृद्ध होते हुए भी देशी-विदेशी टूरिस्टों को क्यों  नहीं आकर्षित कर पा रही थी?
मंगल अभिषेक पुष्करिणई


रास्ते में एक निर्माणाधीन होटल मिला और एक बच्चों के मनोरंजन के लिए पार्क। यानी वैशाली में बहुत सारे होटल नहीं थे और टूरिस्ट वहां स्टे(टिक) नहीं कर पा रहे थे।

बहरहाल हम अभिषेक पुष्करिणी पहुंचे। तालाब का पानी साफ था और चमक रहा था। यह ऐतिहासिक तालाब या लघु-झील कम से कम 2600 साल पुराना था जिसके जल से लिच्छवि गणतंत्र के प्रमुख का अभिषेक किया जाता था। ये वहीं तालाब था जहां वैशाली की नगरबधू आम्रपाली का अभिषेक किया गया था और उस जमाने के प्रोटोकॉल के मुताबिक उसे गणतंत्र के प्रमुख की पत्नी से भी ऊंचा दर्जा दे दिया गया था। आचार्य चतुरसेन ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास वैशाली की नगरबधू में इस तालाब की काफी चर्चा की है। बरसों पहले पढ़ा वो उपन्यास बरबस याद आ गया और मैं अचानक इतिहास में गोते लगाते हुए ढ़ाई हजार साल पीछे चला गया।
मंगल अभिषेक पुष्करिणई


अभिषेक पुष्करिणी वर्तमान में पचासेक बीघे से कम में क्या फैला होगा। कहते हैं कि अपने मूल स्वरूप में यह काफी विशाल था और कालक्रम में तालाब में मिट्टी भरते-भरते इतना सा रह गया। आश्चर्य की बात ये कि हजारों साल तक यह फिर भी बचा रह गया और अपने इतिहास से अनभिज्ञ लोगों ने इसे पाटकर खेत नहीं बना लिया। इसकी खोज एलेक्जेंडर कनिंघम(1861-65 और फिर 1870-1885) के समय में की गई थी जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण(एएसआई) के प्रथम निदेशक थे और बाद में उसके डाईरेक्टर जनरल बने। वर्तमान में इसके चारों किनारों पर लोहे की दीवारे बना दी गई हैं और अपनी आदत के मुताबिक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने एक छोडी सी पट्टिका लगा दी है।
इंस्पेक्शन बंग्लो


तालाब के दाईं तरफ वैशाली म्यूजियम, सरकारी इस्पेक्शन बंग्लो और बुद्ध के अस्थि स्तूप हैं लेकिन उस दिन म्यूजियम बंद था और लोगों ने कहा कि वहां देखने को बहुत कुछ है भी नहीं। सरकारी इस्पेक्शन बंग्लो दूर से ही चमक रहा था और ऐसा लग रहा था कि अधिकारियों ने अपने रहने-खाने का शानदार इंतजाम किया था।   

1 comment:

Manjit Thakur said...

वैशाली की नगरवधू आम्रपाली थी, उसके किस्से का विस्तार रखना अगले पोस्ट में...