वैशाली
की यात्रा और उसका वृतांत आम्रपाली के बिना वाकई अधूरी है। आम्रपाली वैशाली की प्रसिद्ध
नगरबधू थी जिसका जिसके बारे में कई दंतकथाएं प्रचलित हैं। मेरे मन में था कि चूंकि
आम्रपाली की कहानी सब जानते ही होंगे इसलिए इस पर अलग से एक पोस्ट लिखना जरूरी
नहीं है। लेकिन मेरे कुछ मित्रों का आग्रह था कि आम्रपाली पर एक पोस्ट होना ही
चाहिए।
बुद्ध से दीक्षा लेती आम्रपाली |
ऐतिहासिक
उपन्यसों को लिखने के लिए प्रसिद्ध आचार्य चतुरसेन ने आम्रपाली पर एक उपन्यास लिखा
जिसका नाम है-वैशाली की नगरबधू। चतुरसेन ने तत्कालीन वैशाली में आम्रपाली की
महत्ता का वर्णन करते हुए लिखा है-
‘वैशाली
की मंगल पुष्करिणी का अभिषेक वैशाली जनपद में सबसे बड़ा सम्मान था। इस पुष्करिणी
में जीवन में एक बार स्नान करने का अधिकार सिर्फ उसी लिच्छवि को मिलता था जो
गणसंस्था का सदस्य निर्वाचित किया जाता था। उस समय बड़ा उत्सव समारोह होता था और
उस दिन ‘गण-नक्षत्र’ मनाया जाता था। यह पुष्करिणी उस समय बनाई गई थी जब
वैशाली प्रथम बार बसाई गई थी। इसमें लिच्छवियों के उन पूर्वजों के शरीर की पूत गंध
होने की कल्पना की गई थी जिन्हें आर्यों ने व्रात्य कहकर वहिष्कृत कर दिया था और
जिन्होंने अपने भुजबल से अष्टकुल की स्थापना की थी। उस समय तक लिच्छवियों के
अष्टकुल के सिर्फ 999 सदस्य ऐसे थे जिन्होंने पुष्करिणी में स्नान किया था। लेकिन
अम्बपाली लिच्छवि थी और वैशाली की जनपद कल्याणी का पद उसे मिला था। उसे
विशेषाधिकार के तौर पर वैशाली के जनपद ने यह सम्मान दिया था।’
आम्रपाली या अम्बपाली का जिक्र आते ही भारतीय इतिहास की: विद्रोहिणी नारियों में से एक की तस्वीर उभरती है।
आम्रपाली एक सेवानिवृत सेनानायक की बेटी थी और आम के बाग में जन्म लेने की वजह से
उसका नाम आम्रपाली पड़ा। जन्म के समय ही उसे अपनी माता का वियोग सहना पड़ा और उसे
उसके पिता ने लाड़-प्यार से पाला था। यौवन की दहलीज पर पहुंचते ही आम्रपाली के
सौंदर्य की चर्चा पूरे वैशाली में फैल गई और सामंतपुत्रों, वणिकों और अभिजात्यों
में उसे पाने की होड़ लग गई। वैशाली में तत्कालीन प्रथा के मुताबिक आम्रपाली को
बलात नगरबधू घोषित कर दिया गया जिसका आम्रपाली ने कटु विरोध किया।
आम्रपाली अपने इस अपमान को कभी भूल नहीं पाई। उस समय मगध
और वैशाली में प्रतिद्वंदिता चल रही थी। मगध सम्राट बिम्बिसार को जब आम्रपाली की
सुंदरता के बारे में पता चला तो उन्होंने गुप्त रूप से उसे अपना प्रणय निवेदन
भेजा। आम्रपाली ने दो शर्तें रखी। पहली, बिम्बिसार वैशाली पर आक्रमण कर उसे खाक
में मिला देंगे और दूसरी अगर इस संबंध से अगर किसी बच्चे का जन्म होता है तो वह
मगध का भावी सम्राट होगा।
बिम्बिसार ने ये शर्तें मान ली और वैशाली मगध के हमलों
से खंडहर बनता गया। हजारों लोग मारे गए। अब आम्रपाली वैशाली के विनाश को देखकर
पाश्चाताप की अग्न में जलने लगी। उसी समय वैशाली में बुद्ध का आगमन हुआ और
आम्रपाली ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। बुद्ध ने आम्रपाली को अपने संघ में
शामिल कर लिया और कहा कि वह उतनी ही पवित्र है जितना गंगा का पानी।
चतुरसेन के उपन्यास का यहीं कथानाक है। यह कहानी लगभग
ढ़ाई हजार साल पुरानी है। हालांकि अलग-अलग कथाओं में आम्रपाली की कहानी अलग तरीके
से कही गई है। कुछ में कहना है कि आम्रपाली और बिम्बिसार का बेटा ही मगध सम्राट
अजातशत्रु बना तो कुछ का कहना है कि आम्रपाली और बिम्बिसार का पुत्र एक बौद्ध
भिक्षु बना जो बाद में आयुर्वेदाचार्य जीवक के नाम से प्रसिद्द हुआ। तिक न्यात
हन्ह ने भी अपनी किताब ‘जहं
जहं चरण पड़े गौतम के’ में
ऐसा ही लिखा है। आम्रपाली की कहानी पर लेख टंडन के निर्देशन में सन् 1966 में एक
फिल्म भी बनी जिसमें वैजयंतीमाला आम्रपाली की भूमिका में है।
तो ये है आम्रपाली और मंगल अभिषेक पुष्करिणी की कथा जो
उस विद्रोहिणी नायिका की गाथा को अभी भी सुना रही है। कुछ श्रुतियों के मुताबिक
आम्रपाली के बौद्ध संघ में जाने के बाद ही बौद्ध संघ में भिक्षुणियों का प्रवेश
संभव हो पाया।
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