मिथिला की एक लोककथा में एक ब्राह्मण का जिक्र आता है जो हर बात में मीन-मेख निकालता था। एक दिन पार्वती ने शिव से कहा कि हे महादेव मैं उस ब्राह्मण को भोजन पर निमंत्रित करना चाहती हूं, वो मेरी पाक-कला में कोई दोष नहीं ढ़ूंढ़ पाएगा। महादेव ने पार्वती को मना करते हुए कहा कि अपनी पाककला पर गुरूर मत करो, वो ब्राह्मण वैचारिक रूप से ही शैतान है। लेकिन पार्वती नहीं मानी। आखिर में ब्राह्मण को भोजन पर निमंत्रित कर ही दिया गया। पार्वती ने पूछा, 'हे ब्राह्मण भोजन कैसा था, कुछ त्रुटि तो नहीं हुई? इस पर उस ब्राह्मण ने कहा, 'भोजन तो अच्छा था, लेकिन इतना भी अच्छा नहीं होना चाहिए!' आज कलाम साहब की मृत्यु के बाद ज्यादातर वामपंथी फेसबुकियों की टिप्पणी देखकर उसी ब्राह्मण की याद आ गयी।
मेरा मानना है कि ऑनलाइन कोई भी 'पंथी' गैंग ज्यादा खतरनाक होता है, वहीं ऑफलाइन होते ही वो शरीफ हो जाता है। आप उससे किसी चाय की दुकान पर मिल जाएं तो अपने पैसे की चाय पिलाएगा, लेकिन ऑनलाइन होते ही चंगेज खान हो जाएगा। यहां पर आते ही वो फाइटर प्लेन उड़ाने लगता है। चूंकि फेसबुक पर ऑनलाइन वामपंथी घनघोर अल्पसंख्यक हैं, तो यहां गुंडागर्दी सिर्फ दक्षिणपंथियों की दिखती है। यहां पर वामपंथियों ने ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट का चोला ओढ़ लिया है।
हमारे देश की परंपराओं में मृतकों के बारे में अपशब्द नहीं बोला जाता। खासकर तत्काल तो बिल्कुल नहीं, भले 10-20 साल बाद किसी ऐतिहासिक रिफरेंस में आलोचना कर दी जाए। मेरा अनुमान है कि जयचंद या मीरजाफर पर जो कहावतें बनीं है वो भी उनके मरने के तत्काल बाद न बनीं होंगी। लेकिन वामपंथी..ठहरे वामपंथी। वे कलाम साहब को "सशर्त श्रद्धांजलि" दे रहे हैं-मानो ये देवगौड़ा या मनमोहन सिंह की सरकार बनने का मसला हो।
फेसबुकिया पीढ़ी को इस प्रकरण से ये समझने में आसानी होगी कि हमारे देश का वामपंथ किन-किन वजहों से जमीन में धंस गया। अन्य बड़ी वजहें भी रही होंगी। कोई कायदे से रिसर्च करे तो सुभाष बाबू और गांधीजी के बारे में वाम श्रद्धांजलि भी इसी टाइप की मिलेगी-क्योंकि वाम स्कूल के सिलेबस में पिछले नब्बे सालों से एक ही किताब चल रही है-प्रगति प्रकाशन मास्को वाली।
कहते हैं कि गांधी की हत्या की वजह से संघ परिवार का ग्रोथ रेट 20-25 साल तक हिचकोला खाता रहा, लेकिन अब कलाम की जैसी-जैसी फेसबुकिया वाम श्रद्धांजलियां आ रही हैं-मुझे भय है कि वाम निगेटिव में न चला जाए। इस देश में 3-4 फीसदी वाम जरूरी है-ऐसा मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है।
मेरा मानना है कि ऑनलाइन कोई भी 'पंथी' गैंग ज्यादा खतरनाक होता है, वहीं ऑफलाइन होते ही वो शरीफ हो जाता है। आप उससे किसी चाय की दुकान पर मिल जाएं तो अपने पैसे की चाय पिलाएगा, लेकिन ऑनलाइन होते ही चंगेज खान हो जाएगा। यहां पर आते ही वो फाइटर प्लेन उड़ाने लगता है। चूंकि फेसबुक पर ऑनलाइन वामपंथी घनघोर अल्पसंख्यक हैं, तो यहां गुंडागर्दी सिर्फ दक्षिणपंथियों की दिखती है। यहां पर वामपंथियों ने ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट का चोला ओढ़ लिया है।
हमारे देश की परंपराओं में मृतकों के बारे में अपशब्द नहीं बोला जाता। खासकर तत्काल तो बिल्कुल नहीं, भले 10-20 साल बाद किसी ऐतिहासिक रिफरेंस में आलोचना कर दी जाए। मेरा अनुमान है कि जयचंद या मीरजाफर पर जो कहावतें बनीं है वो भी उनके मरने के तत्काल बाद न बनीं होंगी। लेकिन वामपंथी..ठहरे वामपंथी। वे कलाम साहब को "सशर्त श्रद्धांजलि" दे रहे हैं-मानो ये देवगौड़ा या मनमोहन सिंह की सरकार बनने का मसला हो।
फेसबुकिया पीढ़ी को इस प्रकरण से ये समझने में आसानी होगी कि हमारे देश का वामपंथ किन-किन वजहों से जमीन में धंस गया। अन्य बड़ी वजहें भी रही होंगी। कोई कायदे से रिसर्च करे तो सुभाष बाबू और गांधीजी के बारे में वाम श्रद्धांजलि भी इसी टाइप की मिलेगी-क्योंकि वाम स्कूल के सिलेबस में पिछले नब्बे सालों से एक ही किताब चल रही है-प्रगति प्रकाशन मास्को वाली।
कहते हैं कि गांधी की हत्या की वजह से संघ परिवार का ग्रोथ रेट 20-25 साल तक हिचकोला खाता रहा, लेकिन अब कलाम की जैसी-जैसी फेसबुकिया वाम श्रद्धांजलियां आ रही हैं-मुझे भय है कि वाम निगेटिव में न चला जाए। इस देश में 3-4 फीसदी वाम जरूरी है-ऐसा मेरा व्यक्तिगत तौर पर मानना है।