Wednesday, July 1, 2015

यमुना की गंदगी और हथनिकुंड बांध


करीब दो साल पहले यमुना बचाओ अभियान के लोगों से मिलना हुआ तो हथिनीकुंड बराज के बारे में जानकारी मिली। वे लोग मथुरा से दिल्ली तक पदयात्रा करते आ रहे थे और पलवल के पास सड़क के किनारे एक स्कूल के मैदान में टेंट में विश्राम कर कर रहे थे। पता चला कि यमुना की गंदगी की असली वजह तो ये है कि उसका पानी हरियाणा के यमुनानगर में हथिनीकुंड बराज में रोक लिया गया है। वहां से यूपी और हरियाणा के लिए दाएं-बाएं नहर निकाल ली गई और यमुना का पानी खेतों में बांट लिया गया। ऐसे में यमुना सदानीरा नहीं रह पाई और रही-सही कसर दिल्ली के कचड़े(घरेलू और औद्यौगिक दोनों) और उसके कु-प्रबंधन ने पूरा कर दिया। 
यानी हथिनीकुंड का बराज यमुना का सारा पानी पी गया और प्रदूषण के लिए सारी गाली दिल्ली के कचड़े(फैलानेवालों) को मिली! विकीपीडिया कहता है कि बराज 1996 से 1999 के बीच बना जबकि उससे नीचे भी अंग्रेजी राज का करीब सवा सौ साल तजेवाला बराज पहले से था। लेकिन उसकी जगह हथिनीकुंड बनाया गया ताकि यूपी और हरियाणा की नहरों को पानी मिल सके।


केंद्र में उस समय देवगौड़ा-गुजराल और वाजपेयी की सरकारें थी और हरियाणा- यूपी में बीजेपी के ही भाई-बंधु थे। पता नहीं किन महानुभावों ने हथिनीकुंड बराज बनवाकर यमुना का पूरा पानी पी लेने की सहमति दी थी-यह अपने आप में शोध का विषय है। उस समय के कथित NGO क्या कर रहे थे, कोई सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं गया या अखबारों ने क्या-क्या लिखा इस पर विस्तृत शोध होना चाहिए।

दिक्कत ये है कि मामला नहर-सिंचाई और किसानों से जुड़ा था तो सब ने चुप्पी साध ली। हमारे देश में कुछ मामले अत्यधिक पवित्र होते हैं, कोई उसे नहीं छूता। यमुना का पानी रूक गया, नदी जल-विहीन हो गई, ऐसे में उसमें गिरनेवाला थोड़ा भी कचड़ा उसे नरक बनाने के लिए काफी था। यहां तो उसे दिल्ली जैसे भीमकाय शहर का कचड़ा झेलना था, फरीदाबाद-बल्लभगढ, पलवल, मथुरा और आगरा को झेलना था। ऐसे में उसकी क्या गत हुई, इसे समझने के लिए किसी IIT में पढ़ने की जरूरत कहां है?
ऐसा नहीं है कि इन शहरों के कचड़ों के प्रबंधन के लिए धन खर्च नहीं किए गए, लेकिन अरबों रुपये कहां गए किसी को पता नहीं है। इधर मोदी सरकार ने नदियों को साफ करने को लेकर कुछ रुचि दिखाई है- लेकिन मुझे शक है कि किसानों की आड़ में हरियाणा और यूपी की सरकारें नहरों में पानी की कटौती होने देंगी। दीर्घकालीन हित तो कोई सोचता नहीं, ऐसे में यमुना भले ही बर्बाद हो जाए या उसके किनारे की दसियों करोड़ की आबादी भले ही विनाश के कगार पर पहुंच जाए-हमारी राजनीति को कोई फर्क नहीं पड़ता।

परिवहन मंत्री नितिन गडकरी तो और भी कमाल के हैं! उन्हें लगा कि चूंकि यमुना में सिल्टिंग है-इसलिए पानी नहीं है। मंत्री जी ने कहा कि नदी की ड्रेजिंग करवाएंगे-यानी भीमकाय मशीन लाकर मिट्टी निकाल दो और नदी को गहरा कर दो। बिना इस बात की चिंता किए हुए कि हजारों सालों में एक प्रक्रिया के तहत बनी नदी और उसके मिट्टी के लेयर को ऐसे ड्रेंजिंग करके नहीं हटाया जा सकता और बीमारी, नदी की गहराई में नहीं-हथिनीकुंड में पानी की रुकावट में है-मंत्रीजी उसी जोश में आ गए मानो नेशनल हाईवे बनावा रहे हों। उनके दिमाग में सबसे पहली बात ये आई कि ड्रेजिंग करवा कर नदी में प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए नौका-विहार का आयोजन करवाएंगे!
पर्यावरणविदों का कहना है कि यमुना में बालू और मिट्टी का जो चरित्र है वो अलग है। दिल्ली की यमुना, पहाड़ से ज्यादा दूरी पर नहीं है। ऐसे में नदी की गहरी खुदाई मिट्टी के उस लेयर को हटा देगा और .यमुना के दोनों तट कटाव के लिए असुरक्षित हो जाएंगे।ये अच्छी बात है कि National Green Tribunal (NGT) ने हरियाणा सरकार से कहा है कि वो 10 क्यूसेक पानी छोड़े ताकि दिल्ली के वजीराबाद तक यमुना की प्राकृतिक धारा एक हद तक कायम रहे।
यमुना के लिए आवाज उठाना इसलिए जरूरी है क्योंकि अगर हमने आज यमुना को खो दिया, तो कल को गंगा भी नहीं बचेगी, फिर एक दिन नर्मदा, कोसी और चंबल की भी बारी आएगी।

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