Tuesday, June 24, 2008

प्राची पाठक के बहाने अपनी कहानी...

बात 2007 की है..मैंने एक न्यूज वेबसाईट ज्वाईन किया था। मेरा काम डेस्क का था और मुझे आउटस्टेशन रिपोर्टर की रिपोर्ट एडीट करनी होती थी। कलकत्ता से कुछ अच्छी स्टोरीज आ रही थी और उसके रिपोर्टर का नाम सबके जुबां पर था। ज्वाईन करने के चार दिन बाद ही मुझे उससे बात करना पड़ा। कान में एक संयमित, परिपक्व और मन को तरंगित करनेवाली आवाज सुनाई दी। हेलो...मैं प्राची बोल रही हूं...प्राची पाठक फ्रॉम कोलकाता ब्यूरो...मेरी उससे थोड़ी देर बात होती रही..फिर रुक रुक के अक्सर बात होती थी। लेकिन बातों का दायरा बिल्कुल प्रोफेशनल था।िनजी बातें करने का मौका ही नहीं था। पांच महिना बीत चुका था। ऑफिस में मेरा वक्त खराव चल रहा था। टेक्निकल डाइरेक्टर से मेरा पंगा हो गया था। वो नं-एक का शरावी था और उसने मेरे साथ बदतमीजी की थी। मैनें उसकी शिकायत की,लेकिन मेनेजमेंट ने उसकी सुनी..और मुझे बड़ी मुलायम आवाज में रिजाइन देने को कहा गया। मैनें रिजाइन कर दिया।अब फिर से मै सड़क पर था। लेकिन प्राची से मेरी बात होती रहती थी।
मैं नौकरी खोजने के लिए उस वक्त परेशान था। मेरे पास देश के सबसे बड़े मीडिया स्कूल का डिप्लोमा था लेकिन नौकरी नही थी। और वो इसलिए कि मैं नेटवर्क बनाने की कला नहीं जानता था और शायद थोड़े अंतर्मुखी स्वभाव का था। बहरहाल, काफी मशक्कत के बाद मैने इंडिया न्यूज ज्वाईन किया। बेरोजगारी के दौर में मैने अपने घर वालों को कभी नहीं बताया कि मैने नौकरी छोड़ दी है। दोस्तों और अपने भैया की मदद से मै किसी तरह अपनी गाड़ी खींच रहा था। मेरे मानसिक तनाव के उन दिनों में दोस्तों ने अगर मदद न की होती तो मै आज बिखर गया होता। उनमें मेरे दो-तीन नजदीकी दोस्त और प्राची का नाम सबसे उपर है..जिनसे बात करके लगता था कि अपने उपर का विश्वास जिंदा है।प्राची का फोटो मैने ऑरकुट पर देखा था। एक बला की खूबसूरत लड़की..जिसका सपना जर्नलिज्म के इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाना था..वो कोलकाता के माहौल में शायद घुटन महसूस कर रही थी। उसके पापा पूर्वी यूपी से ताल्लुक रखते हैं और कोलकाता में चार्टर एकांउन्टेट हैं। प्राची ने कोलकाता युनिवर्सिटी से हिंदी में एम ए और मास कॉम किया है। उसकी अंग्रेजी पर बेहतरीन पकड़ है। उससे मेरी बात, शुरु में चैट पर होती थी..और उसका कॉमन टापिक होता था-लिटरेचर। प्राची ने लिटरेचर में एमए किया था और मेरी लिटरेचर में दिलचस्पी थी। लेकिन धीरे-2 मैं प्राची से खुलता गया। शायद मैं सोचता था कि मैं प्राची जैसी लड़की से बहुत देर से मिला हूं...प्राची ने मुझे बताया था कि वो एक पंजाबी लड़के को पसंद करती थी जिसका प्राची के घर वाले काफी विरोध कर रहे थे। एक वजह ये भी थी कि मुझे लगता था कि प्राची ब्राह्मण परिवार से है...इसलिए उससे दोस्ती करने में कोई बुराई नहीं है। ये एक जेएनयू कैम्पस में पढ़े और दुनिया भर की बड़ी-2 बातें करने वाले लड़के की कायरता भरी स्वीकारोक्ति है कि वो अपनी जाति के लड़की को देखकर उत्साहित हो जाता है।..क्या इसमें मेरी गलती है कि मैं अंतर्जातीय विवाह की बात करता हूं तो मेरे मां की तबीयत खराव हो जाती है...या ये अभी तक परंपराओं और कस्वाई मानसिकता में चिपके रहने का नतीजा है। और सबसे बड़ी बात ये कि क्या ये एक बहाना नहीं है??...
बहरहाल..बात प्राची की हो रही थी। इधर प्राची से कुछ ज्यदा बात होने लगी है।कई बातें..जो अपने बॉस की आलोचना से शुरु होकर...अपने मम्मी-पापा और करियर के नए एवेन्यू खोजने तक होते हैं। मेरी दीदी ने कैलिफोर्निया से मेरी भांजी की तस्वीर भेजी है जो प्राची को काफी पसंद है..उसकी भी भतीजी मेरी भांजी के उम्र की ही है...उसके भैया-भाभी दुबई में है..प्राची अपने लाडली भतीजी की ढ़ेरों कहांनिया सुनाती है। शायद लड़कियां ऐसी ही होती है। मुझे भी बच्चों से प्यार है...लेकिन अपनी प्रज्ञा की चर्चा से ज्यादा मुझे ओबामा और मनमोहन सिंह के भविष्य की चिंता होती है। प्राची ने अपने फोटो ऑरकुट से हटा दिए हैं..जिसमें वो  खूबसूरत पंजाबी लड़का भी था। शायद..आजकल दोनों में कुछ मतभेद हो गया है और वह लड़का उस पर अपनी मर्जी थोपने लगा है। प्राची को उड़ने के लिए अनंत आसमान चाहिए.. उसे पिंजड़े में नहीं बांधा जा सकता..और प्राची का आसमान दिल्ली की मीडिया में है। मैं अपनी भरसक उसकी मदद करना चाहता हूं। लेकिन क्या यह मेरा स्वार्थ नहीं है?...क्या मैं चाहने लगा हूं कि प्राची दिल्ली आए..और मैं ज्यादा से ज्यादा वक्त उसके साथ गुजार सकूं..मैं उससे मिला नहीं हूं..सिर्फ फोटो देखा है..ओर फोन पर बात की है...लेकिन क्या मैं शुरु में उसकी खूबसूरती पर रीझ नहीं गया था ?...क्या मैं भी उन्ही आम लोगों जैसा हूं जो किसी सुन्दर लड़की को देखकर हर हथकंडा अपनाने लगते हैं... क्य़ा प्राची एक औसत लड़की होती तो मैं उससे बात करता...दिल्ली के संघर्षों ने मुझे इतना मतलबी बना दिया है कि मैं मुस्कुराता भी तभी हूं जब कोई काम की बात होती है...क्या मैं विशुद्ध कारोबारी मानसिकता का नहीं हो गया हूं ?... क्या मैं इतना गिरा हुआ आदमी हूं ? ..मेरा दिमाग चकरा रहा है...लेकिन इसके जवाब में तर्क ये है कि क्या किसी खूबसूरत और जहीन लड़की से दोस्ती की कोशिश एक अपराध है...?
दिमाग कई दिशाओं में सोचता है। लड़कियां कभी-कभी करियर में बाधा लगती है। मुझे हजारों किताब पढ़ना है। मुझे पांच सौ पन्नो से कम की किताब अच्छी नहीं लगती। मैं..रामचंद्र गुहा और डोमनिक लेपियर से लेकर मार्क्स और चेखव की सारी किताबें चाट जाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि मैं भी आगे चलकर किताबे लिखूं...और सेमिनार में आमंत्रित किया जाउं...मेरे लेख भी अखवारों के संपादकीय पन्नों पर छपे। शायद अभी तक लड़कियों की बहुत कम संगत ने पढ़ने के लिए मुझे पर्याप्त वक्त दिया है। लेकिन फिर मैं सोचता हूं कि मैं ऐसी एकांगी सोच का शिकार क्यो हो गया हूं...क्या लड़कियों को करियर में बाधा कहना उनका अपमान नहीं है..?क्या ऐसा नहीं हुआ है कि लोग प्रेम में पड़कर या शादी के बाद कई बार ज्यादा सफल हो गए हैं..?
बहरहाल, इतना तय है कि आज न कल प्राची दिल्ली आएगी...और ये भी तय है कि वो दिन कम से कम मेरे लिए इंतजार करने लायक होगा...लेकिन मैं उसका इंतजार क्यों कर रहा हूं...?

12 comments:

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

सुशांत जी, आपके हिम्मत की दाद देनी होगी. आपको पता है...आपने निहायत ही निजी विचारों को पूरी तरह सार्वजनिक कर दिया है, और एक तरह से अपने मोहब्बत की इकबालिया इबारत लिख दी है. खैर, हकीकत क्या है ये मैं नहीं जानता, इसलिए ज्यादा कुछ लिखना बेतक्कलुफी होगी। ईश्वर आपकी मुराद जल्द से जल्द पूरी करे....आमीन!

nisha negi said...

लसुशांत तुम बाज़ आओ .....सब लड़कियों के बारे में तुम््हारी राय एक जैसी है ....इसलिए मुछे कुछ खास नहीं लगा .... तुम््हें हर दूसरे दिन कोई न कोई लड़की पसंद आ जाती है ....मुझे तो शक है कि तुम््हें और किस किस का इंतजार है ,

nisha negi said...

लसुशांत तुम बाज़ आओ .....सब लड़कियों के बारे में तुम््हारी राय एक जैसी है ....इसलिए मुछे कुछ खास नहीं लगा .... तुम््हें हर दूसरे दिन कोई न कोई लड़की पसंद आ जाती है ....मुझे तो शक है कि तुम््हें और किस किस का इंतजार है ,

PD said...

आपके हिम्मत की दाद देता हूं.. मैं कभी इतनी हिम्मत नहीं कर सकता हूं जितना आपने इस पोस्ट में कर दिखाया है..
मगर एक और बात सच है.. सिर्फ ईमानदारी ही किसी रिश्ते के लिये पर्याप्त नहीं होता है.. इसके लिये जरूरी है किसी की भावनाओं को समझना..
मैं एक और सलाह देना चाहूंगा कि अपनी भावनाओं को कभी सार्वजनिक ना करें, अपका साथ देने वाले कम और आपकी हंसी उड़ाने वाले ज्यादा मिलेंगे..
वैसे आपकी सोच में मुझे कोई खोट नहीं दिखता है.. किसी खूबसूरत लड़की पर आकर्षित होना बहुत ही प्राकृतिक है.. ठीक वैसे ही जैसे कोई लड़की किसी हैंडसम और स्मार्ट लड़के पर आकर्षित होती है.. चैन से रहिये.. मस्त रहिये.. :)

विवेक सत्य मित्रम् said...

एक लाइन में स्वाभाविक टिप्पणी यही हो सकती है.. कि अभी तक मैंने जितने भी प्रेम पत्र पढ़े या फिर कई दफा खुद अपने दोस्तों की... के लिए लिखे... उनमें बेहतरीन है। बाकियों ने जिस तरह तुम्हारे हौसले की तारीफ की है... दरअसल मुझे लगता है इसमें हौसले जैसी कोई बात नहीं है। ये निश्चित तौर पर एक ईमानदार लेख है... लेकिन पता नहीं क्यों... शायद तुम्हें निजी तौर पर जानने समझने की वजह से या फिर तुम जैसे तमाम लोगों की मनोवैज्ञानिक पड़ताल का मौका मिलने की वजह से... मुझ यही लगता है... तुम्हारे पास शायद इससे बेहतर कोई और जरिया भी नहीं था... जहां तक दिमागी कसरत करके पहुंचा जा सके... बहरहाल, बहुत ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूं... लेकिन ईश्वर से दुआ करुंगा... तुम एक दिन अखबारों में लेख भी लिखो... सेमिनारों में बुलाए भी जाओ... और उस जमात का हिस्सा बनूं... जिसकी बुराई करने में कई बार मैं कोई कसर बाकी नहीं रखता.... सचमुच मैं दिल से चाहता हूं... तुम एक दिन बड़े स्तंभकार, जाने माने बुद्धिजीवी और भी बहुत कुछ बनो... लेकिन ये सब कुछ तुम्हें तुम्हारे सपनों की मलिका के साथ मिले.... क्योंकि जिंदगी के बारे में कोई भी सोच एकांगी तभी होती है...जब हम कुछ अहसासों को महसूस करते हुए भी महसूस नहीं करना चाहते... खैर... बहुत हो गया... ज्यादा झाड़ पर चढ़ाना ठीक नहीं। आखिर में एक बार फिर शानदार ईमानदारी भरे लेख के लिए साधुवाद.....

kiran said...

जिन्दगी का मतलब ही संघर्ष करना ैहै...बिना संघर्ष के कुछ हासिल नहीं होता...और अगर इंसान ईमानदार हो तो एक न एक दिन मंजिल मिलती ही है...भावनाएं इजहार करने के लिए ही होती हैं...लेकिन मन की बातों...दिमाग में चलने वाली कई हलचलों को यूं सार्वजनिक करना...(मेरी व्यक्तिगत सोच) सही नहीं है...खासकर उस शख्स के लिए...जिनसे आप इस हद तक जुड़े हों...बाकी आपके दोस्त आपको बेहतर जानते हों...

bhupendra said...

आप पता नहीं क्यों लड़कियों को बाधा मान रहे हैं। लड़कियां बाधा नहीं होती। वो तो हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। अगर वो देखेगी कि आप उससे अधिक अपने काम को तवज्जो देते हैं तो वो आपको प्रोत्साहित करेगी। आप प्राची को अपने दिल की बात कह दीजिए। मुझे यकीन है कि वो आपके दिल की बात समझेगी। एक दिन आप बहुत बड़े आदमी बनेंगे। और बाद में कहा जाएगा कि आपकी सफलता के पीछे किसी महिला का अहम योगदान है। शायद वो प्राची हो। मुझे उस दिन का इंतजार है जब आप अपनी किताब लांच करते हुए प्रस्तावना में लिखेंगे। इस किताब को लिखते समय मेरी पत्नी का बहुत योगदान मिला.

Rajiv K Mishra said...

सुशांत जी...सबसे पहली बात की आप अभी तक "व" और "ब" को दुरुस्त नहीं कर पाए हैं। अब मुद्दे की बात....1. बुरे दिनों में दोस्तों ने मदद की, नहीं करते तो दोस्त कैसे???? 2. ये साहित्य (लिटरेचर) बड़ी वो चीज है - कई मधुर संबंधों को बनाने में इसकी अहम भूमिका को नज़रअंदाज नहीं की जा सकती है। 3. प्राची बला की ख़ूबसूरत है....उसकी अंग्रेज़ी पर गज़ब की पकड़ है - हो सकता है, बल्कि है.....नहीं भी होता तो आप या मैं शायद यही लिखते - वो कहते हैं न - Beauty lies in the eyes of beholder.....उसकी सारी बाते अच्छी लगती है। 4. प्राची एक पंजाबी लड़के को पसंद करती थी - बाकौल आप, हमें प्यार काफी देर से हुआ....5. "मुझे लगता था कि प्राची ब्राह्मण परिवार से है...इसलिए उससे दोस्ती करने में कोई बुराई नहीं है।" - अच्छी बात है आपने स्वीकार किया है कि आपको जाति देख कर प्यार होता है। 6. अपनी बॉस की सभी आलोचना करते हैं...पता नहीं क्यों दुनिया का सबसे बुरा इंसान बॉस ही क्यों होता है। 7. भतीजी, बहन की बेटी सभी लड़की को अच्छी लगती है....यह मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी है...ऐसे बच्चे तो ईश्वर का रूप होते हैं। 8. आप प्राची की भरसक मदद करना चाहते हैं..... - कीजिए.....हम आप के साथ हैं 9. "क्य़ा प्राची एक औसत लड़की होती तो मैं उससे बात करता" - गुड सवाल.....इसका जवाब व्यक्ति-व्यक्ति पर निर्भर करता है.....ऐसे Shakespeare ने मर्चेंट ऑफ वेनिस में लिखा है कि - Love is Blind. 10. "मैं भी आगे चलकर किताबे लिखूं...और सेमिनार में आमंत्रित किया जाउं...मेरे लेख भी अखवारों के संपादकीय पन्नों पर छपे" - इन शा आल्लाह 11. "लोग प्रेम में पड़कर या शादी के बाद कई बार ज्यादा सफल हो गए हैं" - Behind Every Successful Man...There is a woman...Reverse is true as well...12. प्राची दिल्ली जरूर आएगी.....।

Avinash Das said...

अच्‍छी पोस्‍ट, लेकिन निशा नेगी इसकी मनोवैज्ञानिक व्‍याख्‍या जिस तरह से कर रही हैं - वह एक आम फेनोमिना है (तरुण तेजपाल का नॉवेल अभी बाज़ार में हिट है, जिसकी शुरुआत ही इस पंक्ति से है कि प्रेम कुछ नहीं होता, देह ही सब कुछ होती है)। वैसे मैं आपके साथ हूं।

अविनाश said...

बहुत खूब भाई जी , अपनी संघर्ष के साथ बहुत अच्छे तरीके से व्यक्त की आपने अपनी भावना ,
मैं नेगी जी से सहमत नही हूँ वैसे भी लड़कियों से सहमत नही हुआ जा सकता । आजकल लोग स्वीकार कहा करते है आपने इतनी हिम्मत तो दिखाई । वैसे भी सुंदर लड़कियों के प्रति आकर्षण होना , वो भी समजातिय कोई असामान्य बात तो है नही । बधाई अपने ईमानदारी से अपनी संघर्ष , अपनी सोच , अपने संबंधो और अपनी इच्छांओं को एक लेख में अभिव्यक्त किया है

मृत्युंजय said...

aapki katha bahut hi sanvedan shil aur marmik hai.is katha ke naayak to aap hai,par is katha ke madhyam se apne pure manav jaati ke manovigyan ka vishleshan kiya hai.
meri ye dua hai ki apki unse bhet jaldi ho.

आयूषी said...

दिल से लिखी चीज़...दिल को छू गई....