Thursday, April 30, 2009

दलित, समाज, सरकार और हकीकत-1

हाल के सालों मे कई बातें दलितों और आदिवासियों के हक में अच्छी हुई। भारत सरकार ने आदिवासियों को जंगल की जमीन और उसके उत्पादों पर उनका हक दिलाने के लिए आदिवासी कानून पास किया तो हरियाणा में हुड्डा सरकार ने हरेक दलित परिवार को सौ-सौ गज जमीन घर बनाने के लिए मुफ्त में देने की घोषणा की। बिहार सरकार ने दलितों में से महादलित को खास सुविधाएं देने की घोषणा की हलांकि कई लोग इसे राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। उधर, यूपी में मायावती की सरकार है है, जो कम से कम प्रतीकात्मक महत्व तो रखता ही है।

उधर, एक सर्वे के मुताबिक देश भर में दलित-आदिवासी वर्ग से पिछले पचास साल में कम से कम 50 लाख लोगों को सरकारी नौकरियों में रोजगार मिला है जिसका मतलब यह है कि लगभग 3 करोड़ दलितों-आदिवासियों का एक मध्यमवर्ग बन चुका है।

लेकिन देश की आबादी में लगभग एक चौथाई कि हिस्सेदारी रखनेवाला वर्ग अभी भी बहुत तरक्की नहीं कर पाया है। एक अनुमान के मुताबिक अगर देश की आबादी 115 करोड़ मानी जाए तो दलित-आदिवासियों की आबादी कम से कम 29 करोड़ के आसपास है-लेकिन अभीतक उनमें से लगभग 3-4 करोड़ ही ठीकठाक हालत में आ पाए हैं।

दूसरी तरफ सरकारों के पास हाशिए पर आए इस वर्ग के लिए भले ही योजनाओं का अंबार हो लेकिन तस्वीर अभी भी भयावह है। अभी तक हमारे पास कोई प्रमाणिक सर्वेक्षण मौजूद नहीं है कि देश की जेलों में दलितों-आदिवासियों की फीसदी क्या है, उनकी मृत्युदर क्या है, उनकी साक्षरता क्या है और जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी क्या है। जो सर्वे हैं भी वे तस्वीर के सभी पहलुओं को नहीं छूते और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

हाल ही में मैं बिहार में अपने गांव गया था। मेरे गांव में तकरीबन 60 दलित परिवार हैं जिनमें से 40 का घर उनकी जमीन पर नहीं है। वे या तो सरकारी जमीन पर रहते हैं या पूर्व जमींदारों के जमीन पर। उस जमीन पर उनका कोई कानूनी हक नहीं है, कोई भी अगर उनको जबरन बेदखल कर दे तो वे कुछ नहीं कर पाएंगे। कई दफा दलितों के ही परिवार आपसी झगड़ों में दूसरों के जमीन पर कब्जा कर लेते हैं और वो कुछ कर नहीं पाता क्योंकि कानूनन जमीन उसकी है ही नहीं। सरकार उनको इंदिरा आवास देती है लेकिन वो इंदिरा आवास किस जमीन पर बनेगा इसकी कोई योजना नहीं है।


मैंने ये महसूस किया कि अगर हरेक दलित परिवार को कम से कम घर बनाने के लिए जमीन मिल जाए तो उनको काफी सहूलियत होगी। ऐसा करना मुश्किल भी नहीं है। हिंदुस्तान के हरेक गांव में काफी सरकारी जमीन है जिसका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा या दबंगों ने कब्जा कर लिया है। अगर सरकार नरेगा और आदिवासी बिल की तरह संसद में ऐसा कानून पास करे तो ये एक क्रान्तिकारी काम हो सकता है।(जारी)

1 comment:

संगीता पुरी said...

दलितों के प्रति आपकी संवेदना अच्‍छी लगी .. बहुत बढिया आलेख लिखा है।