किसी ने कहा कि लालू पिछले ൨൦ सालों में पहली बार बौखलाए हुए दिख रहें हैं। नब्बे के दशक में जातीय रैली करने वाले और बयानवाजी करनेवाले लालू इतने असुरक्षित कभी नहीं दिखे जितना इस चुनाव में दिख रहे हैं। टीवी चैनलों पर उनकी बाडी लेंग्वेज और अखबारों में उनकी तस्वीर उनकी चुगली कर रही है। एक जमाना था जब लालू ने कथित तौर पर कहा था कि 'भूराबाल' साफ करो जिसका बेहतरीन लाभ भी उनको मिला था। हलांकि लालू इस बात से अब इंकार करते हैं। अब बीस साल बाद लालू ने कुछ इसी तरह का नारा दिया कि वरुण गांधी पर बुलडोजर चलवा देंगे। ये लालू की बढ़ती असुरक्षा का प्रतीक है।
इसकी वजहें भी हैं। बिहार में मुस्लिम मतों का बड़े पैमाने पर विभाजन हो रहा है, ऐसा यूपी में भी हो रहा है। इसकी वजह ये है कि लालू और मुलायम लगातार मुस्लिम मतों का भयादोहन करते रहे हैं, जबकि पिछले दो-तीन सालों से नीतीश और मायावती के राज में मुसलमान उस तरह से भयाक्रांत नहीं है। जब मुसलमान भयाक्रांत नहीं होता है तो वो भले ही नीतीश को वोट न करे, लेकिन वो अपनी मर्जी से गैर-बीजेपी उम्मीदवार को वोट दे ही सकता है। लालू यहीं पर फंस गए हैं। पांच-पांच मुसलमान उम्मीदवार उतारने के बावजूद लालू को यकीन नहीं कि मुसलमानों का सारा वोट उनको मिल ही जाएगा। दूसरी बात ये कि कांग्रेस के पिछले पांच साला केंद्रीय शासन से मुसलमानों का एक बड़ा तबका कांग्रेस की तरफ आकर्षित हुआ है। दूसरी बात ये कि लालू ने कई सिटींग कांग्रेसी सीट पर भी अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं। मुसलमान इस खुन्नस भरी कार्रवाई से नाराज है। उदाहरण के लिए मधुबनी लोकसभा सीट से लालू ने अपने प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी को टिकट दे दिया है, जिससे शकील अहमद के जीतने की संभावना धूमिल हो गई है। मुसलमान इसे गलत मानता है।
लेकिन लालू को इतने घवराने की जरुरत नहीं है। अभी भी उनके पास एक हिलता डुलता ही सही, वोटबैंक है और नीतीश ने कई कमजोर उम्मीदवार उतारकर उनकी राह थोड़ी सी आसान कर दी है। लेकिन नीतीश कुमार ने पीछले तीन साल में जो छवि बनाई है, लालू उससे पार हो पाएंगे-कहना मुश्किल है।
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