Thursday, April 23, 2009

कांग्रेस, बीजेपी और चुनाव प्रचार

यूं तो चुनाव प्रचार की अहमियत विकसित देशों में भी काफी होती है, लेकिन पिछड़ापन, गरीबी और अशिक्षा से ग्रस्त देशों में चुनाव प्रचार कुछ ज्यादा ही मायने रखता है। यहां मतदाताओं के एक बड़े तबके को प्रचार, पैसा और संसाधनों के बल पर आसानी से प्रभावित किया जा सकता है। मौजूदा लोकसभा चुनाव के प्रचार पर अगर गौर करें तो साफ हो जाता है कि कांग्रेस तमाम सकारात्मक चीजों के बावजूद इस मायने में बीजेपी से पिछड़ रही है।

बात करें अगर इलेक्ट्रानिक, होर्डिंग्स और इंटरनेट पर बीजेपी के प्रचार की तो ये कांग्रेस से कई गुना ज्यादा आक्रामक,भावुक और आकर्षक है। बीजेपी ने बड़ी चतुराई से अपने परंपरागत वोटरों को हिंदुत्व का संदेश दिया है, ये टेलिविजन पर उसके प्रचार अभियान से साफ है। एक अपुष्ट खबर के मुताबिक बीजेपी का चुनाव प्रचार बजट भी कांग्रेस से ज्यादा है, हलांकि इसकी सत्यता में संदेह है।

पांच साल सत्ता में रहने और आम जनता के हित में काफी काम करने के बावजूद कांग्रेस उन कामों को जनता में भुना नहीं पा रही। वो बीजेपी को उस तरह नहीं घेर रही जिसकी उम्मीद उससे की जाती है। नरेगा, दोपहर का भोजन, किसानों की ऋण माफी और सच्चर कमेटी की रिपोर्ट सिर्फ राहुल और सोनिया के जुबान से निकलते हैं। पार्टी संस्थागत रुप से इस के प्रचार पर अमल नहीं कर रही।

दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपने अपने प्रचारकों की फौज भी सीमित कर रखी है। उसके पास राहुल और सोनिया ही स्टार प्रचारक हैं जिसमें सोनिया गांधी की हिंदी लोगों के लिए एक बड़ी कठिनाई है। कांग्रेस ने अपने बड़े नेताओं प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शीला दीक्षित जैसों को ज्यादा अहिमियत नहीं दी है। इसके उलट बीजेपी के पास नेताओं की एक कतार हैं जो संवाद की कला में माहिर है। वो टेलिविजन स्टूडियों से लेकर आम जनसभाओं तक में लोगों को अपनी भाषण कला से प्रभावित करते हैं।

इसके अलावे बीजेपी उस दिशा में कांग्रेस को फंसाना चाहती है जिससे पूरी की पूरी सियासत गैर-भाजपावाद पर निर्भर हो जाए। भाजपा खुद ही इस चुनाव का केंद्र बनना चाहती है। बीजेपी नेताओं का मनमोहन सिंह को कमजोर और कांग्रेस को बुढ़िया बताने का बयान इसी दिशा में दी गई एक सोंची समझी चाल है। कांग्रेस के मीडिया मैनेजर इस बात को समझ नहीं रहे और सोनिया मनमोहन सिंह आडवाणी को जवाब देने में लग गए हैं। बीजेपी चाहती है कि सियासत का एजेंडा वो तय करे। वो चाहती है कि कांग्रेस सिर्फ उसके आरोपों का जवाब देती फिरती रहे और अपनी सारी उर्जा अपने सकारात्मक कामों के प्रचार में न लगाए। कांग्रेस इस चाल में फंसती जा रही है। ये भगवा पार्टी का घोषित लक्ष्य है कि चुनाव ध्रुवीकृत हो, क्योंकि खंडित जनादेश कांग्रेस के पक्ष में जाएगा जबकि ध्रुवीकृत जनादेश बीजेपी की जागीर है।


हलांकि इतना तय है कि हिंदुस्तान जैसे विविधताओं वाले देश में जहां जनता अपनी पूर्व धारणा के मुताबिक ही मतदान करती है वहां ऐसे प्रचार व्यापक बदलाव नहीं लाते लेकिन जहां 10-20 सीटों से सरकार बनने बिगड़ने की बात हो वहां इस प्रचार का अपना महत्व तो है ही।

2 comments:

Udan Tashtari said...

अच्छा आलेख...प्रचार की महत्ता तो खैर अपनी जगह है ही.

Rajiv K Mishra said...

Absolutely right....In 2007, Congress hurled vitriolic invective “maut ka saudagar” on Narendra Modi and, in the process, handed over the campaign
advantage to the Gujarat chief minister. The party appears to be making the same mistake a little over a year later by distracting the attention from its achievements, including the doles announced for rural India. In its anxiety to counter BJP’s “weak leader” taunt, the party has been concentrating its energies on defending Manmohan Singh.

Rather than showcasing its achievements in the agrarian sector, where schemes such as NREGA, PMGSY and the Rs 70,000-crore loan waiver package had the potential of influencing voters’ preferences, the party is now engaged in defending PM’s capabilities. And this comes even as coalition partners are shouting from the roof top that Mr Singh cannot take his continuance as the leader of the alliance for granted.

That the strategy had gone horribly wrong was nowhere more evident than in the constituencies that went to polls in the second phase. Barring urban pockets in Karnataka, Madhya Pradesh and Maharashtra, the electoral map is predominantly rural. The urban voteshare was only 22%. The composition of the electorate in the seats facing elections in this leg provided a perfect opportunity to Congress’s poll managers to test the popularity of schemes. Somehow, this just did not happen, and the party got enmeshed in responding to BJP’s charge that Mr Singh was a weak PM, and that the nation deserved better.