इसे अगर आप लापरवाही कहते हैं तो ये एक गंभीर किस्म की लापरवाही है। देश पर हुकूमत करनेवाली कांग्रेस के वेबसाईट में अगर इस तरह की गलतियां है तो ये वाकई दुर्भाग्यजनक है। कांग्रेस पार्टी की ऑफिसियल वेबसाईट बताती है कि कि राजीव गांधी सक्रिय राजनीति में सन्1983 में अपने भाई संजय गांधी की मौत के बाद आए।
अब ये बात सिंधु सभ्यता के स्क्रिप्ट की तरह इतनी पुरानी भी नहीं कि लोग न जानते हों। संजय गांधी की मौत विमान दुर्घटना में 1980 में हुई और राजीव गांधी 81 में ही कांग्रेस महासचिव बन गए। वे उसी साल फरवरी 1981 में अमेठी से लोकसभा के सदस्य चुन लिए गए। लेकिन कांग्रेस की साईट कहती है कि राजीव गांधी सन् 1983 में अपने भाई संजय गांधी की दुखद मृत्यु के बाद सक्रिय राजनीति में आए।
दूसरी बात साईट बताती है वो ये कि उसके अतीत के अध्यक्षों में जवाहरलाल नेहरु नामका कोई व्यक्ति कभी अध्यक्ष नहीं हुआ। साईट में आप हिस्ट्री वाले लिंक पर जाएं फिर उसमें से उसके पूर्व अध्यक्षों का लिंक क्लिक करे तो डॉ मुख्तार अंसारी(1927) के बाद सीधे ये साईट बल्लभभाई पटेल(1931) पर आ जाती है, वो जवाहरलाल नेहरु को भूल जाती है जिन्होने लगातार 1929 और 30 में पार्टी की अध्यक्षता की थी। जिन्होने अपने पिता से अध्यक्षता का चार्ज लिया था।
साईट में चूंकि पहले ही मोतीलाल नेहरु का जिक्र कर दिया गया है तो ये बात फिर भी क्षम्य है कि उनकी 1928 की अध्यक्षता का जिक्र नहीं है। लेकिन जिस जवाहरलाल नेहरु को अपनी अध्यक्षता के दरम्यान लाहौर अधिवेशन में तिरंगा फहराने और पूर्ण स्वराज्य की घोषणा करने का श्रेय जाता है-पार्टी उन्हे ही भूल गई।
यूं, कांग्रेस की ऑफिसियल साईट में इस आपराधिक लापरवाही से आम जनता के स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता लेकिन देश पर हुकूमत करने वाली पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल जरुर उठता है। सवाल ये भी उठता है कि एक माध्यम के रुप में पार्टी इंटरनेट को कितने हल्के रुप में लेती है। ये उस पार्टी की वेबसाईट है जो हिंदुस्तान में कंम्प्यूटर क्रान्ति लाने का दंभ भरती है-लेकिन अपने उसी नेता के बारे में तथ्यात्मक गलतबयानी करती है जो इसका सूत्रधार माना जाता है। दूसरी बात ये कि जिस नेहरुजी को देश और दुनिया का एक बड़ा हिस्सा आधुनिक विचारों का पोषक मानता है उन्ही के खानदान द्वारा संचालित पार्टी एक आधुनिक प्रचार माध्यम पर अपने पितृपुरुष को भूल जाती है।
यूं, एक विचार ये भी है कि हमारे राजनेता या कई दूसरे पेशे के लोग भी पढ़ाई-लिखाई या भाषाई-तथ्यात्मक शुद्धता को बेवकूफों का शगल समझते हैं। शायद राहुल गांधी या खुद कांग्रेस अध्यक्ष भी कभी अपना वेबसाईट नहीं देखते। या हो सकता है कि कांग्रेस के किसी घनघोर उदारवादी (रिफॉर्मिस्ट?) मैनेजर ने ये काम किसी एजेंसी को आउटसोर्स कर दिया हो जिसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि नेहरुजी नामका जीव भी इस धरा पर कभी अवतरित हुआ था। क्या फर्क पड़ता है कि राजीव गांधी ‘83 मे राजनीति में आए थे या ‘81 में? क्या फर्क पड़ता है कि साईट में कुछ गलतियां दिख रही हैं...जनता तो वोट देकर फिर भी चुन ही रही है न! आमीन!
1 comment:
लाजवाब, यदि यह पुराना व सच्चा नुस्खा अखबारात व अन्तर्जाल पर विद्द्मान जीवो की दृष्टि में नही आता है तो एक गड़बड़ अवश्य हो सकती है, कि गलत नुस्खे से लोगों की तबीयत खराब होती रहेगी और वह इससे एखबर भी ........
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