Saturday, April 18, 2009

मेरी शुभकामनाएं नीतीश के साथ है...

आमतौर पर लोग मान रहे हैं कि बिहार में इसबार नीतीश के सुशासन से लालू चारो खाने चित्त हो जाएंगे, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और भी हो सकती है। नीतीश कुमार की लोकप्रियता उफान पर है इसमें कोई दो मत नहीं लेकिन उन्होने कुछ ऐसी गलतियां की हैं जिससे उन्हे लेने के देने पड़ सकते हैं। लोकप्रियता और प्रचार में नीतीश कुमार भले बीस हों लेकिन टिकटों के बंटवारे में उन्होने चूक कर दी है। लालू यादव के मुकाबले नीतीश के उम्मीदवार हल्के और नए हैं साथ ही इसमें समाजिक समीकरणों की भी अनदेखी की गई है।

नीतीश कुमार ने ऐसा इसलिए किया है उन्हे यकीन है कि ये चुनावी बैतरणी वे अपनी इमेज के बल पर पार हो जाएंगे। दूसरी वजह इसकी ये है कि उन्हे अपने पार्टी के बड़े-बड़े दिग्गजों को दरवाजा भी दिखाना था। ये कुछ ऐसी गलती है जो किसी के गले नहीं उतर रही। बिहार की जनता को ये बात अभी तक गले नहीं उतर रही की जार्ज, दिग्विजय, नीतीश मिश्र और नागमणि को क्यों चलता कर दिया गया। नीतीश कुमार के पास इस बात को कोई माकूल जवाब नहीं है। आज नीतीश कुमार के पास शरद यादव जैसे जनाधारहीन नेता हैं और लल्लन सिंह नंबर दो बन गए हैं जो उनके सचिव-वत थे।

नीतीश कुमार कुछ-कुछ उसी तरह से अपनी पार्टी में दबदबा बनाने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं जैसा कि लालू ने नब्बे की दशक के शुरुआत में किया था। लेकिन लालू को मंडल के दौर में समाज के व्यापक वर्ग का समर्थन थाली में परोस कर मिला था ये बात शायद नीतीश भूल रहे हैं। नीतीश का आधार संवेदनशील है, उसमें कमिटमेंट का अभाव है और बहुत हदतक लालू विरोध की नकारात्मकता से ग्रस्त भी है। वो नीतीश के लिए अभी तक सकारात्मक वोट नहीं बन पाया है चाहे ऊपर से वो उनके विकास की कितनी भी तारीफ करे।

हां, नीतीश ने अत्यंत पिछड़ों में अपना आधार जरुर मजबूत किया है जिसकी आबादी अहम है।लेकिन इस चक्कर में नीतीश ने ब्राह्मणों को नाराज कर दिया है जो उनका आधार वोट था। लोकसभा की तकरीबन बीस सीटों पर अपना प्रभाव डालने वाले ब्राह्मणों को जेडी-यू ने एक भी टिकट नहीं दिया। इसके अलावे पार्टी से कोईरियों के कद्दावर नेता नागमणि का इस्तीफा भी नीतीश पर भारी पड़ सकता है। राजपूत इसलिए खफा हैं कि जेडी-यू में भुमिहारों का दबदबा बढ़ गया है।

तो फिर नीतीश ने किसके भरोसे दांव खेला है? इतना तय है कि अगर अति पिछड़ों का पूरा वोट उन्हे मिल गया तो फिर उन्हे रोकनेवाला कोई नहीं है, लेकिन अगर उसमें अभी भी लालू ने हिस्सेदारी जता दी तो फिर नीतीश की सारी सड़के और बिजली के पोल धरे के धरे रह जाएंगे।

ये लेख चुनावी संभावनाओं को लेकर है, अलबत्ता ये भी तय है कि बिहार को अभी तक नीतीश जैसा प्रशासक नहीं मिला था। मेरी शुभकामनाएं नीतीश के साथ है।

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

जब तक लालू के 'भोट-छपेरों' का कारगर काट नहीं निकाला जाता, उन्हें कोई नहीं हरा सकता।

अबयज़ ख़ान said...

मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। ये इंडिया का चुनाव है, यहां ऐसे ही चलता है। बहुत-बुहत शुक्रिया मेरे ब्लॉग पर आने का। आपका कमेंट्स शानदार था। मुझे भी अपनी ब्लॉग टीम का साथी बना सकते हैं।