लेकिन जनरल जिया ने ऐसा क्यों किया..इसकी सटीक जानकारी किसी के पास नहीं। क्या वो एक धर्मांध व्यक्ति थे जिन्होने पाकिस्तानी सेना में मौलवियों और कट्टरपंथियं की बहाली करनी शुरु कर दी? इतिहास की किताबों में इसका संकेत नहीं मिलता। कायदे से देखा जाए तो जिन्ना, जुल्फिकार अली भुट्टो और जनरल जिया तीनों ही सेक्यूलर किस्म के आदमी माने जाते हैं जिनका लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ पाकिस्तान की बेहतरी था। जिन्ना को एक शासक के रुप में अपना बेहतरीन दिखाने का मौका नहीं मिला, लेकिन जहां तक बात जुल्फिकार अली भुट्टो और जनरल जिया की है तो वो भी पाकिस्तान को एक विजनरी लक्ष्य नही दे पाए।
जुल्फिकार अली भुट्टो तो अपने मिजाज से इतने सामंती और गैर-लोकतांत्रिक थे कि उन्हे पूर्वी पाकिस्तान(बांग्लादेश) के नेता शेख मुजीब को सत्ता सौंपना भी गवारा नहीं था जिसके बाद पाकिस्तान का बंटवारा तक हो गया। यहां पाकिस्तान के शासन में सामंती-कट्टरपंथी और उच्चवर्गीय लोगों के लगातार वर्चस्व का एक अलग विमर्श है जिसकी वजह से पाकिस्तान में कभी लोकतंत्र पनप नहीं पाया। लेकिन बात फिर घूम फिरकर वहीं आती है कि आखिर जनरल जिया ने पाकिस्तान की सेना और आईएसआई और प्रकारांतर से पूरे समाज को कट्टरपंथ की आग में क्यों झोंक दिया। वो कौन से हालात थे जिसने जिया को ऐसा करने को मजबूर कर दिया।
कुछ जानकारों का कहना है कि इसके पीछ शीतयुद्ध के काल की परिस्थितियां जिम्मेवार हैं। दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप को किसी भी चीज ने इतना नुक्सान नहीं पहुंचाया जितना अफगानिस्तान में सोवियत रुस की दखलअंदाजी ने। काबुल में सोवियत हस्तक्षेप के बाद पाकिस्तान अपने दोनों सीमाओं पर बड़ी ताकतों से घिर गया। पूर्वी इलाके में भारत और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में रुस की बड़ी फौजी ताकत से निपटना उसके बूते की बात नहीं थी।
ऐसे में जनरल जिया के पास सिवाय अमेरिका की हर बात मानने के कोई चारा नहीं था। जिया ने ऐसे में सौदेवाजी की नीति अख्तियार की। अमेरिका से उन्हे जमकर पैसे और हथियार मिले। इस पैसे का इस्तेमाल रुस के खिलाफ मुजाहिदीन और तालिबान को खड़ा करने में किया गया। कश्मीर में भी तबतक भारतीय नेताओं की कुछ गलतियों से हालात खराब होने लगे थे। जिया ने पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामी गुटों को मदद देनी शुरु की।यहीं से पाकिस्तानी सेना के इस्लामीकरण की शुरुआत हुई जिसने बाद में पूरे मुल्क को अपनी गिरफ्त में ले लिया(जारी)
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