लेकिन एक बात जो यहां गौर करनेवाली है वो ये कि भारत के लिए इस्लामी आतंकवाद का सबसे बड़ा खतरा उस दौर में था जब अफगानिस्तान में तालिबान लड़ाके सत्ता में थे और अलकायदा के साथ उनका खुलेआम गठजोड़ था। लेकिन उस वक्त तक भारत में इस्लामिक आतंकवाद का मतलब कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन को खाद-पानी देना था न कि पूरे हिंदूस्तान में धमाके करते रहना। ये बात अलग है कि धमाकों का ब्लूप्रिंट जनरल जिया ने अस्सी के दशक में ही तैयार कर दिया था जिसका नाम उन्होने ब्लीड इंडिया इन्टू हंड्रेड कट्स रखा था। लेकिन 90 के दशक में जो भी आतंकी हमले भारत में हुए उसका मुख्य केंद्र कश्मीर ही था या उससे पहले पंजाब था। जब 2000 के दशक में अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद तालिबान की सत्ता खत्म हो गई और अलकायदा भी अमेरिका के निशाने पर आ गया तो भारत में वजाय हमले घटने के ये हमले और भी बढ़ते गये। ये कहानी कुछ दूसरे ही बात की तरफ इशारा करती है।
दरअसल,भारत में भी इस बीच कई परिवर्तन हुए। सत्ता में बीजेपी-नीत सरकार आ गई जिसने पहले से जारी कांग्रेसी पालीसी को बहुत तेजी से अमेरिका के नजदीक पहुंचा दिया। पाकिस्तान की चीन से बढ़ती नजदीकी और सोवियत संघ के पतन के बाद ये भारत की भी मजबूरी हो गई कि वो अमेरिकी के नजदीक आए। इन तमाम चीजों ने इस्लामिक आतंकवाद के सीधे निशाने पर भारत को ला खड़ा किया जो पहले सिर्फ कश्मीर की आजादी तक सिमटा हुआ था। भारत की लड़ाई अब सिर्फ पाक परस्त इस्लामिक गुटों से नहीं रह गई, अब वो अंतरार्ष्ट्रीय इस्लामिक चरमपंथ के निशाने पर आ गया जो पहले सिर्फ इजरायल और अमेरिका को ही अपना दुश्मन मानता था।
पाकिस्तान के प्रभावी वर्ग को भी ये एहसास हो गया कि भारत से अब अंतरार्ष्ट्रीय स्तर पर दबाव डालकर कश्मीर को वापस नहीं लिया जा सकता। बीते दशको में भारत की सामरिक और आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती गई। इन तमाम चीजों ने इस्लामिक चरमपंथ को फ्रस्टेट कर दिया। इसके अलावा उन्हे आतंकियों का क्षेत्रीय नेटवर्क तैयार करने में कोई दिक्तत नहीं हुई क्योंकि भारत में मुसलमानों का एक तबका अयोध्या और गोधरा कांड के बाद इस मुल्क की व्यवस्था से असंतुष्ट बैठा था।
लेकिन दुनियां के इतिहास में हाल के दिनों में जिन दो चीजों ने बहुत ही ज्यादा असर डाला है वो है अमेरिका मे 9/11 की घटना और इराक युद्ध। इन दोनों लड़ाईयों ने अमेरिकी की उपस्थिति एशिया में और मजबूत कर दी। अमेरिकी की बढ़ती दखलअंदाजी और किसी दूसरी ताकत की अनुपस्थिति में इस्लामिक गुटों का अमेरिकी विरोध-ये ऐसी वजहें है जो लंबे समय तक इस इलाके में इस्लामिक आतंकवाद की वजह बनी रहेंगी। तो क्या हम फिर घूम फिरकर वहीं नहीं आ गए जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में दखलअंदाजी की थी?
आतंकी घटनाओं में बढ़ोत्तरी की एक दूसरी वजह ये भी है कि पाकिस्तान के कर्ताधर्ताओं को लगता है कि भारत आतंकी घटनाओं से तंग आकर कश्मीर पर समझौते को तैयार हो जाएगा। खासकर उस हालत में जब पाकिस्तान के पास एटम बम है। परमाणु बम आने के बाद पाकिस्तान के मनोबल में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई है,अब उसे भारत के भस्मासुरी हमले से निजात का आश्वासन मिल गया है। लेकिन जो बात पाकिस्तान के लिए ज्यादा खतरनाक है वो ये कि अब अमेरिका की चिंताएं पाकिस्तान को लेकर बढ़ गई है। अमेरिका को लगातार इस भय में जीना है कि अगर एटम बम की पहुंच आतंकी हाथों तक हो गई तो इसका पहला शिकार नई दिल्ली न होकर इजरायल और अमेरिका होगा।
यहीं वो बिंदु है जो भारत के लिए आश्वासन देनेवाला है कि अब अमेरिका ज्यादा गंभीरता से पाक की नकेल कसने के लिए मजबूर है। पाकिस्तान में कट्टरपंथी या अराजक शासन का ज्यादा खतरनाक मतलब अमेरिका को दिन में तारे की तरह दिख रहा है। कोंडिलिजा राइस या गार्डन ब्राउस के दौरे की हड़बड़ी इस बात को लेकर नहीं थी कि ताज होटल में कुछ हिंदुस्तानी मर गए। उन्हे लगता है कि अगर भारत ने लड़ाई छेड़ दी तो फिर दाढ़ीवालों के हाथ में पाकिस्तानी बम चला जाएगा....और फिर अगला ताज.. लंदन या न्यूयार्क भी बन सकता है। एक अशांत,गरीब,कट्टरपंथी और अराजक पाकिस्तान सिर्फ भारत के लिए ही खतरनाक नहीं है बल्कि वो पश्चिमी देशों के लिए ज्यादा खतरनाक है।(जारी)
1 comment:
सहमत हूँ | लेकिन कईयों की नजर में तुर्की से लेकर मलेशिया तक फैले हुए दारुल इस्लाम का एकमात्र रोड़ा भारत है |
शायद इसीलिए पहले हमला हो सकता है हम पर |
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