इलाहाबाद का पुराना नाम प्रयाग भी है, लेकिन अब इलाहाबाद इतना अपना सा लगता है कि प्रयाग के नाम से पुकारने की मन में कभी कल्पना ही नहीं आई। यूं मेरी दादी इसे प्रयाग ही पुकारती थी। राजीव का बड़ा वाला ममेरा भाई जो बैंगलोर में कम्प्यूटर इंजिनीयर है, उसे शादी के दिन भी बार- बार ठंडा (कोक) की तलब लगती थी। वो गाड़ी निकाल कर हर दो घंटे में बाहर निकलता था। एक ऐसी ही तलब की पूर्ति के लिए वो हमें बाहर लाया, हमनें पाया कि हम प्रयागराज स्टेशन पर खडे हैं।पान वाले से उसका याराना था, उधारी भी चलती थी। हमनें ठंढ़ा पिया, प्रयागराज के नाम को गौर से देखा और अपनी दादी को एक बार फिर से याद किया। हम मुस्कराए, मन ही मन कहा-चलो नाम बदलने की सनक यहां के लीडरानों ने नहीं दिखाई। वैसे जरुरत भी नहीं है-प्रयाग हमारे जातीय स्मृति में बसा है तो इलाहाबाद ने दिल पर कब्जा कर लिया है।
शादी में बारात दूर से आयी थी, सीतामढ़ी से। कुछ लोग दिल्ली से भी आए थे। दूल्हा डाक्टर था, यूं दुल्हन भी डाक्टर है-कोई दहेज नहीं, सादगी भरा विवाह। लड़के के गांव से कुछ बराती इसलिए भी आ गए थे कि संगम नहा लेंगे-मौका मिले न मिले। तो हुआ यूं कि बहुत सारे बराती सुबह ही उपस्थित हो गए थे, उनके खानेपीने की व्यवस्था और नहाने-घुमाने की जिम्मेवारी भी अघोषित रुप से आन पड़ी थी।
राजीव के मामा डा एन के झा, जो इलाहाबाद युनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी हैं-उनके अतिथियों में काफी सारे प्रोफेसर लोग भी थे। उनके परिवार के लोग और इलाहाबाद का मैथिल समुदाय विवाह में बढ़चढ़कर मौजूद था। हम में से कई लड़के जो कुंवारे थे-बल्कि अधिकांश कुंवारे ही थे-सजधज कर मौजूद थे-उन्होनें पूरी दुनियां की शराफत अपने चेहरे पर ओढ़ रखी थी। विवाह योग्य कन्याओं की माताएं उन लड़को को अपने निगाहों से तौल रही थी वो उनके व्यक्तित्व से उनकी आमदनी और व्यवहार को थाह रही थी। एक लड़का जो लड़की वाले की तरफ से था वो आम परोस रहा था। एक लड़की को आम देने के बाद उसने पूछा कैसा है। लड़की ने कहा-खट्टा है।
शादी में बारात दूर से आयी थी, सीतामढ़ी से। कुछ लोग दिल्ली से भी आए थे। दूल्हा डाक्टर था, यूं दुल्हन भी डाक्टर है-कोई दहेज नहीं, सादगी भरा विवाह। लड़के के गांव से कुछ बराती इसलिए भी आ गए थे कि संगम नहा लेंगे-मौका मिले न मिले। तो हुआ यूं कि बहुत सारे बराती सुबह ही उपस्थित हो गए थे, उनके खानेपीने की व्यवस्था और नहाने-घुमाने की जिम्मेवारी भी अघोषित रुप से आन पड़ी थी।
राजीव के मामा डा एन के झा, जो इलाहाबाद युनिवर्सिटी में प्रोफेसर भी हैं-उनके अतिथियों में काफी सारे प्रोफेसर लोग भी थे। उनके परिवार के लोग और इलाहाबाद का मैथिल समुदाय विवाह में बढ़चढ़कर मौजूद था। हम में से कई लड़के जो कुंवारे थे-बल्कि अधिकांश कुंवारे ही थे-सजधज कर मौजूद थे-उन्होनें पूरी दुनियां की शराफत अपने चेहरे पर ओढ़ रखी थी। विवाह योग्य कन्याओं की माताएं उन लड़को को अपने निगाहों से तौल रही थी वो उनके व्यक्तित्व से उनकी आमदनी और व्यवहार को थाह रही थी। एक लड़का जो लड़की वाले की तरफ से था वो आम परोस रहा था। एक लड़की को आम देने के बाद उसने पूछा कैसा है। लड़की ने कहा-खट्टा है।
इलाहाबाद से मिथिलांचल का पुराना नाता रहा है। सदियों से मिथिला के लोग अध्ययन अध्यापन और धार्मिक वजहों से इलाहाबाद आते रहे हैं। ये कहानियां हमने बचपन से सुन रखी थी। सुना वहां कोई दरभंगा कालोनी भी है। इलाहाबाद में जिन मैथिलों ने ख्याति प्राप्त की उनमें डा गंगानाथ झा, डा अमरनाथ झा और महामहोपाध्याय डा उमेश मिश्र का नाम अहम है। गंगानाथ झा तो इलाहाबाद युनिवर्सिटी के पहले वीसी भी रहे और लगातार तीन बार वीसी रहने के बाद उन्होने अपने बेटे डा अमरनाथ झा को चार्ज सौंपा था, जो दुनिया के एकेडिमिक इतिहास में शायद अभी तक एक नायाब रिकार्ड है (एक ऐसा ही रिकार्ड कलकत्ता युनिवर्सिटी में भी बनते-बनते रह गया था जहां के वीसी सर आशुतोष मुखर्जी के बेटे श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी वीसी बने थे लेकिन दोनों के बीच कुछ अंतराल था। जी हां..ये श्यामाप्रसाद मुखर्जी वहीं थे जिन्होने बाद में जनसंघ की स्थापना की थी) इलाहाबाद युनिवर्सिटी में जीएन झा और एएन झा के नाम पर काफी भव्य और मशहूर छात्रावास है जहां रहनेवालों की आंखों में अभी भी आईएएस बनने का सपना तैरता है। हाल ही में इलाहाबाद युनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे डा जयकांत मिश्र का निधन हुआ, वे महामहोपाध्याय उमेश मिश्र के पुत्र थे। जयकांत मिश्र के बारे में प्रेमचंद के पौत्र और दिल्ली युनिवर्सिटी में इंग्लिश के प्रोफेसर आलोक राय का कहना है पूरी दुनिया में शेक्सपीयर के साहित्य और रोमांटिश्जम पर व्याख्या करने वाला शख्श जयकांत मिश्र जैसा कोई नहीं था।
तो हम इन यादों और कहानियों के साथ इलाहाबाद में थे। हम उन लोगों को ढ़ूढ़ रहे थे जिनका गंगानाथ झा या जयकांत मिश्र से कुछ वास्ता रहा हो। राजीव के ममेरी बहन की शादी मेरे लिए सिर्फ एक शादी भर नहीं थी...मैं इतिहास में गोता लगाना चाहता था...और उस बहाने बहुत कुछ जानना चाहता था, जो सालों से सुनता आ रहा था (जारी)
8 comments:
baat baat mein hee bahut barhia jaankaaree... kayee nayee cheez jaanne ko milee... dhanyawad
सुंदर विवरण !!
likhte rhiye hm apne allahabad ko aapkee njron se dekhna chahte hain .
आनन्द उठा रहे हैं, जारी रहो!!
आपके ब्लाग से बहुत कुछ नई बातें भी पता चली, वाकई बहुत कुछ घूमने देखने और जानने लायक है। इलाहाबाद-2 में आपकी प्रतिटिप्प्णी पढ़ अच्छा लगा, अब तो इलाहाबाद आने के बहानों में हमारा आमंत्रण भी स्वीकार कर लीजिए।
श्यामाप्रसाद जी, गंगानाथ झा सहित विभिन्न विभूतियों के बारे में जो बताया बहुत अच्छा लगा
निरन्तर नही आपने के कारण इलाहाबाद भाग-3 पर टिप्प्णी नही कर सका, वो भी पोस्ट बहुत अच्छी थी ।
swr.mukharjee ne jansangh kee sthapna kee thee. badhiya bislesan.
धन्यवाद भाईजी...मैंने गलती सुधार दी है।
Gauravpurna CHARCHA
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