Monday, July 6, 2009

तूने मोह लिया इलाहाबाद - 7

अगले दिन जून की 9वीं तारीख थी, 8 जून की रात शादी थी, हम थककर चूर थे। हमारे पास एक ही दिन बचा था जिसमें हमें संगम, आनंद भवन और सिविल लाईंस जाना था। हम 12 बजे सोकर उठे और नहा धोकर आनंद भवन की ओर चले, हमने अपने आपको मामी की नजरों से बचा कर रखा जो कम से कम दो बार खाना के बुलावे के लिए झांक गई थी। हमने पहला काम ये किया कि लस्सी पी, और आनंद भवन गए। आनंद भवन देखने के बाद मुझे लगा कि प्रगतिशील सोच और शैक्षणिक-समाजिक जागरुकता इंसान को किस मुकाम तक ले जा सकती है। हम आनंद भवन देखते समय हर उस अध्याय, चर्चाओं, गोष्ठियों और अफवाहों को याद करते रहे जो नेहरु परिवार के बारे में बचपन से हम सुनते आ रहे थे, जो हमारी स्मृतियों में दर्ज था। शायद हम 10-15 साल पहले आनंद भवन देखते तो हम उसका इस तरह मनन नहीं कर पाते।

हमने नेहरु खानदान की शानो-शौकत देखी, उनकी लाईब्रेरी देखी उसमें रखी किताबों को देखा। हमने नेहरुजी का कोट, उनके जूते, उनका मोटर, उनका शेविंग बाक्स और हर उस चीज को देखा जिसका वे इस्तेमाल करते थे। हम उन अभागे और मूढ़ राजाओं के बारे में सोचते रहे जो धन दौलत में नेहरु परिवार से कहीं ज्यादा संपन्न था लेकिन जो इतिहास के कूड़ेदान में जाने के लिए अभिशप्त थे।

नेहरु परिवार के रहन सहन, जागरुकता और शिक्षा के प्रति उसके जूनून ने मुझे यकीन दिला दिया कि ये परिवार वाकई में आजाद भारत पर हुकूमत करने के लिए पूरी तरह तैयार हो रहा था। नेहरुजी और मोतीलाल का देश और दुनिया की समझ, उनका अंतराष्ट्रीय मामलों में पकड़ ये देखकर मैं नेहरुजी और इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व और उसके निर्माण के बारे में नई दृष्टोकोण से सोचने पर मजबूर हो गया। नेहरु परिवार का वंशबृक्ष बता रहा था इस परिवार में तकरीबन एक सदी पहले से ही अतर्जातीय और अंतर्धामिक विवाह होते आ रहे थे। बचपन से दिमाग में पल रहा एक किस्म का गैर-कांग्रेसवाद और खानदानवाद के खिलाफ रहनेवाली मानसिकता मानो थोड़ी संतुलित हो गई। मैं सोचता हूं कि आजादी के वक्त की सामंती जकड़न और तंग मानसिकता वाले मुल्क में नेहरुजी क्या वाकई बहुत उदार और लोकतांत्रिक किस्म के नेता नहीं थे ? क्या एक जाहिल और तंगनजर आदमी के हाथ ये वहुभाषी-वहुजातीय और वहुधार्मिक देश सुरक्षित रह सकता था ? ये अलग बात है कि एक मुद्दे के तौर पर मैं खानदानवाद का बहुत बड़ा विरोधी हूं और मुझे लगता है कि नेहरु परिवार के मौजूदा बारिस वौद्धिकता और दृष्टिकोण के मामले में अपनी पुरानी पीढ़ी के कतई बराबर नहीं है।

आनंद भवन में अभी भी नेहरुजी का ड्राईंगरुम, कांग्रेस का दफ्तर, बापू का शयन कक्ष, इदिरा गांधी का जन्मस्थान और वो धार्मिक किताबें मौजूद है जो नेहरुजी की मां पढ़ा करती थी। नेहरुजी और बापू का इंदिराजी को लिखा पत्र और कई दूसरी चिट्ठियां, कई किताब देखने को मिले जो नेहरु जी ने लिखे थे। हां, एक बात जो मुझे पता नहीं थी वो ये कि आनंदभवन लगभग 20 सालों तक कांग्रेस का हेडक्वार्टर थी। आनंद भवन के बगल में स्वराज भवन भी है जो मोतीलाल नेहरु ने सर सैयद अहमदखान से खरीदा था। बाद में जब बच्चे पढ़ने के लिए विलायत चले गए तो मोतीलाल ने वो मकान कांग्रेस को दे दिया। आनंदभवन को इंदिरा गांधी ने शायद 70 के दशक में देश को समर्पति कर दिया, वहां मैने वो इकरारनामा भी देखा जिस पर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और संजय गांधी के दस्तख़त मौजूद थे।
आनंद भवन में नेहरुजी के वंशबृक्ष को दर्शाता एक फोटो फीचर भी है जिनमें नेहरु परिवार के दूर दराज के संबंधियों और उनके बच्चों के नाम लिखे हुए हैं। इसमे कई दुर्लभ फोटोग्राफ है, जो हमें आजादी के वक्त लेकर चले जाते हैं। स्वराज भवन में एक अस्पताल भी बना हुआ था जिसे शायद नेहरुजी की पत्नी ने आजादी की लड़ाई में घायल लोगों के खोला था। इस भवन में एक पुस्तक केंद्र भी है जिसमें नेहरुजी, बापू और कई दूसरी किताबें उपलब्ध हैं। मैने इसी केंद्र से गांधीजी का माई एक्सपेरिमेंट विथ ट्रूथ खरीदा। हमनें आनंदभवन के सामने कई एंगिल से फोटो खिचवाया, और इतिहास की गोद में लगभग 3 घंटे बिताए। कुल मिलाकर मुझे लगा कि आनंदभवन महज एक ईंट पत्थर की खूबसूरत इमारत नहीं है, बल्कि यह हमारे आजादी के इतिहास का सबसे बड़ा गवाह है।...(जारी)

आर्काइव
तने मोह लिया इलाहाबाद - छ

तूने मोह लिया इलाहाबाद - पांच
तूने मोह लिया इलाहाबाद - चार
तूने मोह लिया इलाहाबाद - तीन
तूने मोह लिया इलाहाबाद - दो
तूने मोह लिया इलाहाबाद - एक

3 comments:

डॉ. मनोज मिश्र said...

shee kha hai.

वीनस केसरी said...

सुन्दर अभिव्यक्ति
वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

आनन्द आ रहा है घूमने में..जारी रहें.