Tuesday, July 7, 2009

तूने मोह लिया इलाहाबाद - 8

आनंदभवन से छूटते ही हमने रिक्शा ली, और चल पड़े संगम की तरफ...उस संगम की तरफ जिसके बारे में बचपन से सुनता आ रहा था। जिस संगम का नाम सुनते ही मेरी दादी की आंखों में चमक आ जाती थी, जिस संगम के बारे में मां ने आते वक्त फोन पर खासतौर पर डुबकी मार लेने को कहा था। रास्ते भर हमें संगम के बारे में कई तरह के खयालात आते रहे। यही संगम हमारे भारतीय गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक है। मुन्नवर का वो शेर भी याद आया, “तेरे आगे अपनी माँ भी मौसी जैसी लगती है, तेरी गोद में गंगा मैया अच्छा लगता है।“ हम उन तमाम कहानियों, उपन्यासॉं और कविताओं के बारे में सोचते रहे जिसने संगम की तश्वीर मेरे जहन में उकेरी थी।
मैं उसी संगम की ओर जा रहा था जहां बिन बुलाए कुंभ के मौके पर दसियो करोड़ लोग आ जुटते हैं! इलाहाबाद कितना सस्ता लगा, किसी से हमने पूछा कि संगम कितना दूर है-पता चला 5 किलोमीटर के आसपास है। लेकिन रिक्शावाले ने सिर्फ 20 रुपया मांगा। मेरे साथ राजीव का चचेरा भाई मनीष था। रिक्शावाला रास्ते भर बताता गया कि यहीं वो जगह है जहां कुंभ का मेला लगता है। हम उस मैदान को आंखों मे भरते गए और तमाम मीडीया कवरेज को याद करते गए जो हमने बचपन से देखा था। संगम की तरफ जानेवाली सड़क बहुत प्यारी थी। रिक्शावाला बताता गया कि संगम के पास ही अकबर का किला है और एक बहुत ही प्रसिद्ध हनुमानजी का मंदिर भी है। कहते हैं कि किला बनवाते वक्त हनुमानजी की मूर्ति मिली थी जिसे लोगों ने लाख वहां से हटाना चाहा वो हिली तक नहीं। बहरहाल, हम इन्ही सब बातों पर चर्चा करते हुए संगम जा रहे थे कि एक पैदल चल रहे बुजुर्गबार ने कहा कि बेटा जब गंगा मैया बुलाती है तभी लोग संगम आ पाते हैं।

बहरहाल हम 15 मिनट के बाद संगम के घाट पर थे। हमें मल्लाहों ने घेर लिया, हर किसी में होड़ लग गई कि वो हमें अपने नाव पर ले चले। हमने सख्त बार्गेन की। हम कई बार रुठे, हमने कहा कि हम संगम में नहाने नहीं आए, हम तो यूं ही घूमने आए हैं। पंडों के एजेंट ने अलग घेरा कि कहीं पिंडदान कराने तो हम नहीं आए। आखिरकार हमने एक नाव किराये पर ली जिसने तीन सौ रुपये में हमें संगम तक ले जाने और ले आने का करार किया।
दरअसल, हर साल संगम की जगह बदलती रहती है और इस वर्ष यह ठीक नदी के किनारे से लगभग 1 किलोमीटर आगे है। वो मल्लाह हमें पूरे रास्ते भर अपनी कहानी सुनाता रहा। उसने बताया कि ये उसके पुरखों का पेशा है, वो निषाद था। उसने कहा कि भगवान रामचंद्र को जिस निषादराज ने नदी पार कराई थी वो उसके ही पूर्वज थे। उस मल्लाह ने देश भर में चल रही राजनीतिक हलचलों की हमें जानकारी दी-लेकिन बड़े दुख के साथ उसने ये भी बताया कि अब उसके बच्चे इस पेशें में नहीं आना चाहते।
हम संगम पहुंचे, वहां के पंडे ने घेर लिया। उसकी मल्लाह से पहले से ही सांठगांठ थी। उसने गंगा मैया की आरती और पूजा के नाम पर कुछ अनुष्ठान करवाए और न करवाने की सूरत में कई आशंकाएं जताई। उसने प्यार और दुलार भी दिखाया और अज्ञात की आशंका से भी डराया। अंत में उसने ब्रह्मास्त्र छोड़ा कि बाबू, बार-2 कोई संगम थोड़े ही आता है। उसने दावा किया कि हम बिहार के जिस इलाके से आते हैं उसका वो खानदानी पंडा है!
बहरहाल हमने संगम में डुबकी लगाई। हमने अपने परिवार और दोस्तों के नाम की डुबकी ली। एक डुबकी हमने उस लड़की के नाम भी ली जिसे हम अपना खास दोस्त कहते हैं। हमने देखा कि संगम में पूरा हिंदुस्तान डुबकी ले रहा है। वहां असम, बंगाल, उड़ीसा और आंध्रप्रदेश के लोग थे। हमने मन ही मन सोचा कि क्या ये विशुद्ध धार्मिक आस्था है जिस वजह से हम संगम में नहा रहे हैं या कुछ और है। मन में अभी भी अनिश्चय है, लेकिन इतना तो तय है कि गंगा के प्रति जो आस्था और सम्मान बचपन से है ये स्नान उसी का एक रुप था। यूं हमने पहले भी पटना और विंध्याचल में गंगा स्नान किया था। लेकिन संगम की बात ही कुछ और थी। हमारे मिथिलांचल में गंगा के दक्षिण का स्नान यानि पटना की गंगा को मान्यता नहीं है, ये कैसी विचित्र बात है।
संगम में पानी कम होता है, ऐसा सिर्फ नहाने वालों की सुविधा के लिए नहीं कि उस जगह का चयन कर लिया गया-बल्कि इसके पीछे कारण है कि जब यमुना, गंगा में मिलती है तो अपने साथ काफी मिट्टी, कंकर-पत्थर आदि ले आती है, जिस वजह से वो जगह ऊंचा हो जाता है। ऐसा दूसरी नदियों के साथ भी होता है। संगम में हमें वो यमुना मिल ही गई, जिसे हम रास्ते भर तलाश करते आए थे। हमने नहाते वक्त नेहरुजी की गंगा पर लिखा हुई वो उक्ति याद की, ‘अपने उद्गम से सागर तक और प्राचीनकाल से आज तक गंगा भारतीय सभ्यता की कहानी कहती है।‘ । आखिर गंगा हमारे देश की सभ्यता- संस्कृति के आईना के साथ-साथ ही यहां कि जीवनदायिनी भी तो है।
संगम की गंगा हमें गंदी नहीं लगी। पटना में तो यह काफी संकड़ी हो गई है। हमें राम तेरी गंगा मैली के कई दृश्य़ बार-2 याद आए। हमने वहां पर अदृश्य सरस्वती के बारे में सोचा कि वो कौन सी ऐतिहासिक-भौगोलिक परिस्थितियां रही होगी जब सरस्वती विलुप्त हो गई होगी। इस मायने में संगम का स्नान हर इंसान के लिए एक सबक होनी चाहिए कि कैसे प्रकृति से छेड़छाड़ हमारी जिंदगी, हमारी नदियां और हमारे पर्यावरण के लिए घातक साबित हो सकती है। हमने सोचा कि अगर सरकार संगम के नजदीक एक गंगा संग्रहालय बनाए और उसमें उन चीजों को संयोजित किया जाए जो गंगा और प्रकृति के बारे में हमारी जागरुकता बढ़ाने वाली हो तो कितना अच्छा हो।

हमने जिंदगी का पहला संगम स्नान कर लिया था। अब हम लौट रहे थे, एक सुकून के साथ, अपने भींगे बालों के साथ...एक आत्मविश्वास और श्रद्धा के साथ...कि हमने उस संगम में स्नान किया है जो हजारों साल से करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र है, जो पूरे देश के लोगों की सांस्कृतिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। हमारे मल्लाह ने हमसे फिर आने की गुजारिश की और हमारे लिए गंगा मैया से दुआ मांगी। हमने गैलन में गंगाजल लिया, ये मां का आदेश भी था। अकबर के किले की प्राचीर में सूरज डूब रहा था, यहीं सूरज मेरे गांव में भी डूब रहा होगा,जहां मेरी मां सोच रही होगी कि संगम में स्नान के बाद उसके बेटे की आस्था अपनी परंपरा और संस्कृति से डिगेगी नहीं।...(जारी)

8 comments:

सुबोध said...

पूरी डॉक्यूमेट्री बनाएंगा सर मजा आ रहा है पढ़ कर लिखते रहिए इंतजार है

Rajiv K Mishra said...

प्रिय सुशांत जी,
गंगा जी ने मुझे नॉस्टैलजिक कर दिया। पटना में गंगा किनारे ही पैदा हुआ, बचपन वहीं बीता, जवानी के कुछ अच्छे दिन भी छोड़ा गंगा किनारे वाला की तरह ही बिताई। लेकिन गंगा जी सूख रही हैं...भावी पीढियों की स्मृति में गंगा का क्या स्वरूप होगा पता नहीं । हो सकता है वह भी अन्य मिथकों की तरह स्मृतियों की फाइल में बंद हो जाए ।

वीनस केसरी said...

ओह उस मल्लाह ने तो आपको लूट लिया ३०० :)
५० रुपये लगते हैं और आप ३०० रुपये दे गए
कोई बात नहीं संस्मरण अच्छा चल रहा है

वीनस केसरी

Rajiv K Mishra said...

पार्ट 8 इतना शानदार है कि फिर से कमेंट करने को ललच गया हूं. हम दोनों एक घर इलाहाबाद में भी ले लेंगे। बुढापा वहीं साथ कटेगा और साहित्य साधना के लिए इससे बढ़िया जगह शायद ही इस धरती पर कहीं और हो।

Udan Tashtari said...

लिखते चलो...अच्छा है.

Pramendra Pratap Singh said...

badi teji se likh rahe ho ki ham padne se rah jate hai :)

डॉ. मनोज मिश्र said...

संस्मरण हम लोगों को अच्छा लग रहा है,लिखते रहिये.

sushant jha said...

महाशक्तिजी, तेजी से नहीं लिख रहा, दरअसल संगम की यादें इतनी ज्यादा हैं कि उसे कम शब्दों में
नहीं समेट पाया। कई बातें तो मैं लिखना ही भूल गया...मसलन संगम का भूगोल और उस बहाने इलाहाबाद की भौगोलिक स्थिति। मुझे कुछ और लगा था शुरु में कि गंगा की स्थिति कुछ और होगी लेकिन वहां मैने देखा कि गंगा तो कमसे कम दो तरफ से इलाहाबाद को घेरे हुए है। मेरे मन में वो कई सारे हालातों की तस्वीर आई जिस वजह से इलाहाबाद इतना अहम शहर बन गया। बहरहाल उसका जिक्र आगे कभी...