Sunday, December 14, 2008

मुम्बई हमले और पाकिस्तान-3

इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ब्राउन साहब पाकिस्तान को हड़काकर भारत के घाव पर मरहम लगाने की कोशिश कर रहे है। दरअसल ये पाकिस्तान को अमेरिका की ही झिड़की है जिसे बुश साहब अलग-अलग नेताओं से पाकिस्तान को दिलवा रहे हैं। पहले राइस, फिर अमेरिकी सेना के कमांडर-इन-चीफ और अब इग्लैंड के प्रधानमंत्री। हो सकता है अगला दौरा सरकोजी और जापान के प्रधानमंत्री का हो,जो इसी स्टाइल में पाक को हड़काएं और भारत को पुचकारें। ऐसा नहीं लगता कि इसबार अमेरिका को भारत पर कुछ ज्यादा ही प्यार उमड़ आया है? तो आखिर ये माजरा क्या है कि मुम्बई में मजह 'कुछेक सौ हिन्दुस्तानियों' की मौत ने अमेरिका को विचलित कर दिया है। मामले में कुछ गड़वड़ जरुर है।

अमेरिका की चिंता ये नहीं है कि कुछ हिन्दुस्तानी होटल ताज में मर गए। उसकी अभी की चिंता ये है कि भारत कहीं सीमा पर फौज न तैनात कर दे। दूसरी बात जो भारत ने संकेत दिया है वो ये कि पाकिस्तान की वांह कुछ ज्यादा मरोड़ों नहीं तो बात नहीं बनेगी। ब्राउन साब जब इस्लामाबाद में थे उसी वक्त पाक ने आरोप लगाया कि भारत के लड़ाकू विमान पाक में घुस गए है जिसका भारत ने खंडन कर दिया। ये पुरानी युद्ध रणनीति है जो दबाव बनाने के लिए की जाती है। हो सकता है भारत के विमान पाक के क्षेत्र में जानबूझकर घुसे हों ताकि ब्राउन साब और भी ज्यादा तल्खी से जरदारी से बात करे।... और इसका असर ब्राउन के बयान पर दिखा भी।

लेकिन अमेरिका की चिंता इससे भी बढ़कर है। दरअसल,अमेरिका ये जानता है कि इराक और अफगानिस्तान हमलों के बाद दुनियां की लगभग पूरी इस्लामी आबादी उसके खिलाफ है,और इस्लामी आतंकवाद की जो सबसे पुख्ता और उपजाऊ जमीन है वो पाकिस्तान में ही बच गई है। लेकिन पाकिस्तान की ज्यादातर आबादी तालिबान और कट्टरपंथियों की हिमायती हो गई है। बदकिस्मती से उसने तालिबान को अमरीकी साम्राज्यवाद से लड़ने का एकमात्र तारणहार मान लिया है। अमेरिका की मुश्किलें दोहरी हैं। अतीत में भी, और अभी भी आतंकवाद से लड़ने में पाकिस्तान उसका हिमायती रहा है,लेकिन दिक्तत अब ये है कि सारे आतंकवादी, तालिबानी, उनके थिंक टैंक और उनको ठोस मदद पहुंचा पा सकने वाले पाकिस्तान में पनाह पा गए हैं। अब पाक की जमीन पर उसी की जनता को मारना अमेरिका के लिए मुश्किल हो रहा है। वो जितना मिसाइल दागता है ,पाकिस्तान की जनता उतनी ही नाराज होती है । अमेरिका के भरोसेमंद जरदारी के लिए उतनी ही मुश्किलें पैदा होती जा रही है। तो रास्ता एक ही है कि अमेरिका खुद सीधे पाकिस्तान में कार्रवाई न करके पाकिस्तान की सरकार से करवाए। लेकिन जरदारी ऐसा करके खुद की कब्र कैसे खोदेंगे । जनता उन्हे नहीं पीटेगी? तो एक बीच वाला रास्ता बचा है। वो ये कि जरदारी जनता को ये बताएंगे कि अमेरिकी प्रेसर झेलना मुश्किल है इसलिए वो कार्रवाई कर रहे हैं । जनता इस बात से एक हद तक कंविन्स भी हो जाएगी ।

...और यहीं काम अमेरिका कर रहा है। वो जानता है कि भारत कोई मांग मांगेगा तो पाकिस्तान की पुरानी कुंठा जाग जाएगी, वो सिरे से मुकर जाएगा। लेकिन अमेरिका दबाव देगा, तो सब ठीक है। दरअसल,अमेरिका को भी मुम्बई हमलों ने एक नायाब मौका दिया है कि पाकिस्तान पर नकेल कसे । इसके लिए इस बार ठोस बहाना मौजूद है और पाकिस्तान से उसकी पुरानी दोस्ती भी आड़े नहीं आएगी। वो ये दिखाता रहेगा कि वो पाकिस्तान के खिलाफ नहीं,बल्कि आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करवा रहा है । अमेरिका जानता है कि जब तक पाकिस्तान में आतंकी मौजूद हैं वो अफगानिस्तान को काबू नही कर सकता जहां उसके डेढ़ लाख फौजियों की जान सांसत में है । इसके अलावा अमेरिका को भारत से कोई मुहब्बत नहीं है कि वो इतनी मेहनत कर रहा है। (जारी)

2 comments:

युग-विमर्श said...

मैं आप से सहमत हूँ.

मिथिलेश श्रीवास्तव said...

पाकिस्तान ने तो हद कर दी है...अगर कांटे वाला कोड़ा लेकर कई साल तक उसकी पीठ पर बरसाए जाएं तो भी कम ही पड़ेगा....इतना घाघ शैतान है वो....और आतंक की सारी हदें पार कर चुके इस शैतान का जल्द ही कोई इलाज नहीं किया गया तो भारत बहुत बड़ी मुश्किल में फंस सकता है।