Monday, February 9, 2009

ताल तो भोपाल का और सब तलैया-पार्ट चार

भोपाल के बारे में कई लोगों ने टिप्पणी की कि महज चार-छह दिन शहर में रहकर उसे जानने का दम नहीं भरा जा सकता। बेशक ये बात सही है, लेकिन मैंने अपनी जानकारी और अनुभव से बाहर जाकर लफ्फाजी नहीं की। अब इतना तो कसूर है ही कि ज्यादा समेटने की कुव्वत नहीं थी। बहरहाल, कुछ लोगों को जरुर लग सकता है कि बड़ा तालाब अब वो नहीं रहा जो पहले था या कि पटिए की परंपरा सूख रही है-लेकिन एक बाहरवाले के नजरिए से वो अभी भी खूबसूरत है-और हां, शहर के लोगों का इसके गिरते हालात पर चिंता जताना स्वभाविक भी।

दूसरी बात ये कि अगर मुझे शहर में पुलिसवालों की मौजूदगी कम दिखी तो इसे मैं तारीफ के काबिल कैसे नहीं मानूं ? क्या दिल्ली में ऐसा है। हां, कुछ बातें जो अखरने वाली थी वो ये कि ऑटो का किराया बहुत था। उतने पैसे में तो दिल्ली में भी ज्यादा दूर जाया जा सकता है। मुझे शहर में कई दफा पब्लिक ट्रांसपोर्ट की भी दिक्तत महसूस हुई। नए शहर में शेयर्ड ऑटो नहीं थे और रिजर्व करके चलना कम खर्चीला नहीं था।

हां, कई बार मुझे ये भी लगा कि शहर में लड़कियों की तादाद कुछ कम है। मैने इस बात का कई लोगों से जिक्र भी किया, लेकिन लोगों ने मुझे फिर से विचार करने को कहा। मुक्ता भाभी से भी मैंने इस बात का जिक्र किया कि क्या मध्यप्रदेश भी पंजाब सिंड्रोम का शिकार हो रहा है?

2 comments:

Harshvardhan said...

blog par aakar achcha laga

sarita argarey said...

आखिर आपने भोपाल का पीछा छोड ही दिया । धन्यवाद । आप तो वैशाली को ही जला कर राख करने की टेर लगाते नज़र आते हैं ।भोपाल की तुलना पंजाब से करना बेमानी और आपत्तिजनक है । ब्लाग पर ना जाने किस बात की खुन्नस निकाली भोपालियों से । मुझे उम्मीद है कि कुछ तो अच्छा होगा ही हमारे इस शहर में । प्लीज़ एक अच्छी पोस्ट लिखिये ना हमारे शहर के बारे में ......!!!!!!!!!