चुनाव आयोग ने मंदी में भले ही चुनावी सर्वे करने वालों की आशा पर तुषारापात किया हो लेकिन है कोई माई का लाल जो ज्योतिषियों की भविष्यवाणी को रोक सके। रोक भी नहीं सकता…भई आस्था का सवाल है। मुस्कुराईये नहीं..साब जिस देश में अधिकांश लोग अपनी शादी और बच्चों का नाम ज्योतिषियों से पूछकर रखते हों वहां वो अपनी तकदीर वैसे ही किसी के नाम थोड़े ही लिख देंगे ? ये भी कह सकते हैं कि चुनावी सर्वे पर रोक ने संबंधित लोगों का सारा फोकस ज्योतिषियों पर टिका दिया है। टीवी चैनलों ने जब से ज्योतिष उद्योग में नई जान फूंकी हैं तब से एक अनुमान के मुताबिक इस क्षेत्र में तकरीबन 10,000 से ज्यादा प्रत्यक्ष और 1 लाख से ज्यादा अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पनपे हैं और यह क्षेत्र औसतन 20 फीसदी की दर से तरक्की करता जा रहा है। कोई ताज्जुब नहीं कल को कोई रेटिंग एजेंसी ये दावा कर दे कि देश की जीडीपी में इस क्षेत्र का योगदान 1 फीसदी से ऊपर का है और सरकार को एक ज्योतिष मंत्रालय ही बनाना पड़े।
आगामी लोकसभा चुनाव में अगर विज्ञापन एजेंसियों की झोली में हजार करोड़ से ऊपर की रकम जाएगी तो ज्योतिषियों को भी 500 करोड़ से ऊपर के राजस्व का अनुमान है। इसमें बड़ा हिस्सा उनकी कंसल्टेसी फी, अनुष्ठान, अंगूठी और पोलिटिकल लावीईंग से आएगा। कुछ ज्योतिषी तो ऐसे हैं जो सीधे टिकट दिलवाने में अहम भूमिका निभाएंगे। 543 सीट में से कम से कम 25 -30 सीट तो जरुर ज्योतिषियों के लावीईंग के बदौलत बांटी जाएगी। नेताओं में बेहतरीन और रिफ्ररेंस से भेजे गए ज्योतिषियों की पूछ अचानक बढ़ गई है। यकीन न हो तो नॉर्थ एवेन्यू या साउथ एवेन्यू का एक चक्कर लगा लीजिए- वहां सैकड़ो की तादाद में विध्याचल, ऋषिकेष और बनारस के बाबाओं ने नेताओं के आउट हाउस में डेरा जमा लिया है। कॉरपोरेट सेक्टर से बेरोजगार कुछ होनहार अध्यवसीयी युवा भी ज्योतिष की तरफ आकर्षित हुए हैं।
दूसरी बात ये कि इस आर्थिक मंदी ने भले ही सारे सेक्टर की मां-बहन एक कर दी हो सिर्फ एक ज्योतिष ही ऐसा है जो ताल ठोक के खड़ा है। वामपंथी नेता लाख कहें कि 20 लाख लोग बेरोजगार हो गए हैं लेकिन मान लीजिए इसमें से 5 लाख ने भी सितारों पर शक किया तो बाबाओं की पौ-बारह है। मुझे लगता है कि अगर तमाम मौजूदा ज्योतिषियों पर सर्वे किया जाए तो उनके कारोबार में भारी इजाफा पाया जाएगा।
जिस तरह पूरी दुनिया की अर्थव्यव्यस्थाएं अमेरिका से जुड़ी हुई है उसी तरह जिंदगी के तार भी एक दूसरे से किस तरह जुड़े हुए हैं इसकी एक बानगी देखिए। मेरे एक मित्र हाल ही में बेरोजगार हुए हैं। वो लव मैरिज करने वाले थे, लेकिन मंदी ने उनकी कमर तोड़ दी। अब मित्र अलग से ज्योतिष के चक्कर में हैं और मित्रानी चुपके से किसी दूसरे ज्योतिष के चक्कर में है। ऐसे एक नहीं, दो नहीं लाखों लोग हैं जो बाबाओं की झोली भर रहे हैं। इधर मैं जहां कटवारिया सराय में रहता हूं वहां भले ही कई दुकानें बंदी के कगार पर हों लेकिन अचानक 4-5 ज्योतिष की दुकानें खुल गई है।
शायद ज्योतिष का धंधा इतिहास में इतना मुफीद कभी नहीं था या यूं कहें कि ये ज्योतिष का सबसे स्वर्णिम काल है।
1 comment:
ज्योतिषाचार्यों की जय हो. उन्हीं का बोलबाला है.
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