Saturday, February 13, 2010

शिवसेना की गुंडई के वक्त धमाके का मुफीद वक्त

यूं, धमाकों को अहम या कम अहम धमाका तो नहीं कहा जा सकता लेकिन शनिवार को पूना में जर्मन बेकरी के बाहर हुआ धमाका ऐसा धमाका है जिसके बड़े मायने हैं। पिछले नवंबर में असम में भी धमाके हुए थे और इसमें कोई शक नहीं कि वो भी आतंकवादियों की ही करतूत थी। इस लिहाज से पूना में हुआ धमाका गृहमंत्री चिदंबरम की रिपोर्ट कार्ड में लाल निशान के तौर पर तो नहीं देखा जा सकता, लेकिन इसके बड़े मतलब जरुर हैं।

गृहमंत्रालय ने ये कबूल किया है कि ये धमाका कोई एक्सीडेंट नहीं था, बल्कि ये आतंकवादियों का किया हुआ धमाका था। गणतंत्र दिवस के समय से ही इस तरह की खबरें फिजां में तैर रही थी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने खुद कबूला था कि वो मुंबई हमलों जैसी घटनाओं के दुबारा न होने देने की गारंटी नहीं ले सकते। उसी वक्त हमारे रक्षामंत्री ए के एंटनी ने भी कुछ इसी तरह की आशंका जताई थी। पाकिस्तान लगातार मुबंई हमलों के आरोपियों के बारे में टालमटोल की नीति बरकरार रखे हुए है। भारत ने पिछले दिनों उससे समग्र वार्ता की पहल फिर से शुरु करने की पेशकश की, जिसे पाकिस्तानी हुक्मरानों ने अपनी विजय के तौर पर पाक जनता के सामने परोसा। जब वार्ता की औपचारिकताएं तय की जा रही थी, ठीक उससे पहले ये धमाका हुआ है। ऐसे में ये धमाका जिस बात की ओर इशारा करता है वो ये कि वार्ता से ठीक पहले वार्ता को रोकने की कोशिश जरुर की गई है।

अहम बात ये भी है कि धमाकों का जगह और इसकी तिथि बड़े शातिराना ढंग से चुनी गई। जिस जर्मन बेकरी में धमाका हुआ और उसमें कई विदेशियों के मारे जाने की भी खबरें हैं। ये बेकरी ओशो आश्रम के नजदीक है जहां विदेशियों खासकर यूरोपियनों की खासी आदमरफ्त रहती है। ये धमाका इस ओर संकेत करता है कि इस धमाके के तार आतंकवाद के अंतराष्ट्रीय नेक्सस से जुड़े हो सकते हैं। ये धमाका उसी अंदाज में हुआ है जिस अंदाज में इन्डोनेशिया और मिश्र में हुए थे। अमेरिका के अफगानिस्तान और इराक में हमलों के बाद अंतराष्ट्रीय इस्लामिक आतंकवाद का निशाना अमेरिकी और यूरोपीयन देशों के नागरिक होते रहे हैं। ये बात ओसामा बिन लादेन के कई कथित टेपों से जाहिर होती रही है। ऐसे में एक ही साथ इस धमाके से कई निशाना साधने की कोशिश की गई है। इतिहास के इस नाजुक मोड़ पर हिंदुस्तान दुर्भाग्य से अमेरिका-नीत पश्चिमी देशों की करतूतों का फल भी भुगतने पर मजबूर हो रहा है। असली चिंता यहां से शुरु होती है।

दूसरी अहम बात इस धमाकों के टाईमिंग को लेकर है। एक ऐसे वक्त में जब महाराष्ट्र समेत पूरा देश ठाकरे परिवार की गुंडागर्दी को जबर्दस्ती झेलने और सहने के लिए मजबूर हो रहा है, बिलाशक ये वक्त धमाका करने वालों के लिए बड़ा ही मुफीद वक्त था। महाराष्ट्र की लगभग पूरी पुलिस शिवसैनिकों की गुंडागर्दी रोकने के लिए जब सिनेमाघरों के आसपास तैनात हो तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि आपने एनएसजी के कितने हब मुल्क में बना लिए। ये ऐसा मुफीद वक्त है जिसे शिवसेना जैसी पार्टियों के रहते हमारे मुल्क के दुश्मन बार-बार पाएंगे और धमाके करते रहेंगे।

बड़ा सवाल अब ये है कि इन धमाकों से भारत-पाक के बीच होनेवाली संभावित वार्ता पर क्या असर पड़ेगा। तकरीबन डेढ़ साल से दोनों मुल्कों के बीच जो बातचीत ठप्प पड़ी हुई है कहीं वो तो प्रभावित नहीं हो जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो वाकई ये आतंकवादियों के मनसूबों को पूरा करने जैसा होगा।