Saturday, April 19, 2008

क्या आप डॉ मुख्तार अंसारी को जानते हैं?

चौंक गए न...हम उस आदमी की बात नहीं कर रहे जिसके बारे में आप सोंच रहे हैं। जी हां, डॉ मुख्तार अंसारी भी उसी गाजीपुर में पैदा हुए थे जिस इलाके से 'मुख्तार अंसारी' ताल्लुक रखते हैं। आज गाजीपुर से उनके जुड़ाव के नाम पर जिला चिकित्सालय का नामकरण ही बचा है जो उन्हे और लोगों को गाजीपुरी होने पर गर्व की अनुभूति कराता है। डॉ मुख्तार अंसारी आजादी के लड़ाई में अगली कतार के नेता थे। उनका जन्म 25 दिसम्वर 1880 को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले में युसुफपुर-मोहमदावाद नामके गांव में हुआ था। अंसारी, जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते थे।उन्होने मद्रास मेडिकल कालेज से डिग्री लेने के बाद इंग्लैन्ड से एमएस और एमडी की डिग्री हासिल की। अपनी काबिलियत के बल पर उन्होने इग्लैंड के कई बड़े अस्पतालों में काम किया और वहां के स्वास्थ्य विभाग में ऊंचे अोहदे तक पहुंचे। एक भारतीय का ऊंचे पद पर जा पहुंचना वहां के तत्कालीन नस्लवादी समाज को रास नहीं आया और उनके खिलाफ हाउस अॉफ कामंस में मामला उठाया गया। ऐसा कहा जाता है कि वहां के तत्कालीन हेल्थ सेक्रेटरी ने संसद को बताया कि डॉ अंसारी की नियुक्ति इसलिए की गई कि उस समय उस पद के लिए उनसे काबिल कोई नहीं था। आज भी लंदन के केयरिंग क्रॉस हॉस्पिटल में डॉ अंसारी के सम्मान में एक अंसारी वार्ड है । लेकिन हिंदुस्तान की गुलामी ने अंसारी के मन को विचलित कर दिया और अपनी एशो-आराम की जिंदगी छोड़कर वे वतन की राह में कुर्वान होने के लिए वापस चले आए।उन्होने कांग्रेस ज्वाइन किया और 1916 में हुए लखनऊ पैक्ट में अहम किरदार निभाया।वे कई दफा कांग्रेस महासचिव बने और और 1927 में तो वे कांग्रेस के अध्यक्ष बना दिए गए। जामिया मिल्लिया इस्लामिया की स्थापना में डॉ अंसारी का अहम योगदान था और जामिया के स्थापना में मुख्य योगदान देने बाले डॉ अजमल खान की मौत के बाद डॉ अंसारी जामिया के वाइस चांसलर भी बने।
दिल्ली में डॉ अंसारी का दरियागंज के इलाके में अपना भव्य मकान था और महात्मा गांधी अक्सर उनके मेहमान होते थे। जाहिर है उनकी हवेली उस समय राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करती थी। आजादी के बाद सरकार ने उनके सम्मान में एक सड़क का नाम अंसारी रोड रखा है। डॉ अंसारी नई पीढ़ी के प्रगतिशील मुसलमानों में से थे जो इस्लाम की एक उदार तस्वीर दुनिया के सामने रख रहे थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वे बहुत ही कम उम्र में इस दुनिया से चले गए। सन् 1936 में मसूरी से दिल्ली आते समय हार्ट एटेक की वजह से ट्रेन में ही डॉ अंसारी की मौत हो गई। कितने संयोग की बात है कि डॉ अंसारी के ही उम्र के मुंशी प्रेमचंद भी थे( मुंशी जी का जन्म भी 1880 में ही हुआ था) और उनकी भी मौत भी 1936 में ही हुई। पुनर्जागरण का एक बड़ा सितारा समय से पहले बुझ गया-जिसकी शायद उस समय सबसे ज्यादा जरुरत थी।

डॉ अंसारी से कुछ और भी बातें जुड़ी है। वर्तमान उपराष्ट्रपति डॉ हामिद अंसारी भी उसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं और बाहुवली सांसद मुख्तार अंसारी भी...जिसमें डॉ अंसारी पैदा हुए थे। दरअसल, गाजीपुर-आजमगढ़ में मुगलों के जमाने से ही(जानकारों का कहना है कि मुगलसराय का नाम मुगल सेना की छावनी बनने की वजह से ही रखा गया जो उस रास्ते अक्सर बंगाल जाया करती थी) या उससे पहले सल्तनत काल में ही मुसलमान सिपहसलारों की कुछ जागीरें थी। और उन्ही परिवारों में से कई प्रगतिशील मुस्लिम चेहरे बाद में उभरकर सामने आए..जिसमें डॉ अंसारी भी एक थे।
आज की पीढ़ी डॉ मुख्तार अंसारी को नहीं जानती। वो तो उस मुख्तार अंसारी को जानती है जो बाहुवली सांसद है और टेलिविजन पर्दे पर किसी रॉविनहुड सा चमकता है। अगर आप नामके पीछे डॉ भी लगाएंगे तो भी यह पीढ़ी नहीं समझ पाएगी क्योंकि पीएचडी करना अब बहुत 'आसान' हो गया है।

Friday, April 18, 2008

छोटा शहर..बड़ा शहर..

मुहल्ले पर नीलेश जी ने छोटे शहर से खत लिखकर सिर्फ हमारे भावनात्मक तंतु को ही नहीं छेड़ा है...बल्कि यह तो एक पूरा विमर्श है जो अभी तक सही ढंग से मीडीया में पल्लवित नहीं हो पाया है। हिंदी मीडीया में तो खैर इस विषय पर बहुत ही कम लिखा गया है, अंग्रेजी में भी जब कुछ आता है तो वह बस तुलनात्मक अध्ययन होता है .या फिर छोटे शहरों के बच्चों की उपलव्धियों पर आश्चर्य जताया जाता है मानो वे उस एलीट कल्व में कैसे आ गए..जो बरसों से महानगरीय नौनिहालों की बपौती था। अक्सर छोटे शहरों से आनेबालों को जाहिल या संकीर्ण मानसिकता का समझ लिया जाता है..जिन्हे बोलने, चलने, पहनने और खाने के मैनर्स भी सीखने होते हैं..। बड़े शहरों में आनेबाले पहली पीढ़ी के लोगों के लिए ये इंटर्नशिप जिंदगी भर चलती रहती है। और ऐसे में रह-रह कर अपने शहर की याद आ ही जाती है..। लेकिन सवाल कहीं ज्यादा बड़ा है-आधुनिक सभ्यता और तेज रफ्तार विकास के नाम पर महानगरों का होना और उसमें रहना गौरव की बात मानी जाने लगी है...और एक ही तरह के सोंच, व्यवहार, और जीवनशैली यहां की अनिवार्यता है...और सतरंगी संस्कृति,वहुभाषी-वहुनस्लीय समाज की बात पीछे छूट जाती है..जो कुछ भी है वह 'मुख्यधारा' के लिए है..और उसे मुख्यधारा में विलुप्त हो जाना है। यह मुख्यधारा पूरी दुनियां के संदर्भ में अमरीकन सभ्यता हो सकती है..और भारत के संदर्भ में इसकी मुकम्मल तस्वीर अभी तक सामने नहीं आई है. हलांकि कुछ जानकार लोग इसे हिंदीभाषियों के लिए पंजाबी कल्चर का सांस्कृतिक फैलाव कहने लगे हैं-जो धारावाहिकों, मुम्वैया सिनेमा और अनेकानेक सांस्कृतिक दूतों के बदौलत सुदूर गांवों तक में अपना प्रभाव दिखा रहा है..जहां करबा चौथ तो दरभंगा तक पहुंच गया है--लेकिन कई पुराने रश्मो-रिवाज ऑउटडेटेड होते जा रहे हैं। ऐसे में बड़े शहर की अवधारणा निश्चय ही, उसकी विशालता और आर्थिक विकास से आगे तक का है-यह तो एक विचार है जो दुनियां में जो कुछ भी छोटा है उसे निगल कर एकरुप बना डालना चाहता है। एक तरफ तो इस 'मेल्टिंग पॉट' में सब कुछ अच्छा लगता है जहां सामाजिक समानता है, आपके विचारों का(माफ कीजिए-सिर्फ नए विचारों का,जिसका व्यवसायिक उपयोग हो सके) स्वागत है और तरक्की करने की आजादी है..लेकिन साथ ही आपके निजी मूल्यों और सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों पर निरंतर मुख्यधारा में शामिल होने का दवाव होता है और हमले होते हैं। तो फिर चारा क्या है...महानगरों के उलट विकास की धारा बहाई जा सकती है..?.छोटे शहरों को सुबिधासंपन्न नहीं बनाया जा सकता? दो-दो करोड़ के दस महानगर के उलट 1-1 लाख के एक हजार शहर क्यों नहीं हैं.. जहां एक साथ कई आकांक्षाएं जी सके?लेकिन क्या मुख्यधारा ऐसा होने देगी जिसका सत्ता से लेकर आवारा पूंजी और संचार के साधनों से लेकर कला और वैचारिक संस्थानों तक पर कब्जा है? ऐसा लगता है कि सदियों के अपने अनुभव से सोशल और पोलिटिकल एलीट ने यह सीख लिया है कि बिखरे हुए आवादी पर शासन करना और उन्हें अपना बाजार बनाना बहुत मुश्किल भरा काम है-इसलिए पूरी दुनियां में ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं कि आवादी को एक ही जगह बसा दिया जाए। (इसका एक छोटा सा उदाहरण है छत्तीसगढ़ का सलबा जुडूम जहां आदिवासियों को एक जगह बसाने की कवाय़द जारी है)..ऐसे में लगता है कि छोटा शहर ही लोकतंत्र है..और बनारस के घाट व पटना का रेलवे स्टेशन..अंसल प्लाजा से ज्यादा चमकदार है। लेकिन मैं ऐसा क्यों सोंचता हूं..? सिर्फ इसलिए की मैं छोटे शहर से आया हूं?