Friday, May 22, 2009

दलित, समाज, सरकार और हकीकत-5

सवाल सिर्फ इतना ही नहीं है। आज के युग में जब अधिकांश नौकरियां निजी क्षेत्र से आ रहीं हैं तो दलितों के लिए यहां दोहरा संकट है। एक तो यहां आरक्षण नहीं है दूसरी बात ये अंग्रेजी एक बड़ी वाध्यता है। निजी क्षेत्र की अधिकांश अच्छी नौकरियों में अंग्रेजी का ज्ञान जरुरी है। यहां अगर सरकार और निजी क्षेत्र मिलजुल कर काम करे तो बात बन सकती है। इसका अच्छा उदाहरण मायावती का फॉर्मूला हो सकता था जिसमें एक खास फीसदी में दलितों को आरक्षण देने पर सरकार नजी क्षेत्रों को कुछ रियायते देती। लेकिन ये फॉर्मूला पूरे देश के स्तर पर लागू नहीं हो पाया है।

दूसरी बात ये कि कई नौकरियां ऐसी हैं जहां तकनीकी दक्षता की ज्यादा जरुरत होती है और भाषाई ज्ञान कम चाहिए होता है। सरकार ऐसे क्षेत्रों को तलाश कर दलितों के बच्चों को वहां पढ़ा सकती है जिससे वो आसानी से नौकरी हासिल कर सकें। सरकार को ज्यादा से ज्यादा आईटीआई और वोकेशनल कोर्स के संस्थान खोलने चाहिए या फिर प्राइवेट क्षेत्र को इसमें पूंजी लगाने के लिए हौसलाआफजाई करनी चाहिए। हमारे देश में मोटी तनख्वाह वाली नौकरी तो पैदा हो गई है लेकिन यहां जरुरत इस बात की है कि ज्यादा से ज्यादा छोटी नौकरियां पैदा की जाएं जिससे लाखों लोगों को खपाया जा सके।

हमारे यहां कृषि क्षेत्र को अभीतक पूरी तरह खंगाला नहीं गया है। जैसा कि मैंने हरियाणा में देखा-वहां की सरकार अब कृषि उत्पादन बढ़ाने की जगह कृषि विविधिकरण पर जोर दे रही है। चूंकि देश अब खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया है इसलिए खेती को ऐसे दिशा में मोड़ने में जरुरत है कि कम जमीन में ज्यादा से ज्यादा आमदनी हो सके। देश में अब फलों, सब्जियों और अन्य वाणिज्यिक खेती को बढ़ावा देने की नीति पर विचार होनी चाहिए। दुग्ध उत्पादन, अंडा, मांस, मधुमक्खी, मशरुम और मछली के उत्पादन पर सरकार को बड़ी नीति बनाने की जरुरत है। इससे रोजगार का विकेंद्रीकरण होगा और बड़ी आबादी को फायदा होगा जिससे दलित भी लाभान्वित होंगे।

दूसरी बात दलितों में कई ऐसी जातियां हैं जो हस्तकरघा और कलाकृतियां बनाती हैं। बांस की टोकड़िया, चटाईयां, बेंत की कुर्सियां और मिट्टी के बरतन जैसी कई चीजें हैं जो अभी तक सिर्फ स्थानीय बाजार में ही खपती है। बड़े पैमाने पर इनके कारोबार की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकार को इस दिशा में भी सोचना होगा। हमारी सरकार इन सब चीजों को लेकर उदासीन है। हमने कोई ऐसी बड़ी नीति नहीं बनाई है या उसे बढ़ावा नहीं दिया है कि इसका बाजार बन सके और इसका विज्ञापन हो। हमें इन सब बातों को चिह्नित करना होगा कि वे कौन से तरीके हैं जिससे आमलोगों को फायदा हो।(जारी)

1 comment:

कडुवासच said...

... प्रभावशाली अभिव्यक्ति ।