Thursday, July 16, 2009

पोलिटिकल लाईजनर-2

एमपी साहेब (पूर्व) टहल रहे हैं। इस महीने कोई लाईजनिंग नहीं हो पाई, कोई पार्टी नहीं फंसा। विवेकजी भी तो आजकल कम आ रहे हैं साउथ एवेन्यू। लगता है सुरेन्दर बाबू के यहां ज्यादा उठते बैठते हैं आजकल। हां, आदमी थोड़ा कमा लेता है तो कम भाव देता है वक्त-वक्त की बात है। लेकिन एक बात है कि विवेकजी पार्टी तुरंत खोज लेते हैं। अब ऊ ससुरा जो लोन लेने आया था 50 करोड़ का विवेकजी ही तो लाए थे। अब पार्टी नहीं लाते कहीं से उ बैंक के जीएम से दोस्ती का अचार डालते। वैसे मांगिए जाकर किसी से 50 हजार रुपये भी...अठन्नी नहीं देगा। रिश्ते को बिजनेस में ढ़ालिए, तभी कुछ निकलता है।

एमपी साहेब(पूर्व) को तो ये धंधा ही समझ में नही आता था पहले। दो टर्म तो धंधे की बारीकी समझने में लग गया। और इधर ऐसे-2 लोग हैं जो नेता को झोला लेकर चलते थे और करोड़पति बन गए-ऊ भी दांए बांए से। एमपी साहेब संसद जाते और पिछले बैंक पर उंघते रहते। ऊ कौन तो आया था अमेरिका का राष्ट्रपति बिल क्लिंटन...पार्टी अध्यक्ष ने कहा कि सबको मौजूद रहना है। पीएम ने कहा है कि ज्यादा से ज्यादा मुंडी दिखना चाहिए। ससुरा क्या-2 अंग्रेजी में बोलता रहा, कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा एमपी साहेब(पूर्व) को। ऊ तो पार्टी अध्यक्ष ने कहा कि सिर गिनेगें पार्लियामेंट में इसलिए चले गए थे नहीं तो कौन जाता जम्हाई लेने।

अब करें तो करें क्या। ससुरा सांसद निधि तो 2 करोड़ ही है। कितना बचेगा। मान लीजिए 30 फीसदी कमीशन ठेकेदार दे भी दे तो कितना होता है पांच साल में 3 करोड़। फिर दिल्ली में रहना है, स्टेटस है। साला 3-4 लाख का तो मंथली खर्चा है। इससे क्या खाक बचेगा। हां इधर इसका एक तरीका निकाला है। अपने भाई या भतीजे को ही ठेका देते हैं। ज्यादा बचता है। घर का माल घर में। परिवार वाले भी खुश। एक दिन फ्रस्ट्रेड थे-बोले कि हम करेंगे क्या बताईये। साली डाईरेक्ट गवर्नेंस में हमारा कोई रोल है नहीं-महीना में 5 दिन क्षेत्र को देते हैं अब साल भर का करेंगे हम। तो दो टर्म के बाद समझ में आया कि लाईजिनिंग की जा सकती है। इस बीच कई कमेटियों में थे। फाईनेंस कमेटी में थे तभी बैंकर सब से दोस्ती हुई थी। उसी के कमाई पर तो साऊथ एक्स में फ्लैट...खैर छोडिए भी इन बातों को...।

इधर साथ वाले क्षेत्र का एमपी मानव संसाधन में राज्यमंत्री लग गया। एक स्कूल का काम था मध्यप्रदेश में। मिशन का था। विवेकजी ही तो लाए थे। ससुरा एक ही बार में मान गया कि 10 लाख दे देंगे। समझ में ही नहीं आया कितना बड़ा पार्टी है। उससे कम से कम 25 लाख तो दूहा ही जा सकता था। लेकिन एमपी साहेब ने सारा माल गोल कर दिया...विवेकजी को 1 लाख ही दिया। खैर आज के दिन में विवेकजी इतने पर थोड़े मानेंगे। ऊ भी का कहा उन्होने मालूम है...विवेकजी.. का बताएं...सारा पैसा मंत्रिया खा गया...हम का कहते...चलिए पार्टी को जोड़ के रखिए..आगे भी काम देगा...(जारी)

4 comments:

वीनस केसरी said...

अमर उजाला में आज आपका आलेख पढ़
अच्छी जानकारी दी आपने

वीनस केसरी

sushant jha said...

केसरीजी, वो अमरउजाला में नहीं था बल्कि आईनेक्स्ट में था।

Unknown said...

vry nice

Unknown said...
This comment has been removed by a blog administrator.