Friday, August 28, 2009

बीजेपी का सतरंगी झगड़ा...कितना संगीतमय है!

आखिरकार मोहन भागवत दिल्ली आ ही गए। आना ही था। सुदर्शन भी पिछली बार चेन्नई में डेरा डाल आए थे जब आडवाणी को अध्यक्ष पद से हटाना था। हां, इतना तय है कि आडवाणी के जाने के बाद बीजेपी के आगामी नेता इतने बौने होंगे कि संघ प्रमुख उन्हे नागपुर से फोन पर ही निपटा देंगे। संघ सुप्रीमों का दिल्ली आना मायने रखता है। मजाल है कि कोई भाजपाई चूं भी बोल सके। सबको टिकट लेना है, पद पाना है जिसपर मुहर नागपुर ही लगाता है। कुल मिलाकर संघ प्रमुख हमारे यहां की एक बड़ी पार्टी-बीजेपी- के खुमैनी हैं जो चुनाव लड़नेवाले उम्मीदवारों को योग्यता का सर्टिफिकेट देते हैं।

लेकिन खेल मजेदार है, टीवी के लायक बिकाऊ भी। उधर जसवंत को भाजपा ने निकाला तो वाजपेयी के तमाम पुराने ‘खास’ गोलबंद हो गए। नया गोला ब्रजेश मिश्रा और यशवंत सिंहा ने दागा। उनका कहना है कि आडवाणी को ये बात मालूम थी कि आतंकियों को छोड़ा जाना तय हुआ था। ये कैबिनेट का सामूहिक फैसला था। मामाला वैसा ही लग रहा है जैसा राहुल गांधी लोकसभा चुनाव में आडवाणी पर आरोप लगाते थे। अब निकालते रहो कितने को पार्टी से निकालते हो। बीजेपी आलाकमान शौरी को पार्टी से नहीं निकाल पाया, उधर खंडूरी और वसुंधरा अभी तक आंखे दिखा रहे हैं। पहली नजर में बात तो सही लगती है कि पार्टी की हार के लिए प्यादे ही कैसे जिम्मेवार हैं जबकि लड़ाई तो प्रधानमंत्री बनने की थी।

जाहिर है वाजपेयी के तमाम पुराने यार ( या शागिर्द?) एक हो गए हैं। ब्रजेश, जसवंत, खंडूरी ये तो बानगी है। वाजपेयी ने जब जसवंत को मुलाकात का वक्त दिया तभी लग रहा था कि खेल अभी बाकी है।
आडवाणी खेमा के सारे चुप हैं। वे हवा का रुख देख रहे हैं। क्या बैकय्या, क्या जेटली और क्या अनंतकुमार। सुषमा का पता नहीं चल पा रहा वो अब किस खेमे में है। कई लोग खेमाविहीन होने की जुगत में है। राजनाथ के मन की बात किसी को पता नहीं- कि वो आडवाणी के आदमी है या असंतुष्टों का। लगते तो आडवाणी के हैं लेकिन संघप्रमुख के सामने जुबान नहीं खुलती-किसी की नहीं खुलती। आडवाणी को बचाने के लिए कहते हैं कि हार का ठीकरा मेरे सिर। लेकिन राजनाथ का कद इनता बड़ा नहीं कि ठीकरा उनके सिर फूटने की हामी भरे।

बीजेपी में कांग्रेस के उलट सब कुछ रहस्य ही रहस्य है। कांग्रेस में ही एक ही पथ है जिसका नाम 10 जनपथ है। बीजेपी में कई पथ हैं। यूं ज्यादातर नागपुर को जाती है लेकिन कुछ सड़कें इधर यू-टर्न मार आडवाणी के घर की तरफ मुड़ जाती थी।

जसवंत की विदाई से ठीक एक दिन पहले संघप्रमुख का इंटरव्यू आता है। उधर चिंतन बैठक है, आडवाणी एंड कंपनी पर आरोपों की बौछार होनी है और बीच में जसवंत सिंह आउट। क्या ये आडवाणी खेमा मुद्दा को डाईवर्ट कर रहा था जो चिंतन में उठना था?

उधर सयानों का कहना है कि जसवंत की विदाई संघ के इशारे पर हुई है और संकेत आडवाणी को सेफ पैसेज देने की है। मतलब ये तुमने भी तो पिछले के पिछले साल जिन्ना को देवता बताया था। लेकिन उधर फिर एक पेंच हैं।

सुदर्शन कहते हैं कि जिन्ना भले मानूस थे। अब यहीं सुदर्शन, आडवाणी को जिन्ना मसले पर अध्यक्ष पद से हटा चुके थे। लेकिन अब ये कैसा जिन्ना प्रेम?

उधर जिस दिन भागवत ने कहा कि एक नहीं दो नहीं 10-15 काबिल नेता हैं तो जोशी ने हां में हां मिलाई कि 10-15 ही क्यों 70-75 हैं। एक मतलब ये भी है कि उपर में जो पूरी टीम बैठी है उसे ही साफ कर दो। लाओ नीचे से नेता और पुनर्गठन करो। शौरी भी यहीं बोल रहे। तो क्या इस खेमें को संघ की सरपरस्ती हासिल है ?

लेकिन ये मानने का दिल फिर नहीं करता। क्योंकि जसवंत ने जो बड़ा पाप किया वो ये कि उन्होने जिन्ना को महान नहीं बताया-बल्कि सरदार पटेल की आलोचना की। उस पटेल की जिसे संघ वाले नेहरु के बरक्श अपना मानते आए हैं। तो फिर होगा क्या? इतना तो तय है कि आडवाणी एंड कंपनी को जाना होगा। संघ को उनका विकल्प नहीं मिल रहा। कोई ऐसा नाम जिस पर एका हो सके और जनता में भी जिसकी स्वीकार्यता ज्यादा हो। जाहिर है, कई डार्क होर्स इंतजार में बैठे हैं।

4 comments:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

बहुत अच्छा विश्लेषण। साधुवाद।

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

अरे सुशांत भाई,कल रात गजबे हो गया। आडवाणी ने जिन्ना के साथ गुपचुप तरीके से मेरे घर बैठक कर ली। और हां, साथ में जैक्सनवा को भी लाए थे। बीच-बीच मे ऊ गिटार पे डिस्को थीम छेड़ रहा था। का कर रहा है इ संघ.। http://anubhaw.blogspot.com/

Manjit Thakur said...

बढिया गुरु, राजनैतिक विश्लेषण में उस्ताद हो गए हो। मेरा तो मानना है कि सब मिल के ससुर आडवाणिया को बचा लेंगे और रजनथवा को जाए होगा। देख लेना

Manjit Thakur said...

aey bhai hamara recent fotua dekhe ho ki nahi??