Wednesday, November 11, 2009

मायावती को खुश नहीं होना चाहिए

उपचुनाव के नतीजों की व्याख्या खंगालने बैठा तो नेट पर खास हाथ नहीं लगा। इधर टीवी वाले तो ऐसे ही हैं। हर जगह सिर्फ हेडलाईन बनाने की होड़ थी कि बब्बर को शेर कैसे लिखा जाए और कांग्रेस का ‘राज’ अच्छा लगेगा या हाथी की चिंघाड़। बहरहाल इन सबसे उलट ये कहीं नहीं मिल पा रहा था किस पार्टी को कितने फीसदी वोट मिले या किसने किसका वोट खाया और पहले किसको कितना मिला था। मेहनत का काम है, तुरत-फुरत तो हो भी नहीं सकता। दिमाग खपाना पड़ता है और वो भी अगर कनिष्ठ किस्म के गैरराजनीतिक मिजाज वाले स्टाफ को कहा जाए तो स्टोरी की मां-बहन एक हो जाए। लखटकिया सैलरी लेनेवाले हुक्मरान कहते हैं कि राजनीति बिकती नहीं-कौन माथापच्ची करे।(ये अलग विमर्श हो सकता है कि माथा बचा भी है या नहीं) दूसरी तरफ राजनीतिक खबरों का मतलब हमारे यहां राज ठाकरे, अमर सिंह टाईप के नेताओं की बाईट या फिर कैची हेडलाईन लगाना हो गया है। खासकर टेलिविजन चैनलों में।

इधर हमारे एक मित्र ने कहा कि अमां यार सारी खबर ये टीवी वाले दे देंगे तो पत्रिकाएं कैसे चलेंगी। ये तो उनका काम है कि आराम से विश्लेषण करती रहें। फ्रंटलाईन या इस तरह की पत्रिकाओं का काम है यह।

बहरहाल, यूपी उपचुनाव के नतीजे बताते हैं कि विधानसभा में माया सबपर भारी पड़ी। उधर उसने फिरोजाबाद में अपने उम्मीदवार को ढ़ीला कर दिया और राज बब्बर जीत गए। कांग्रेस खुश है। शायद माया ने सोचा होगा कि पहले सपा को निपटाना जरुरी है। जनता में मैसेज यहीं गया है कि सपा साफ हो रही है। कांग्रेस का साईकोलिजकल ग्राफ बढ़ा है। लेकिन ये भी महज खुशखबरी ही है। कांग्रेस अपने कद्दावर नेताओं का सीट हार गई। पंडरौना में विधायक से सांसद बने आरपीएन सिंह की मां तीसरे नंबर पर रही, तो उधर झांसी में राहुल के प्रदीप जैन अपना उम्मीदवार नहीं जितवा पाए। इसका क्या मतलब लगाया जाए? हां, कांग्रेस को थोड़ी तसल्ली इस बात से मिली की उसने लखनऊ पश्चिमी सीट बीजेपी से छीन ली जो वो पिछले तकरीबन 20 साल से दबाए बैठी थी। भला हो टंडन के कोप का कि बीजेपी उम्मीदवार खेत रहे-टंडन अपने दुलारे के लिए टिकट जो चाहते थे।

कुछ जानकार कहते हैं कि भले ही माया ने सपा को निपटा दिया हो लेकिन इसका खामियाजा उसे अगले विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है। अब लोगों के दिमाग में साईकोलोजिकली कांग्रेस नंबर-2 हो गई है। अगर कांग्रेस इस रफ्तार को बरकरार रखती है तो अब माया विरोधी मतों का ध्रुबीकरण कांग्रेस के इर्द-गिर्द होगा। मुसलमान वैसे ही मूड बना चुका है, अब पंडितों में भगदड़ मचेगी। फिर तो कांग्रेस मजबूत होगी ही, बीएसपी का ग्राफ नीचे आएगा-क्योंकि ये संवर्णों का वोट ही था जिसने बीएसपी को 24 फीसदी से उछाल कर 33-34 फीसदी कर दिया था। गौर करने लायक बात ये है कि मुलायम का आधार व्यापक है। मुलायम और कल्याण मिलकर पिछड़ों की एकमात्र पार्टी है। ऐसे में ये हो सकता है कि लड़ाई सिमटकर कांग्रेस-सपा में हो जाए और बहनजी तीसरे नंबर पर पहुंच जाएं। ये बिल्कुल हो सकता है कि बसपा कांशीराम के जमाने में चली जाए। आमीन।

1 comment:

"अर्श" said...

ise kahte hai khara khara likhnaa badhaayee huzoor ,.. bahut dino baad aa paya hun..muaafi..


arsh