Thursday, December 18, 2008

मुम्बई हमले और पाकिस्तान-5

मुसलमानों को जंग लगा हुआ पाकिस्तान मिला है-जिन्ना
पाकिस्तान में रहनेवाले हरेक नागरिक आज से सिर्फ पाकिस्तानी है, उसे अपना धर्म और अपने विश्वास मानने की पूरी आजादी है-जिन्ना
हम ब्रेकफास्ट जैसलमेर में, लंच जयपुर में और डिनर दिल्ली में करेंगे-याह्या खान
हम 1000 साल तक घास की रोटी खाएंगे, लेकिन इस्लामिक बम जरुर बनाएंगे-जुल्फिकार अली भुट्टो
अल्लाह ने अरबों के लिए तेल भेजा, पाकिस्तानियों के लिए रुसी-जनरल जिया उल हक
इसके बाद के दौर में पाक नेताओं ने ऐसे लच्छेदार और दुस्साहसी बयान देने बंद कर दिए क्योंकि तबतक 'अल्लाह के सिपाहियों' ने अफगानिस्तान से रुस को वापस कर दिया था और अमेरिका के लिए पाकिस्तान की अहमियत सिर्फ नकली मुस्कुराहट तक सिमट गई थी।लेकिन साल 1947 से अबतक पाकिस्तान के नेताओं के बयान उनकी मानसिकता को अच्छी तरह दिखाता है। जिन्ना जैसे नेता, जिनके व्यक्तित्व के बारे में बोलना सिर्फ विवाद पैदा करता हो, उन्होने भी माना था कि पाकिस्तान में रहनेवाले लोगों के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। लेकिन जिन्ना के मरते ही ये बात हवा हो गई, और आज पाकिस्तान एक इस्लामिक राज्य है। पाकिस्तान के नेता शुरु से ही कितने लफ्फाज और जनता को गुमराह करनेवाले थे इसका उदाहरण पाकिस्तान के नेताओं का वो बयान था जो उन्होने सन 65 की लड़ाई के वक्त दिया था। चीन के हाथों 1962 में भारत की शिकस्त के बाद पाक नेताओं ने सोचा कि भारत के ठिगने से दिखनेवाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को चुटकियों में पटखनी दी जा सकती है और उनमें अपने लोगों के प्रति श्रेष्ठता की भावना इतनी ज्यादा थी कि बिना कुछ सोचे उन्होने 1965 में भारत पर हमला कर दिया। शायद जनरल याह्या खान ने ही कहा था कि हम लंच जयपुर में और डिनर दिल्ली में करेंगे। लेकिन 65 में भारत के ठिगने से प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान को वो मात दी कि हिंदुस्तानी फौज लाहौर तक पहुंच गई।
मजे की बात देखिए, पाकिस्तानी नेताओं को फिर भी दाद देनी होगी। अब भारत को पटखनी देने का एकमात्र उपाय बचा था और वो था एटम बम। ये कोई सेनानायक नहीं, बल्कि जनता के दुलारे जुल्फिकार अली भुट्टो थे जिन्होने घास की रोटी खाकर इस्लामिक बम बनाने की बात की थी। उसके बाद आए जनरल जिया-पाकिस्तान के समकालीन इतिहास में सबसे काबिल,कूटनीतिज्ञ और विवादस्पद शासक जिनके योगदान का आकलन करना जानकारों के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रही है। जनरल जिया ने पाकिस्तान के ज्योग्राफिकल सिचुएशन का इतना बेहतरीन फायदा उठाया जितना कोई नहीं उठा पाया था। उन्होने सोवियत रुस का भय दिखा कर अमेरिका से मोटी रकम और हथियार बसूले। लेकिन जिया ने अपने नीतियों से इस उप-महाद्वीप को इतना नुक्सान पहुंचाया जिसकी शायद जिया ने भी कल्पना नहीं की होगी। जिया ने अमेरिका की सहायता करने के लिए और रुस को अफगानिस्तान से खदेड़ने के लिए उस तालिबान को मदद देना शुरु किया जो आनेवाले वक्त में पूरे पाकिस्तान के इस्लामीकरण के लिए जमीन तैयार कर गई। सोवियत विघटन और उसके अफगानिस्तान से वापसी के बाद वहीं इस्लामी भस्मासुर अब पूरे उपमहाद्वीप के लिए नासूर बन गया है जिसे संभालना अब पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए, यहां तक की सेना के लिए भी वश की बात नहीं रह गई है। (जारी)

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

अच्छी जानकारी मिल रही है।धन्यवाद।