Monday, January 19, 2009

मुम्बई हमले और पाकिस्तान-8

आखिर पाकिस्तान से होनेवाले उत्पातों का समाधान क्या है ? कुछ लोग कहते हैं कि पाकिस्तान तो खुद आतंकवादी हमलों से त्रस्त है और ये भी कि वहां एक पावर सेंटर नहीं है, लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आता कि इसमें हम कहां शरीक हैं। क्या इस बहाने हम लहूलुहान होते रहें कि पाकिस्तान में कई पावर सेंटर हैं। मुझे ये समझ में नहीं आता कि अगर पड़ोस में लोकतंत्र नहीं है तो हम कब तक इंतजार करें कि वहां लोकतंत्र आ जाएगा। या फिर हम इसका ठेका ही क्यों न उठा लें कि वहां लोकतंत्र आ जाए। कई बार कई लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी होती है कि मानों पाकिस्तान के नेता तो दूध के धुले हुए हैं,असली बदमाश तो सेना-आईएसआई गठजोड़ है-जब वो कमजोर हो जाएगी तो अपने आप सब ठीक हो जाएगा। लेकिन ये अपने आप में एक विरोधाभाषी तथ्य है। एक लोकतांत्रिक नेता हुए थे जुल्फिकार अली भुट्टो-उन्होने कहा कि हजार साल तक घास की रोटी खाएंगे लेकिन इस्लामी बम जरुर बनाएंगे। दूसरे नेता हुए नवाज शरीफ, जिन्होने ऐसा लगता है कि वाजपेयी के वक्त भारत से दोस्ती की कोशिश तो जरुर की लेकिन सेना ने लंगड़ी मार दी।

दरअसल पाकिस्तान को हमलोग अभीतक समझ नहीं पाए है। पाकिस्तान का मतलब हमारे लिए क्या है ? क्या वो एक ऐसा मुल्क है जिसकी धड़कनों में तो हिंदुस्तान बसा हुआ है लेकिन वो ऊपरी तौर पर अरबों का नकल करना चाहता है। क्या ये वहीं सास-बहू पर झूमने वाली जनता है जो खुलेआम लश्कर और जैश को झोली भरकर चंदा देती है ? या फिर उसमें आसमां जहांगीर और सज्जाद मीर जैसे लोग भी है, अगर हैं तो उनकी तादाद और उनका असर कितना है ? ‘खुदा के लिए’ जैसी फिल्में देखता हूं दिल खुश हो जाता है, लेकिन पाकिस्तानी हुक्मरानों की बातें सुनता हूं तो तो दिमाग चकरा जाता है। दरअसल पाकिस्तान की कई सच्चाईयां हैं। यहां के उच्च वर्ग ने कभी लोकतंत्र को पनपने नहीं दिया-जिसका मतलब आम जनता का शासन था। सेना और कट्टरपंथियों के बहाने सत्ता नीचे के वर्ग तक जाने नहीं दी गई और इसके लिए हिंदुस्तान का खौफ खड़ा गया।

आज भी जो पाकिस्तान के सियासतदां हैं उनमें तकरीबन सारे के सारे बड़े जमींदार या बड़े व्यवसायी हैं। भारत की तरह मायावती या लालू वहां अभी भी दूर की कौड़ी है। सुना कि भुट्टो खानदान के पास चालीस हजार एकड़ जमीन है, और जरदारी भी पांच हजार एकड़ के मालिक हैं। उधर नवाज शरीफ हजारों करोड़ की कंपनी के मालिक हैं। जाहिर है इसी वर्ग के लोग सेना में ऊंचे पदों पर भी है तो फिर लोकतंत्र लाए कौन ? पाकिस्तान का उच्च वर्ग अपनी सत्ता बचाने के लिए बंदर जैसा नौटंकी कर रहा है और लहूलुहान हम हो रहें हैं। अब तो पाकिस्तान के पास एटम बम भी है जो इस बात की गारंटी दे रहा है कि भारत कभी उस पर बड़ा हमला करने की जुर्रत नहीं करेगा। फिर उपाय क्या है ?

पाकिस्तान की इस बीमारी का एक ही इलाज है, और वो है उसके उच्च वर्ग के रिहाईश पर उसी अंदाज में ताबड़तोड़ हमले करना जैसा उसने मुम्बई में किया है। माफ कीजिए, हम सैनिक हमले की बात नहीं कर रहे-हम तो पाकिस्तान में आतंकवादी कार्रवाई कर उसे तहस नहस करने की बात कर रहे हैं। भारत की जीडीपी इतनी बड़ी है कि अगर हमने अपने सैनिक बजट का एक फीसदी भी गुप्त रुप से इस काम में लगा दिया तो पाकिस्तान के हुक्मरान साल भर में घुटने के बल रेंगते नई दिल्ली आएंगे। पाकिस्तान को जवाब उसी के अंदाज में देना होगा। भारत का सैन्य बज़ट एक लाख करोड़ से ऊपर का है, हमें कम से कम 10 हजार करोड़ रुपया पाकिस्तान की बर्बादी के नाम करना होगा। इसके अलावा हमारे पास फिलवक्त कोई चारा नहीं-क्योंकि पाकिस्तान के अकड़ू नेता एटम बम के गुरुर में हमारी बात सुनने वाले नहीं-इतना तय है।

1 comment:

कडुवासच said...

... prabhaavashaalee abhivyakti.