Wednesday, January 14, 2009

पाकिस्तान का भी इलाज है...

पाकिस्तान की लफ्फाजी का कोई जवाब नहीं, न ही उस मुल्क के नेताओं के गैरजिम्मेवराना रवैये की कोई सीमा है। कुल मिलाकर पाकिस्तान ढ़ीठ बन गया है, उसे ये बखूबी मालूम है कि उसके हाथ में एटम बम रहते भारत उस पर हमला करने की जुर्रत सात जनम में नहीं जुटा पाएगा। पाकिस्तान के लिए राजनय और अंतरार्ष्ट्रीय समझौतों की तमाम बंदिशें मजाक से ज्यादा कुछ नहीं-वो भारत के तमाम विकास के दावों, उसके आईटी और दूसरे आर्थिक क्षेत्र में हुए तरक्कियों और लोकतांत्रिक मूल्यों को महज एक एटम बम से तौल देना चाहता है। और पश्चिमी ताकतें इस काम में बखूबी उसका मदद कर रही हैं।अब तो अमेरिका और इंग्लैंड के हुक्मरान ये तक कहने लगे हैं कि मुम्बई हमलों में पाकिस्तानी एजेंसी का कोई हाथ नहीं- जरदारी के नान स्टेट एक्टर का फार्मूला हिट हो ही गया। हद तो ये है कि भारत के नेता भी अब नरम जुबान में बोलने लगे हैं। प्रणव दा का कहना है कि अगर पाकिस्तान आतंकियों पर ठोस कार्रवाई करे तो वो अपनी पुरानी मांगों पर विचार करने को तैयार हैं। तो क्या हम ये बाजी भी हार गए...बिना इस गारंटी के कि फिर से कोई हमला नहीं होगा ? अब सवाल ये है कि पाकिस्तान को काबू में रखने का कोई इलाज हमारे पास है भी या नहीं...क्या हमारे तरकश के सारे तीर चुक गए हैं ?

नहीं, भारत के सारे तीर चूके नहीं है। हमारे पास अभी भी अमोघ अस्त्र मौजूद है। ये सच है कि अभी पाकिस्तान के साथ लड़ाई में उलझना ठीक नहीं है। लेकिन पाकिस्तान को कड़वी दवा पिलाना भी जरुरी है। कुछ लोग कहते हैं कि गुजराल के समय में वहुप्रचारित गुजराल डाक्ट्रिन के तहत भारतीय खुफिया वलों के आक्रामक नेटवर्क को खत्म कर दिया गया था जिसने पाकिस्तान में जिला और ब्लाक स्तर पर अपने एजेंटों का जाल फैला रखा था। इस नेटवर्क को तैयार करने में दसियों साल लगे थे। अब वक्त आ गया है कि उस नेटवर्क को फिर से जिंदा किया जाए। वैसे भी भारत की सेना का बजट 1 लाख करोड़ से ऊपर का है। हमें 10 हजार करोड़ रुपये सिर्फ पाकिस्तान में तोड़फोड़ मचाने के लिए रखना चाहिए। बिना इस बात की परवाह किए कि हमारे तथाकथित बुद्धिजीवी उस पैसे को लेकर हल्ला मचाएंगे, उसे स्कूल-कालेजों के लिए खर्च करने की बात करेंगे-हमें रक्षामंत्रालय के अधीन एक गुप्त मिशन बनाना चाहिए, जो सिर्फ पाकिस्तान में तोड़फोड़ के काम में लगा रहे।

हमारे यहां एक धमाका होने की सूरत में हमें पाकिस्तान में पांच धमाके करवाने चाहिए। तभी जरदारी एंड कंपनी के होश ठिकाने आएंगे। पाकिस्तान में भ्रष्ट लोगों की कोई कमी नहीं-वे इस काम में बखूबी हमारे काम आ सकते हैं, वहां पैसे के लिए कोई भी बिक सकता है और जरुरत पड़ने पर हमारे देश के लोग भी इस काम के लिए जान दे सकते हैं। हमें इस बात की चिंता बिल्कुल नहीं करनी चाहिए कि पाकिस्तान में लोकतंत्र कैसे मजबूत होगा, बल्कि हमें अपने घर में लोकतंत्र की हिफाजत पर ध्यान देना चाहिए। ये काम इतना सस्ता है कि इसका कोई बाई-प्रोडक्ट भी नहीं है। पाकिस्तान अपनी औकात भूल गया है, और बिना किसी लड़ाई के उसे सही रास्ते पर लाने का शायद यहीं एकमात्र तरीका बचा है।

2 comments:

Vinay said...

बहुत बढ़िया

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आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

Unknown said...

bahut sahi kaha aapne....