Friday, May 3, 2013

वैशाली यात्रा-8


अस्थि स्तूप या रेलिक स्तूप के सामने की सड़क पर कुछ बालक भिक्षु नजर आए। हमने उनसे बात की और पूछा कि वे कब भिक्षु बने? बातचीत से पता चला कि वे बोधगया के रहनेवाले हैं और वहीं उन्हें दीक्षा दी गई। हमने उनसे उनका नाम पूछा, तो जैसा कि भिक्षुओं का नाम होता है, उसी तरह का उनका नाम था जिसके शुरु में भंते लगा हुआ था। वे भगवा और पीले वस्त्रों में थे और उनके सिर मुंडे हुए थे।


शुरू में हमारे सवालों का जवाब देते हुए वे हिचक रहे थे। हमने उनसे पूछा कि क्या वे पढ़ते लिखते भी हैं, तो पता चला बगल के बौद्ध मठ में एक स्कूल है जहां उनके पढ़ने और रहने-खाने की व्यवस्था है। उनमें से अधिकांश या सबके सब दलित और पिछड़ी जातियों के गरीब बच्चे थे जिनमें से किसी का पिता मध्य बिहार में खेतिहर मजदूर था तो कोई गया में रिक्शा चलाता था। आसपास मूर्तियां और कैलेंडर बेचनेवाले बच्चे उन्हें छेड़ रहे थे और वे शरमाकर कर भाग रहे थे। मुझे ऐसा लगा मानो किसी नाटक में उन्हें जबरन अभिनय करने भेज दिया गया हो ! बौद्ध भिक्षु बनने-बनाने की यह भी एक कहानी थी।  

आगे चलकर सड़क बाईं और दाईं तरफ मुड़ गई है। अभिषेक पुष्करिणी के किनारे आगे से बाईं ओर मुड़ने पर खूबसूरत और विशाल सा शांति स्तूप दिखता है जो मन मोह लेता है। दूसरी तरफ कुछ होटलनुमा इमारतें दिखीं, जो शायद सरकारी थी।


वैशाली के शांति स्तूप का निर्माण जापान के निप्पोनजन मायहोजी पंथ ने राजगीर के बुद्ध विहार सोसाईसटी के साथ संयुक्त रूप से किया है। द्वीतीय विश्वयुद्ध के बाद जापान के हिरोशिमा और नागाशाकी पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद से जापान के निचिदात्सु फूजिई गुरूजी ने पूरी दुनिया में शांति स्तूपों के निर्माण की शुरुआत की थी और वैशाली का शांति स्तूप भी उसी सिलसिले में एक कड़ी है। गोल घुमावदार गुम्बद, अलंकृत सीढियां और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शांति स्तूप की रखवाली कर रहे प्रतीत होते हैं। सीढियों के सामने ही ध्यानमग्न बुद्ध की चमकती हुई प्रतिमा दिखायी देती है। शांति स्तूप के चारों ओर बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में अत्यन्त सुन्दर मूर्तियां ओजस्विता की चमक से भरी दिखाई देती हैं।


शांति स्तूप के सामने अभिषेक पुष्करिणी है और उसके उस पार बुद्ध का रेलिक या अस्थि स्तूप। दूसरी तरफ गेहूं के हरे-भरे खेत और सरसो के फूल। बड़ा मनमोहक दृश्य बन पड़ता है। मन करता है घंटों वहीं बैठे रहे। ढ़ेर सारे स्कूली बच्चे और स्थानीय लोग वहां फोटो खिंचवा रहे थे जिसमें से तो बहुत सारे नव-विवाहित जोड़े थे जो आसपास के गांवों से आए हुए थे।

No comments: